दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो.

Monday, September 29, 2008

नवरात्रों की शुभकामनाएं

कल से नवरात्रे प्रारंभ हो रहे हैं. नों दिन तक सारा भारत मां की भक्ति और प्रेम में डूबा रहेगा. आप सब पर मां की कृपा बनी रहे.

Friday, September 26, 2008

है ईश्वर!!!

आकांक्षा पारे ने 'मोहल्ला' पर जो कविता लिखी वह मुझे बहुत अच्छी लगी।

मैं नहीं जानता यह सही है या ग़लत, पर हाँ अगर उसे मैं लिखता तो ऐसी होती वह कविता:

ईश्‍वर!
सड़क बुहारता भीकू मुझे अपवित्र नहीं करता,
उस से छूकर भी बिल्कुल पवित्र पहुंचता हूं तुम्‍हारे मंदिर में
तुम्हारा अंगना भी तो वह ही बुहारता है.

ईश्‍वर!
जूठन साफ करती रामी के बेटे की नज़र नहीं लगती,
तुम्‍हारे लिए मोहनभोग की थाली पर,
इस लिए उसे ढंकने की जरूरत नहीं पड़ती
क्योंकि तुम्ही तो खाओगे उसे
रामी के बेटे के रूप में.

ईश्‍वर!
दो चोटियां गुंथे रानी आ कर मचले तो
तुम्‍हारे शृंगार के लिए तोड़े फूल
उसे दे देता हूँ
क्योंकि रानी में तुम्हारा रूप ही तो है

ईश्‍वर!
अभी परसों मैंने रखा था व्रत
दूध, फल, मेवे और मिठाई खूब खाई
तुम हँसते तो होगे मेरे इस नाटक पर
पर घर वालों ने खूब तारीफ़ की.

ईश्‍वर!
ख़ुद को तुम्‍हारा प्रतिनिधि समझने वाले पंडितों से पहले,
मैंने खिलाया जी भर,
दरवाज़े पर दो रोटी की आस लिये आये व्‍यक्ति को
फ़िर चरण छू कर लिया आशीर्वाद
मैंने पहचान लिया था तुम्हें.

ईश्वर!
अपने हिसाब से पूजता रहा तुझे,
अपने हिसाब से भुनाता रहा तुझे,
अपने हिसाब से बांटता रहा तुझे,
फायदा मिला तो मैंने किया,
नुक्सान हुआ तो तेरे मत्थे.

ईश्‍वर!
इतने बरसों से
तुम्‍हारी भक्ति, सेवा और श्रद्धा में लीन हूं
यह भक्ति, सेवा और श्रद्धा बनी रहे
मुझे विश्वास है आओगे एक दिन दर्शन देने,
जैसे आए थे शबरी के घर.

काबा से संबधित कुछ और तस्वीरें

काबा इंटीरियर से सम्बंधित कुछ और तस्वीरें भी -मेल में आई थीं उन्हें भी पोस्ट कर रहा हूँ उम्मीद करता आप सब को पसंद आएँगी

एक निवेदन है आपसे अगर किसी को इन या पिछली पोस्ट की तस्वीरों के बारे में जानकारी हो तो टिपण्णी के रूप में पोस्ट करें










Thursday, September 25, 2008

काबा - कुछ तस्वीरें

रमजान चल रहे हैं. यह तस्वीरें मुझे ई-मेल में मिलीं। सोचा आप से बांटता चलूँ।
गर्ल्ज्ग्रुप से साभार

Tuesday, September 23, 2008

क्यों हो रहे हैं हमले चर्चों पर?

