दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो.

Saturday, November 29, 2008

मिल जुल कर नहीं रह सकते, क्यों, आख़िर क्यों???

सारे धर्म प्रेम का संदश देते हैं. हर धर्म कहता है, प्यार से मिल जुल कर रहो. मगर न जाने क्यों, लोग धर्म में अलगाव ढूँढ लेते हैं? अपने-अपने खोलों में बंद हो जाते हैं. एक दूसरे से नफरत करने लगते हैं.  दूसरों की हर बात में उन्हें केवल बुराई ही नजर आने लगती है. दूसरों की जान लेना अपनी जिंदगी का मकसद बना लेते हैं. 

कैसा होगा वह आदमी जो रेल प्लेट्फार्म पर, होटल में खाना खाते इंसानों पर, बाजार में गोलियों की बोछार कर देता है? बच्चों और औरतों पर भी जिसे रहम नहीं आता. कितनी नफरत भरी होगी उस के दिल में, और वह भी उन लोगों के लिए, जिन्हें वह जानता नहीं,  जानना क्या पहचानता तक नहीं. जो यह भी नहीं जानता कि उस की गोली से कौन मरा. किस के लिए कर रहा है वह यह सब - अपने लिए, किसी दूसरे के लिए? 

क्या मिलेगा उसे यह सब करके? जन्नत में जायेगा? हूरें मिलेंगी? अरे बेबकूफों, जो यहाँ मिला है उसे छोड़कर उस के लिए मार और मर रहे हो जिसका कुछ भरोसा नहीं कि मिलेगा भी या नहीं. 

Wednesday, November 26, 2008

धर्म और राजनीति

महात्मा गाँधी ने कहा था, 'मेरे लिए धर्म से अलग कोई राजनीति नहीं है. मेरा धर्म सार्वभौम और सहनशील धर्म है, अंधविशवासों और ढकोसलों का धर्म नहीं. वह धर्म भी नहीं, जो घृणा कराता है और लड़ाता है. नैतिकता से बिलग राजनीति को त्याग देना चाहिए.' उनका यह विचार आज भी प्रासंगिक है, पर उनके नाम का इस्तेमाल करके सत्ता-सुख भोगने वालों ने इसे बहुत पहले त्याग दिया था. आज उनकी राजनीति अनैतिकता से भरपूर है. 

गाँधी जी यह भी कहा - 'धर्म का अर्थ कट्टरपंथ से नहीं है. उसका अर्थ है विश्व की एक नैतिक सुव्यवस्था में श्रद्धा. वह अदृष्ट है इसलिए उसकी वास्तविकता कम नहीं हो जाती. यह हिंदू धर्म, इस्लाम धर्म, ईसाई धर्म आदि सबसे परे है. यह उन धर्मों का उच्छेद नहीं, समन्वय करता है और उन्हें वास्तविक धर्म बनाता है.'

आचार्य तुलसी ने भी एक बार कहा था, 'धर्म को पहला स्थान और सम्प्रदाय को दूसरा स्थान दिया जाय तभी धर्म, समाज और राज्य के लिए प्रकाश-पुंज बन सकता है.' उनके अनुसार धर्म और सम्प्रदाय एक नहीं हैं. सम्प्रदाय धर्म की व्याख्या अथवा संप्रेषण की गुरु-परम्परा है. 

वर्तमान में सत्य, अहिंसा तथा नैतिकता वाला धर्म किसी अज्ञात कौने में छिपा बैठा है और सांप्रदायिक अभिनिवेश वाला धर्म उजागर हो रहा है. इस अवस्था में तथाकथित धर्म और राजनीति के बिलगाव की आवश्यकता चिन्तनशील तटस्थ व्यक्ति को महसूस होती है और होनी चाहिए. धर्म और राजनीति में बिलगाव की आवश्यकता के प्रश्न को सापेक्षद्रष्टि से देखना होगा. सांप्रदायिक कट्टरता और धर्म को हम एक ही आँख से देखें तो राजनीति और धर्म के अलगाव की आवश्यकता लोकतंत्र का प्रथम उच्छ्वास है. यदि धर्म को हम सत्य और अहिंसा तथा  नैतिकता की आँख से देखें तो राजनीति धर्म से शून्य होकर खतरे की घंटी से अधिक नहीं हो सकती. 

