भारत में ईसाई अल्पंख्यक हें इसलिए उन्हें अपने धर्म के अनुसार जीवन यापन करने के लिए हर आजादी और सुविधाएं दी जाती हें। उन्हें यहाँ तक भी आजादी दे दी गई है कि वह सही-ग़लत हर तरीके से बहुसंख्यक हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करें। बहुत ऊंची-ऊंची बातें कही जाती हें इसके समर्थन में. कहा जाता है की हर व्यक्ति को अपना धर्म चुनने का अधिकार है. अगर यह अधिकार है तो कोई कैसे किसी हिंदू के हिंदू होने के अधिकार को छीन सकता है, उसे जबरन या लालच दे कर? अफ़सोस की बात यह है की बहुत सारे हिंदू भी इस ग़लत बात के पक्ष में बोलते हैं.
कंधमाल में इसाई जबरन धर्म परिवर्तन में लगे हैं.एक स्वामी जी इसका विरोध कर रहे थे। उनकी और उन के चार चेलों की हत्या कर दी गई. इस पर वहां के हिंदू भड़क उठे और दंगा हो गया। इससे पादरियों ने चिल्लाना शुरू किया, फ़िर पोप चिल्लाये, पादरी प्रधानमंत्री से मिले, अदालत ने प्रदेश सरकार को ईसाइयों को बचने के निर्देश दिए, पर किसी ने भी स्वामी जी और उनके चेलों की हत्या की निंदा नहीं की। किसी ने भी पादरियों से यह नहीं कहा कि आप धर्म परिवर्तन करना बंद क्यों नहीं करते। किसी ने भी इन्हें यह नहीं समझाया कि आप को जो आजादी और सुविधाएं मिली हें आप उनका नाजायज फायदा उठाना बंद करें। बस इस देश में सारी सीख हिन्दुओं के लिए है - भाई आप बहुसंख्यक हें इस लिए मरो और चुप रहो।
आज अखबार में एक लेख छपा है कि कैसे ईसाई मत का धंदा हो रहा है? कैसे रोज नए-नए चर्च बन रहे हें? आप भी पढ़िये।
12 comments:
apka lekh har baar ki tarah is baar bhi vichaarniya hai....meerut ke kai shetro mai essi gatnaaye aae din goti hai....bawaal hota hai fir shaant ho jaata hai...lekin is ki jad mai jaana chahiye...
स्वामी लक्ष्मणानन्द की के शहादत को हम निरर्थक नही होने देंगें। ईसाईयो द्वारा विदेशी धन के प्रयोग से लोभ-लालच के द्वारा जो धर्म परिवर्तन उद्योग चल रहा है वह देशहित मे नही है । यह धर्मानंतरण वास्तव मे राष्ट्रांतरण है । हमारे अनुभव हमे बताते है की कोई भारतीय का धर्म परिवर्तन होता है तो वास्तव मे उसकी राश्ट्रिय आस्था मे भी परिवर्तन होता है।
हम अपने घर मे ही वेगाने बने फ़िरते हे
ये सूरत बदलनी चाहिए.
सही बात तो ये है कि ये इसाई प्रचारक ही सारे फ़साद की जड़ हैं। ये ही अशान्ति की आग को लगातार खोरते रहते हैं, भोले-भाले लोगों पर डोरे डालना और अपने प्रपंच में फसाना ही इनका उद्योग है।
ये भारत में गुलामी के अग्रदूत रहे। आज भी विदेशी नागरिक इसाई धर्मप्रचारक बन कर भारत में जासूसी कर रहे हैं - इसके संकेत बार-बार मिलते रहते हैं। पश्चिम में सारे चर्च धूल खा रहे हैं तो ये भारत के हर गाँव को चर्चगामी बनाने के उद्योग में जुड़े हुए हैं। दुनिया आगे चली गयी, ये भारत को पीछे धकेलने में लगे हुए हैं।
भारत अनादि काल से प्रगामी विचारों का शोधक और पोषक रहा है, वह इस प्रपंच को असफल करके रहेगा।
ईसाई ,जो स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से ही गरीबों और पीड़ितो की सहायता करने के लिए आसानी से हमारे देश में आते हैं , वे भी लोगोa को ईसाई धर्म अपनाने को प्रेरित या बाध्य करते हैं , पता नहीं ऐसा क्यों और जबकि भारत का उदार धर्म यह eानता है कि भगवान एक है।
seva sirf isai banne par hi kyon,jo isai na bane uski seva kyon nahi karte ye log
बहुत सही विश्लेषण प्रस्तुत किया है आप ने. "अल्पसंख्यक" होने का नाजायज फायदा किसी को नहीं मिलना चाहिये
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- हिन्दी चिट्ठाकारी के विकास के लिये जरूरी है कि हम सब अपनी टिप्पणियों से एक दूसरे को प्रोत्साहित करें
धार्मिक स्थल दूकाने है और अनुयायी बधें बंधाए ग्राहक. नए नए ग्राहक कब्जाने का अभियान है यह.
मुझे एक खुशगवार काम सौंपा गया था। जो मैंने पूरा कर लिया है। कृपया मेरे व्लॉग कच्चा चिट्ठापर जायें वहॉं आपके लिये एक तोहफा है।
धर्म व्यक्तिगत है, किसी को जबरदस्ती और अपनी परम्पराएं लादने का अधिकार नही होना चाहिए ! हमारे धर्म की ही यह विशेषता रही है कि हमने किसी को यह कभी नही कहा कि आइये हिंदू बन जाइए !
धर्म व्यक्ति की निजी आस्था है। उससे किसी भी तरह का खिलवाड नहीं होना चाहिए।
Post a Comment