किसी भी धार्मिक स्थान पर हमला करना ईश्वर के प्रति अपराध है.
पर जहाँ जगह मिली, सरकारी जमीन पर भी, मन्दिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारा बना देना भी अपराध है.
क्या मन्दिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारा की संख्या कम है इस देश में, कि जहाँ मौका मिलता है नया बनाना शुरू कर देते हैं?
किसी को कोई तकलीफ नहीं अगर सब अपने-अपने धर्म के अनुसार आचरण करें और दूसरों को उन के धर्म के अनुसार आचरण करने दें.
पर अगर कुछ धर्मों के लोग दूसरों के धर्म में हस्तक्षेप करने लगें तो यह ग़लत है. इस से दूसरों को तकलीफ होती है. जब यह तकलीफ सहन शक्ति से बाहर हो जाती है तो वह विरोध करते हैं.
अगर किसी धर्म के अनुयायी यह कहते हैं कि उन का धर्म उन्हें दूसरों का धर्म बदलने की आज्ञा देता है तो यह ग़लत है.
किसी को किसी का धर्म बदलने का अधिकार नहीं है.
कोई गरीब है, कोई तकलीफ में है, इसलिए उसे कहा जाय कि तुम अपना धर्म बदल लो तो हम तुम्हारी मदद करेंगे, यह भी ईश्वर के प्रति अपराध है. क्या इन का धर्म यह कहता है कि केवल अपने धर्म वालों की मदद करो? किसी दूसरे धर्म वाले की मदद तब करो जब तो तुम्हारे धर्म में शामिल हो जाए. यह तो धर्म नहीं है. यह तो बहुत ग़लत बात है.
आज चर्चों पर हमले हो रहे हैं. इस की खूब निंदा की जा रही है. की भी जानी चाहिए. पर साथ ही धर्म बदलने की भी निंदा की जानी चाहिए. कोई इस की निंदा क्यों नहीं करता? लोग कारण के परिणाम को ग़लत कहते हैं, कारण को ग़लत क्यों नहीं कहते?
अल्पसंख्यकों को अपने धर्म के अनुसार आचरण करने की पूरी आज़ादी है इस देश में. पर अगर यह अल्पसंख्यक बहुसंख्यकों का धर्म बदलने का षड़यंत्र करेंगे तो उस का अगर अनपेक्षित परिणाम भुगतना हुआ तो इस के लिए यह ख़ुद जिम्मेदार हैं. अगर बबूल बोयेंगे तो आम नहीं मिलेंगे, बबूल ही मिलेगा.
धर्म परिवर्तन बंद कीजिए, चर्चों पर हमले बंद हो जायेंगे.

Sunday, September 21, 2008

तुम्हारा धर्म क्या है, यह कौन तय करेगा?

प्रेम ईश्वर का धर्म है.
नफरत शैतान का धर्म है.
यह तुम्हें तय करना है,
कि तुम किस धर्म के हो?

आतंकवादियों को तुम्हारे धर्म को बदनाम मत करने दो.
नेताओं को तुम्हारे धर्म से खिलबाड़ मत करने दो.
आतंकवादी किस के दुश्मन हैं?, पहचानो.
कभी कोई नेता मरा है बम धमाको में?
जो मरे वह आम आदमी थे, तुम्हारे जैसे.
वह तुम भी हो सकते थे.
वह हिंदू भी थे, मुसलमान भी.
सिख भी और ईसाई भी.

आतंकवादी आम आदमी के दुश्मन हैं.
तुम यह क्यों नहीं समझते?
वह लड़ाना चाहते हैं हिंदू और मुसलमानों को.
यही नेता भी चाहते हैं.
पिछले साठ-सत्तर सालों से वह यही कर रहे हैं.
हर बम धमाके के बाद वह तिलमिला जाते हैं.
क्योंकि उनका मकसद पूरा नहीं होता.
कितने आम आदमी मर जाते हैं.
पर हिंदू-मुस्लिम झगड़ा नहीं होता.
मैं नमन करता हूँ आम आदमी को,
वह मर जाता है पर इन का मकसद पूरा नहीं होने देता.

मुझे यही तकलीफ हमेशा होती है.
कि तुम अपने दुश्मनों को अभी भी नहीं पहचान रहे.
आतंकवादी तुम्हारे दुश्मन हैं.
आतंकवादी और नेता एक सिक्के के दो पहलू हैं.
आम आदमी का दोस्त केवल आम आदमी है.
जो हिंदू है, मुसलमान भी,
सिख भी है और ईसाई भी.
यह सीधी सी बात तुम्हारी समझ में क्यों नहीं आती?