(लोकतंत्र - नया व्यक्ति नया समाज से साभार)  
    

Monday, November 24, 2008

मनुष्य की पहचान

मनुष्य अपने कर्मों से जाना जाता है, धर्म, जाति, भाषा या खान-पान से नहीं. 
यह जन्म पिछले जन्मों में किए गए कर्मों का फल है, यह फल भोगना ही होगा, इस से कोई छुटकारा नहीं है. 
ईश्वर केवल प्रेम का सम्बन्ध मानते हैं, जाति, धर्म, रंग, भाषा कुछ नहीं,
हम सब मनुष्य रूप मैं जन्में हैं, मनुष्य बन कर रहें.

Saturday, November 22, 2008

सत्संग और अंतःकरण की शुद्धता

अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष - इन चारों के अंतर्गत मनुष्य की सब इच्छाएं आ जाती हैं. अर्थ और काम की प्राप्ति में 'प्रारब्ध' की आवश्यकता है. धर्म और मोक्ष की प्राप्ति में 'पुरुषार्थ' की आवश्यकता है. 

सत्संग से अंतःकरण शुद्ध होता है और स्वभाव ठीक बनता है. शास्त्र पढ़ने से मनुष्य बहुत बातें जान जाएगा, पर स्वभाव नहीं सुधरेगा. स्वभाव सुधरेगा परमात्मप्राप्ति का उद्देश्य होने से. रावण बहुत विद्द्वान था, कई विद्याओं का  जानकार था, पर उस का स्वभाव राक्षसी था. वेदों पर भाष्य लिखने पर भी उस का स्वभाव सुधरा नहीं. कारण कि उसका उद्देश्य भोग और संग्रह था, परमात्मप्राप्ति नहीं. जैसा स्वभाव होता है, बैसा ही काम करने की प्रेरणा होती है.

सत्संग, सच्छास्त्र और सद्विचार से बहुत लाभ होता है. इन में सत्संग मुख्य है. सत्संग से बड़ा लाभ होता है. शास्त्रों में, संतवाणी में सत्संग और नामजप की बड़ी महिमा आती है. दोनों में सत्संग से बहुत जल्दी लाभ होता है. पुस्तकें पढ़ने से उतना बोध नहीं होता, जितना सत्संग से होता है. 

('ज्ञान के दीप जले' से साभार)  

Wednesday, November 19, 2008

समता ही परमात्मा है, सुखी जीवन का सार है

गीता में श्री क्रष्ण ने कहा है - जिनका मन समत्वभाव में स्थित है उनके द्वारा इस जीवित अवस्था में ही सम्पूर्ण संसार जीत लिया गया, अर्थात वे जीते हुए ही संसार से मुक्त हैं; क्योंकि सच्चिदानंदघन परमात्मा निर्दोष और सम है, इससे वे सच्चिदानंदघन परमात्मा में ही स्थित हैं. 

श्री क्रष्ण कहते हैं - जो पुरूष सुह्रद, मित्र, वैरी, उदासीन, मध्यस्थ, द्वेषी और बन्धुगणों  में, धर्मात्माओं और पापियों में भी समान भावः वाला है, वह अति श्रेष्ठ है. 

समता साक्षात् अमृत है, विषमता ही विष है. जहाँ समता है वहां सर्वोच्च न्याय है; न्याय ही सत्य है और सत्य परमात्मा का स्वरुप है. जहाँ परमात्मा है, वहां नास्तिकता, अधर्म-भावना, काम, क्रोध, लोभ, मोह, असत्य, कपट, हिंसा आदि के लिए गुंजाइश ही नहीं है. अतएव जहाँ यह समता है, वहां सम्पूर्ण अनर्थों का अत्यन्त अभाव हो कर संपूर्म सद्गुणों का विकास आप ही हो जाता है. क्योंकि अनुकूलता-प्रतिकूलता से ही राग-द्वैशादी सब दोषों और दुराचारों की उत्पत्ति होती है और समता में इन का अत्यन्त अभाव है, इसलिए वहां किसी प्रकार के दोष और दुराचार के लिए स्थान ही नहीं है. 

सर्वत्र सम्द्रष्टि रखिये. यही सुखी जीवन का सार है. 