Friday, September 19, 2008

बम धमाकों के बाद का आतंकवाद

दिल्ली में बम धमाके हुए. बहुत से निर्दोष नागरिक मारे गए. इनके कातिलों ने क्या हासिल किया यह तो वही जानें, पर बहुत से परिवारों ने अपना सब कुछ खो दिया. रोज अखबारों में आतंकवाद की भेंट चढ़ गए इन मासूम इंसानों औए उनके गम में डूबे परिवार जनों के बारे में खबरें आ रही हैं. साथ ही आ रही हैं, एक और आतंकवाद की खबरें जो वरपा किया है सरकार और उस के बाबुओं ने.

एक दिन सुना कि बाबुओं ने सहायता के चेक बना दिए मृतकों के नाम में. मेरे एक मित्र बहुत नाराज थे इस बात पर, कहने लगे जिस बाबु ने चेक बनाया है उसे ही मृतक के पास पर्सनल डिलीवरी के लिए भेजना चाहिए. बहुत से लोग गरीब हैं, उन के पास बेंक एकाउंट नहीं हैं. वह कैसे इन चेकों को केश करेंगे? बहुत से पीड़ित अभी तक इंतज़ार कर रहे हैं किसी सहायता की. सरकार ने घोषणा कर दी सहायता की पर कैसे वह सहायता पहुँचेगी पीड़ितों तक इस के बारे में कोई चिंता नहीं की. कैसी सरकार है यह, इसे पता था कि दिल्ली में धमाकों की तैयारी हो गई है, पर इस सरकार ने कुछ नहीं किया. बस बड़ी बेशर्मी से पाटिल ने कह दिया कि हमें यह पता नहीं था कि धमाके कहाँ और कब होंगे. ऐसी सरकार और ऐसे ग्रह मंत्री का क्या फायदा?
अब राजनीति कर रही है सरकार.

कभी मुझे लगता है कि अगर आज कहीं बम धमाका नहीं हुआ तो वह आतंकवादियों की वजह से है, उन्होंने बम धमाका करने का कोई कार्यक्रम ही नहीं बनाया था. इस में इस देश की सरकार, पुलिस, खुफिया एजेंसियां का कोई योगदान नहीं है. आज कोई भारतीय नागरिक अगर जिन्दा है तो इस लिए नहीं कि सरकार ने उसे बचा लिया है, बल्कि इस लिए कि आतंकवादियों ने कोई धमाका नही किया या उस का आखिरी वक्त अभी नहीं आया है. अब इस देश में कोई भी सुरक्षित नहीं है, सिवाय इन घटिया नेताओं और उन के परिवारवालों के.

Tuesday, September 16, 2008

इंसानियत के कातिलों दफा हो जाओ

मजहब के नाम पर इंसानों का खून बहाने वाले कातिलों दफा हो जाओ इस मुल्क से, और ले जाओ अपने साथ उन सबको जो परोक्ष या अपरोक्ष रूप से तुमसे हमदर्दी रखते हैं या खून बहाने में तुम्हारी मदद करते हैं. इन में हिंदू भी हैं और मुसलमान भी, पर अब वह सिर्फ़ कातिल हैं, और कातिलों का कोई मजहब नहीं होता. यह सिर्फ़ इंसानियत के दुश्मन हैं. इंसानी हमदर्दी नाम की कोई चीज इन के अन्दर नहीं है. दिल्ली में जिन का खून वहा वह इंसान थे. तुमने उन्हें मार कर अपनी शान में कसीदे पढ़े. तुम्हारे कुछ हिमायतियों ने कुरान का वास्ता दे कर यह समझाया कि कुरान इस की इजाजत नहीं देता. तुम्हारे कुछ और हिमायतियों ने कुछ हिंदू संगठनों का नाम ले कर तुम्हारे इस खून-खराबे को सही साबित करने की कोशिश की. वोटों का कारोबार करने वालों ने मजहब को बीच में लाकर मुसलमानों के वोट पक्के करने की कोशिश की. पर किसी ने भी अपनी जुबान या अपने कलम से सहानुभूति के दो शब्द नहीं कहे या लिखे उन निर्दोष इंसानों के बारे में जो मर गए और जिनके परिवार दुःख और तकलीफ के समंदर में डूब गए हैं.

मुझे इस देश के मुसलमानों और उन के हिमायतियों से यह पूछना है. यह बार-बार कुरान का वास्ता क्यों देते हो तुम लोग? क्या कभी किसी ने यह कहा है कि कुरान ग़लत है? क्या कभी किसी ने इस्लाम को ग़लत कहा है? सब मानते हैं और कहते हैं कि कोई धर्म हिंसा करने की इजाजत नहीं देता. हाँ यह जरूर कहा है कि इंसानियत के दुश्मन धर्म की शिक्षाओं का ग़लत मतलब करके भोले-भाले इंसानों को बहकाते हैं. यह कहना तो ग़लत नहीं है. और यह बात सब धर्मों के लोगों पर लागू होती है. अगर तुम यह मानते हो कि जो कुछ हो रहा है ग़लत है और इस्लाम की शिक्षा के खिलाफ है, तो तुम इन कातिलों की निंदा क्यों नहीं करते. सिर्फ़ कुरान की बात करके ही खामोश क्यों हो जाते हो? क्यों नहीं इन कातिलों को बेनकाब करते? क्यों नहीं इन को मुस्लिम बिरादरी से बाहर करते? जो गैर-मुस्लिम तुम्हारे हिमायती बनते हैं, उनसे क्यों नहीं कहते, 'अपनी बकवास बंद करो, बहुत इस्तेमाल कर लिया तुमने हमें अपने फायदे के लिए, अब हमें तुम्हारी इस नाजायज हमदर्दी की जरूरत नहीं है'?

अगर तुम्हे तकलीफ होती है इस बात से कि हर खून-खराबे के बाद मुसलमान कठघरे में क्यों खड़े कर दिए जाते हैं तो तुम खुले शब्दों में इन खून-खराबों की निंदा करके ख़ुद को इन कातिलों से अलग क्यों नहीं करते? क्यों इधर-उधर की बातें करके मामले को उलझाते हो? इस से दूसरों के मन में अविश्वास बढ़ता है. जो मरे हैं वह आम आदमी हैं, उन में हिंदू भी हैं, मुसलमान भी. उनके साथ खड़े हो जाओ, उन की तकलीफ महसूस करो. इधर-उधर की बातें कर के उनके जख्मों पर नमक मत छिड़को.

इस मुल्क में यह कहना कि 'इस्लाम खतरे में है', क्या परले दर्जे की वेबकूफी नहीं है? इस्लाम इस मुल्क में क्या आज की बात है? कितने साल तो मुस्लिम शासकों ने ही राज किया इस देश पर. अंग्रेजों की हुकूमत के ख़िलाफ़ हिंदू और मुसलमान दोनों मिल कर लड़े. पर कुछ लोगों ने अपने फायदे के लिए हिंदू-मुसलमानों को ही लड़वा दिया, और आज भी लड़वा रहे हैं. क्या तुम यह सब नहीं जानते? क्या अब भी तुम्हें यह बताने की जरूरत है? इस्लाम और मुसलमान हिन्दुस्तान से ज्यादा किसी और देश में सुरक्षित नहीं हो सकते. हिन्दुस्तान ही एक ऐसा मुल्क है जहाँ एक मुसलमान, राष्ट्रपति बन सकता है, चीफ जस्टिस बन सकता है, फौज का अफसर बन सकता है. यह बात तुम क्यों भूल जाते हो?

इंसानियत के इन दुश्मनों का साथ मत दो. निर्दोष इंसानों का खून बहाना अल्लाह के, भगवान् के ख़िलाफ़ अपराध है. इन की हिमायत करके तुम भी इस अपराध में शामिल हो रहे हो. जरा सोचो, क्या ऐसा करके तुम अपना ही नुक्सान नहीं कर रहे हो? क्या जवाब दोगे अल्लाह को, भगवान को? अभी भी समय है चेत जाओ, ख़ुद को इन कातिलों से अलग करो और धकेल दो इन्हें इस मुल्क के बाहर.