Tuesday, November 18, 2008

ऐसा राजा नरकवासी होगा

जासु राज्य प्रिय प्रजा दुखारी I
सो नृप अवसि नरक अधिकारी II

प्रजातंत्र में सर्वहितकारी समाज के लिए यह एक आदर्श-वाक्य है. जिस राजा के राज्य में प्रजा दुखी होती है वह राजा म्रत्युपरन्त नरक में वास करता है. भारत में प्रजातंत्र है पर किताबों में. तंत्र का प्रयोग राज्य द्वारा जिस तरह हो रहा है, सर्वहितकारी समाज की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती. प्रजा दुखी है,पर राजा अपनी सत्ता की ही चिंता करता रहता है. समय-समय पर मिथ्या भाषण करके प्रजा के दुखों को नकारने का प्रयास करना ही उस का एक कर्तव्य रह गया है. 

मानस की यह पंक्तियाँ अगर सही हैं तब इस राजा का नरकवास तय है.  

Saturday, November 15, 2008

निराकार-साकार ब्रह्म

सगुनहिं अगुनहिं नहीं कछु भेदा I
गावहिं मुनी पुरान बुध बेदा II
अगुन अरूप अलख अज होई I
भगत प्रेम रस सगुन सो होई II
जो गुन रहित सगुन सोई कैसे I
जल हिम-उपल बिलग नहीं जैसे II

वेद, पुरान, मुनि और बुध, सबका एक ही मत है कि अगुण और सगुण में कोई भेद नहीं है. जो ब्रह्म अगुण, अरूप, अद्रश्य और अजन्मा है, वही भक्त के प्रेम के कारण सगुण स्वरुप ग्रहण कर लेता है. जैसे जल, बर्फ और ओले की आकृति में भेद दिखाई देने पर भी तीनों वास्तव में एक ही हैं, उसी तरह अगुण और सगुण भी एक ही है. 

ह्रदय में निर्गुण-निराकार का निवास होता है और नेत्र में सगुण-साकार भगवान् बिराजते हैं. ब्रह्म यदि निर्गुण-निराकार होगा तो वह सम होगा. पाप-पुन्य के प्रति भी वह उदासीन होगा. दुष्टों के प्रति न तो उस में रोष होगा, और न वह सज्जनों के प्रति रागान्वित ही होगा. विश्व को संरक्षण प्रदान करने के लिए यह ब्रह्म उपयोगी सिद्ध नहीं हो सकता है. भक्त इस लिए प्रार्थना करता है और यह ब्रह्म निर्गुण से सगुण बन जाता है. यह ईश्वर सम नहीं हो सकता. सगुण राम स्पष्ट कहते हैं, 'मुझे सभी लोग सम कहते हैं, पर सत्य यह है कि मुझे भक्त प्रिय हैं. विशेष रूप से अनन्याश्रित भक्त तो मुझे सर्वाधिक प्रिय हैं. 

(मानस मुक्तावली से साभार)

Wednesday, November 12, 2008

कार्तिक पूर्णिमा


कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है । इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है।

वैष्णव मत में इस कार्तिक पूर्णिमा को बहुत अधिक मान्यता मिली है क्योंकि इस दिन ही भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था। इस पूर्णिमा को महाकार्तिकी भी कहा गया है। यदि इस पूर्णिमा के दिन भरणी नक्षत्र हो तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। अगर रोहिणी नक्षत्र हो तो इस पूर्णिमा का महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। इस दिन कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और बृहस्पति हों तो यह महापूर्णिमा कहलाती है। कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो "पद्मक योग" बनता है जिसमें गंगा स्नान करने से पुष्कर से भी अधिक उत्तम फल की प्राप्ति होती है।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है। अन्न, धन एव वस्त्र दान का बहुत महत्व बताया गया है इस दिन जो भी आप दान करते हैं उसका आपको कई गुणा लाभ मिलता है। मान्यता यह भी है कि आप जो कुछ आज दान करते हैं वह आपके लिए स्वर्ग में सरक्षित रहता है जो मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में आपको प्राप्त होता है।

शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिक पुर्णिमा के दिन पवित्र नदी व सरोवर एवं धर्म स्थान में जैसे, गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र, अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। महर्षि अंगिरा ने स्नान के प्रसंग में लिखा है कि यदि स्नान में कुशा और दान करते समय हाथ में जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फल की प्राप्ति नहीं होती है। शास्त्र के नियमों का पालन करते हुए इस दिन स्नान करते समय पहले हाथ पैर धो लें फिर आचमन करके हाथ में कुशा लेकर स्नान करें, इसी प्रकार दान देते समय में हाथ में जल लेकर दान करें। आप यज्ञ और जप कर रहे हैं तो पहले संख्या का संकल्प कर लें फिर जप और यज्ञादि कर्म करें।

कार्तिक पूर्णिमा का दिन सिख सम्प्रदाय के लोगों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था। सिख सम्प्रदाय को मानने वाले सुबह स्नान कर गुरूद्वारों में जाकर गुरूवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताये रास्ते पर चलने की सौगंध लेते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहते हैं।

Tuesday, November 11, 2008

वंदे मातरम्, विडियो क्लिप 'आनंद मठ' से

बहुत पहले 'आनंद मठ' देखी थी. आज यूट्यूब पर उसकी एक क्लिप मिली. आनंद आ गया. आप भी देखिये. 


Monday, November 10, 2008

मन्दिर








मेरी एक क्लाइंट कंपनी में उन्होंने एक मन्दिर बनाया हुआ है. सुबह सब कर्मचारी काम शुरू करने से पहले मन्दिर में पूजा करते हैं. यह तस्वीरें मैंने एकादशी के दिन खींची थी. 


Sunday, November 09, 2008

हिंसा

क्या हिंसा से कोई समस्या हल हो सकती है? मेरे विचार में तो नहीं, बल्कि हिंसा समस्या को और बढ़ा देगी. आप क्या सोचते हैं? 

Friday, November 07, 2008

प्रेम और नफरत में आप किसे चुनेंगे?

मान लीजिये आप के सामने एक ऐसी परिस्थिति आ जाती है जहाँ आप को प्रेम या नफरत में एक को चुनना है. आप किसे चुनेंगे? 

Thursday, November 06, 2008

हिंसा और भारतीय समाज

हिंसा भारतीय समाज को खोखला कर रही है. यह एक गहन चिंता का विषय है. 

हिंसा तीन प्रकार की होती है - मानसिक, बैचारिक और कर्म हिंसा. यह १० + २ + ३ पाठ्यक्रम जैसी है. १० पास तो आपको हर जगह मिल जायेंगे. १० + २ पास की संख्या भी बढ़ती जा रही है. अखबार, मीडिया हिंसक बिचारों से भरे नजर आते हैं. १० + २ + ३ भी अपनी मौजूदगी तेजी से दर्ज करा रहे हैं. जरा सी बात पर लोग कर्म हिंसा पर उतर आते हैं. बर्दाश्त करना तो जैसे लोग भूल गए हैं. 

अगर इस हिंसा को रोका न गया तो समाज टूट कर बिखर जायेगा. इसे रोकने का एक ही उपाय है, परस्पर प्रेम और आदर. मेरे भाई और बहनों, ख़ुद को और समाज को हिंसा से बचाओ. प्रेम करो सबसे, नफरत न करो किसी से. 

Wednesday, November 05, 2008

मेरे पापा सबसे अच्छे हैं

कुछ दिन पहले एक विज्ञापन आता था टीवी पर - मेरे पापा सबसे अच्छे हैं. बच्चे के मुंह से सुन कर यह अच्छा लगता था. पर जब बड़े यह कहते हैं कि मेरा अल्लाह या मेरा खुदा तुम्हारे ईश्वर से अच्छा है तब कुछ अजीब लगता है. उस बच्चे ने तो अपने पिता को देखा था, उन से बातें की थीं, उनके साथ रहा था. पर इन लोगों ने तो अल्लाह को देखा है और न खुदा को और न ही ईश्वर को. यह लोग ऐसा कैसे कह देते हैं? टीवी पर फ़िर से एक विज्ञापन आना चाहिए - सब के पापा अच्छे हैं. शायद उसे देख कर यह लोग कहने लगें कि अल्लाह, खुदा और ईश्वर सब अच्छे हैं, एक समान अच्छे हैं.

Tuesday, November 04, 2008

प्रतियोगिता

आज कल हिन्दी ब्लाग जगत में,
एक प्रतियोगिता चल रही है, 
प्रेम और नफरत में,
देखें कौन जीतता है?