Monday, September 15, 2008

मुझे बचपन से यही तालीम मिली है

एक ब्लाग है, 'मेरी डायरी'. उस की सूत्रधार हें फिरदौस। उन की हाल की पोस्ट में मुझे एक बात बहुत अच्छी लगी। आप भी पढ़िये। उन की यह बात यहाँ पोस्ट करने से पहले मैंने उन की इजाजत नहीं ली है, पर यह उम्मीद करता हूँ वह बुरा नहीं मानेंगी। अगर बुरा मानेंगी तो यह बात इस पोस्ट से हटा दूँगा।

"मैं भी जब रात को सोती हूं तो दिल से उन सभी लोगों को माफ़ कर देती हूं, जिन्होंने मेरा बुरा किया हो...और अल्लाह से भी दुआ करती हूं कि उन्हें माफ़ कर देना...और जाने या अनजाने में मुझसे कुछ ग़लत हो गया हो तो उसके लिए भी मुझे माफ़ कर देना...मुझे बचपन से यही तालीम मिली है..."

मेरी मां सोने से पहले और सुबह विस्तर से उठने से पहले ईश्वर की प्रार्थना करती थीं। मैं भी कोशिश करता हूँ यह करने की। बहुत शान्ति मिलती है इस से।

आज का अखबार पढ़ कर मन बहुत दुखी हुआ। अखबार उन निर्दोष नागरिकों के बारे में ख़बरों से भरा हुआ है जो दिल्ली के बम धमाकों में मारे गए, और अब उन के परिवारों पर क्या गुजर रही है? ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे और उन के परिवारों को हिम्मत दे इस दुःख को सहन करने की। हम सब ईश्वर का धन्यवाद करें कि उस की कृपा से हम सुरक्षित हें। मरने वालों में हम भी हो सकते थे।

प्रेम करो सबसे, नफरत न करो किसी से।

Sunday, September 14, 2008

नहीं यह अल्लाह की मर्जी नहीं हो सकती

जिस अल्लाह के नाम पर कल कुछ कातिलों ने दिल्ली में बहुत से निर्दोष इंसानों को मार डाला वह अल्लाह नहीं हो सकता. अल्लाह तो प्रेम का एक रूप है. सारे इंसान उस के बच्चे हैं. कोई पिता अपने बच्चों में भेदभाव नहीं करता. कोई पिता यह नहीं चाह सकता कि उस के कुछ बच्चे दूसरे बच्चों को मार डालें. यह कातिल शैतान के बच्चे हैं और अल्लाह को बदनाम कर रहे हैं. अल्लाह के हर बन्दे का यह कर्तव्य है कि वह इन कातिलों को बेनकाब करे. इन की मदद करना, इन्हें अपने घर में पनाह देना, इन के द्वारा किए जा रहे खून खराबे को मजहब के नाम पर सही ठहराना, अल्लाह के ख़िलाफ़ एक ऐसा गुनाह है जिस की कोई माफ़ी नहीं हो सकती.

मेरे मन में कुछ सवाल उठते हैं. क्या कोई सच्चा मुसलमान रमजान के महीने में किसी इंसान का खून बहा सकता है? क्या इस्लाम इस की इजाजत देता है? क्या निर्दोष इंसानों का खून बहा कर कोई अपने को मुसलमान कह सकता है? क्या मुसलमानों को ऐसे कातिलों को अपनी मुस्लिम बिरादरी का हिस्सा मानना चाहिए? क्या अल्लाह और शैतान के बन्दे एक साथ रह सकते हैं? क्या उन में कोई भाईचारा हो सकता है. अगर इन सवालों का जबाब 'नहीं' है तो हिन्दुस्तान के मुसलमान इन कातिलों से अपने रिश्ते क्यों नहीं तोड़ते, क्यों इन कातिलों को अपनी बिरादरी से बाहर नहीं निकालते, क्यों इन कातिलों को 'शैतान की औलाद' करार देते? इस सब के बाद एक सवाल उठता है - 'क्या हिन्दुस्तान के मुसलमान इन कातिलों के साथ हैं, और इस खून-खराबे में इन कातिलों का साथ देते हैं?

यही सवाल इस देश की सरकार से भी पूछता हूँ में. और यह सवाल भी कि वह क्यों इन कातिलों के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने से डरती है? यह सरकार ऐसा क्यों सोचती है कि इन कातिलों को फांसी पर लटकाने से हिन्दुस्तान के मुसलमान उस के ख़िलाफ़ हो जायेंगे? क्या इस का सीधा मतलब यह नहीं है कि यह सरकार मानती है कि इस खून-खराबे में हिन्दुतान के मुसलमान शामिल हैं? इन के वोट हासिल करने के लिए वह कब तक निर्दोष हिन्दुस्तानियों का खून बहाती रहेगी?

लालू, पासवान और मुलायम उस सरकार में मंत्री हैं जो सिमी को एक आतंकवादी संगठन मानती है. जिस सरकार के मुखिया ने कल कहा कि इन कातिलों के ख़िलाफ़ लड़ाई उन की सरकार की मुख्य प्राथमिकता है. सिमी और उस के द्वारा किए जा रहे खून खराबे को समर्थन देने वाले यह जन-देश-विरोधी नेता कैसे उस सरकार में मंत्री बने हुए हैं? क्यों नहीं सरकार के मुखिया इन जन-देश-विरोधी नेताओं को अपनी सरकार से बर्खास्त करते और उन के ख़िलाफ़ कार्यवाही करते? कितने और हिन्दुस्तानियो को मरवाएगी यह सरकार?

मैंने अपनी पिछली पोस्ट में हिन्दुस्तान के मुसलमानों को रमजान की मुबारकवाद दी थी. अब मैं क्या कहूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा.

Sunday, September 07, 2008

यह कैसे अल्पसंख्यक हें?

भारत में ईसाई अल्पंख्यक हें इसलिए उन्हें अपने धर्म के अनुसार जीवन यापन करने के लिए हर आजादी और सुविधाएं दी जाती हें। उन्हें यहाँ तक भी आजादी दे दी गई है कि वह सही-ग़लत हर तरीके से बहुसंख्यक हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करें। बहुत ऊंची-ऊंची बातें कही जाती हें इसके समर्थन में. कहा जाता है की हर व्यक्ति को अपना धर्म चुनने का अधिकार है. अगर यह अधिकार है तो कोई कैसे किसी हिंदू के हिंदू होने के अधिकार को छीन सकता है, उसे जबरन या लालच दे कर? अफ़सोस की बात यह है की बहुत सारे हिंदू भी इस ग़लत बात के पक्ष में बोलते हैं.

कंधमाल में इसाई जबरन धर्म परिवर्तन में लगे हैं.एक स्वामी जी इसका विरोध कर रहे थे। उनकी और उन के चार चेलों की हत्या कर दी गई. इस पर वहां के हिंदू भड़क उठे और दंगा हो गया। इससे पादरियों ने चिल्लाना शुरू किया, फ़िर पोप चिल्लाये, पादरी प्रधानमंत्री से मिले, अदालत ने प्रदेश सरकार को ईसाइयों को बचने के निर्देश दिए, पर किसी ने भी स्वामी जी और उनके चेलों की हत्या की निंदा नहीं की। किसी ने भी पादरियों से यह नहीं कहा कि आप धर्म परिवर्तन करना बंद क्यों नहीं करते। किसी ने भी इन्हें यह नहीं समझाया कि आप को जो आजादी और सुविधाएं मिली हें आप उनका नाजायज फायदा उठाना बंद करें। बस इस देश में सारी सीख हिन्दुओं के लिए है - भाई आप बहुसंख्यक हें इस लिए मरो और चुप रहो।


आज अखबार में एक लेख छपा है कि कैसे ईसाई मत का धंदा हो रहा है? कैसे रोज नए-नए चर्च बन रहे हें? आप भी पढ़िये

Friday, September 05, 2008

यह स्कूल है, मन्दिर नहीं

जयपुर के एक ईसाई स्कूल में कुछ छात्र इस लिए निष्काषित कर दिए गए क्योंकि उन्होंने अपने क्लास रूम में गणेश पूजा की। ऐसा करते हुए स्कूल प्रशासन ने कहा कि यह स्कूल है मन्दिर नहीं। अजीब बात है कि एक स्कूल चर्च तो हो सकता है पर मन्दिर नहीं हो सकता। एक स्कूल मस्जिद हो सकता है पर मन्दिर नहीं हो सकता।

बचपन में पढ़ा था कि स्कूल ज्ञान का मन्दिर होते हें। पर शायद यह बात सब स्कूलों पर लागू नहीं होती। कुछ स्कूल ज्ञान का चर्च होते हें। इन्हें मन्दिर की तरह देखने पर सजा मिलती है। सारे संसार में शायद भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ लोग ऐसा कह सकते हें और छात्रों को स्कूल से निकाल सकते हें।

हिन्दू संघटनों ने इसका विरोध किया। ईश्वर की कृपा से मामला सुलझ गया। स्कूल प्रशासन ने छात्रों को स्कूल में वापस लेने का निर्णय किया। मगर एक बात की कमी रही। इस बात पर पोप का कोई बयान नहीं आया। शायद वह तब बयान देते जब हिंसा हो जाती और कोई ईसाई मारा जाता। जैसा उन्होंने उड़ीसा के सन्दर्भ में कहा।

Tuesday, September 02, 2008

क्यों परेशां हो बदलने को धर्म दूसरों का?

पोप ने उड़ीसा में हुई हिंसा पर दुःख प्रकट किया और निंदा की. लेकिन यह दुःख और निंदा दोनों अपने ईसाई भाई-बहनों के लिए थी. हिंदू भाई-बहनों के लिए न उनके पास दिल है और न समय. जो ईसाई इस हिंसा में मरे उनके लिए पोप ने आंसू बहाए, पर स्वामीजी और उनके चार चेलों के लिए न उनके पास आंसू हैं और न कोई सहानुभूति का शब्द.

शुरुआत किसने की? स्वामीजी और उनके चार चेलों को क्यों मारा गया? क्या यह धर्म के नाम पर हिंसा नहीं है? इन लोगों को मार कर ईसाई क्या सोच रहे थे कि हिन्दुओं को दुःख नहीं होगा? क्या वह चुपचाप कभी मुस्लिम आतंकवादियों और कभी ईसाईयों द्वारा मारे जाते रहेंगे और कुछ नहीं कहेंगे? क्या हिन्दुओं को तकलीफ नहीं होती? क्या जब उनकी दुर्गा माता की नंगी तस्वीर बनाई जाती है तो उनका दिल नहीं दुखता? इन सवालों का जवाब क्या है और कौन यह जवाब देगा?

जब भी कभी किसी मुसलमान या ईसाई के साथ अन्याय होता है, सारे मुसलमान, सारे ईसाई और बहुत सारे हिंदू खूब चिल्लाते हैं. हिन्दुओं को गालियाँ देते हैं. उनके संगठनों पर पाबंदी लगाने की बात करते हैं. भारतीय प्रजातंत्र तक को गालियाँ दी जाने लगती हैं. पर जब हिन्दुओं के साथ अन्याय होता है तो यह सब चुप रहते हैं. कश्मीर से पंडित बाहर निकाल दिए गए, कौन बोला इन में से? जम्मू में आतंकवादियों ने कई हिन्दुओं को मार डाला, कौन बोला इन में से? मुझे लगता है कि मुसलमान और ईसाईयों से ऐसी उम्मीद करना सही नहीं है कि वह कभी किसी हिंदू पर अन्याय होने पर दुःख प्रकट करेंगे. शायद उनके धर्म में ही यह नहीं है. पर हिंदू तो हिन्दुओं को गाली देना बंद करें. जब हिंदू हिंदू को गाली देता है तो मुसलमान और ईसाईयों का हौसला बढ़ता है. मुझे यकीन है कि अगर हिंदू हिंदू को गाली देना बंद कर दे तो भारत में धरम के नाम पर दंगे कम हो जायेंगे. हिन्दुओं का एक होना जरूरी है, मुसलमानों और ईसाईयों के खिलाफ नहीं, बल्कि मुसलमानों और ईसाईयों को यह बताने के लिए कि भारत में हिन्दुओं के साथ मिल जुल कर रहो. इसी में सबकी भलाई है.

न हिंदू बुरा है,
न मुसलमान बुरा है,
करता है जो नफरत,
वो इंसान बुरा है.

और अब एक निवेदन पोप से:

क्यों परेशां हो?
बदलने को धर्म दूसरों का,
खुदा का कोई धर्म नहीं होता.