दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो.

Monday, January 17, 2011

धर्म के नाम पर विभाजन की राजनीति

धर्म के आधार पर लोगों को विभाजित करने की कुत्सित राजनीति हमारे देश को घोर नुक्सान पहुंचा रही है. नागरिकों की कितनी ही ऊर्जा आपस के झगड़ों में नष्ट हो जाती है. अगर इस ऊर्जा का संचय किया जाय और उसे राष्ट्र निर्माण में लगाया जाय तब हमारे देश को विश्व का शिरमौर बनने में देर नहीं लगेगी.

राजनीतिक दल एक दूसरे से होड़ करने में लगे रहते हैं कि कैसे किस धर्म विशेष के अनुयायिओं को अपने वोट बेंक में बदल लिया जाय. इसके लिए यह दल उस धर्म के अनुयायिओं के मन में दूसरे धर्म के प्रति डर और नफरत पैदा करते हैं. उन्हें आपस में मिलने नहीं देते. इस के लिए उन धर्मों के तथाकथित स्वयम सिद्ध नेता इन दलों की मदद करते हैं. राजनितिक दल इन धार्मिक नेताओं की हर गलत-सही बात का समर्थन करते हैं.

पिछले दिनों दिल्ली में हाई कोर्ट के आदेश पर डीडीए ने अवैध रूप से सरकारी जमीन पर बनी एक मस्जिद गिरा दी. इस पर
उस छेत्र के कुछ मुसलमान सड़क पर आ कर आन्दोलन करने लगे. मुस्लिम धार्मिक नेता, दिल्ली के शाही ईमाम ने उन्हें समझाया नहीं बल्कि और ज्यादा भड़काया. ईमाम के भड़काने से लोग हिंसक हो गए और सड़क पर तोड़-फोड़ करने लगे, कई प्राईवेट कारें और बसें तोड़ डालीं. ईमाम को एक जिम्मेदार नेता की भूमिका अदा करनी चाहिए थी, लोगों को समझाना चाहिए था कि सरकारी जमीन पर अवैध रूप से मस्जिद बनाना कानून का उल्लंघन है. वह जमीन एक सामुदायिक केंद्र के लिए सुरक्षित की गई थी. अगर वहां पर सामुदायिक केंद्र बनता तब वहां के सभी निवासियों का फायदा होता. पर ईमाम ने लोगो को और कानून तोड़ने के लिए भड़काया.

राजनीतिक दलों ने भी इस परिस्थिति का गलत फायदा उठाया. पहले तो दिल्ली की मुख्य मंत्री दौड़ी हुई ईमाम के पास गईं, मस्जिद को दुबारा बनबाने का वचन दिया, सरकारी जमीन पर नमाज पढने के लिए इजाजत दी. केंद्र सरकार के गृह मंत्री और नगर विकास मंत्री ने अपने दूत यही भरोसा दिलाने के लिए ईमाम के पास भेजे. दूसरे दिन ईमाम ने लोगों को सरकारी जमीन पर नमाज पढ़वाई. पुलिस मूक दर्शक बनी रही. नमाज पढने के दौरान कुछ लोगों ने दीवार बनानी शुरू करदी. शाम होते-होते सरकारी जमीन को फिर से दीवार और टीन की चादरों से घेर और ढक दिया गया. कितनी शर्म की बात है, मुस्लिम वोटों के लिए सरकार ने खुद लोगों को कानून तोड़ने की इजाजत दी. दूसरे राजनीतिक दल कहाँ पीछे रहने वाले थे. मुलायम सिंह तुरंत अपने साथियों के साथ ईमाम के दरबार में हाजिरी लगाने पहुँच गए. उसके बाद अमर सिंह और जयप्रदा भी द्रब्बर में हाजिर हुए. इन्होनें भी ईमाम को आश्वासन दिया की उनके अवैध संघर्ष में वह उनके साथ हैं.

यह घटिया नेता देश को क्या सही दिशा देंगे जब खुद ही दिशाहीन हैं. कुर्सी के लिए नागरिकों के बीच नफरत का जहर उगल रहे हैं. ईश्वर इन्हें सद्वुद्धि दो.

Friday, December 24, 2010

Bhojan Mantra

Do you recite Bhojan Mantra before you eat your food - If not this is a good way to start-
Listen Audio
अन्न ग्रहण करने से पहले
विचार मन मे करना है
किस हेतु से इस शरीर का
रक्षण पोषण करना है

हे परमेश्वर एक प्रार्थना
नित्य तुम्हारे चरणो में
लग जाये तन मन धन मेरा
विश्व धर्म की सेवा में ॥

ब्रहमार्पणं ब्रहमहविर्‌ब्रहमाग्नौ ब्रहमणा हुतम् ।
ब्रहमैव तेन गन्तव्यं ब्रहमकर्मसमाधिना ॥

ॐ सह नाववतु ।
सह नौ भुनक्तु ।
सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्विनावधीतमस्तु ।
मा विद्‌विषावहै ॥

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:: ॥

anna grahana karane se pahale
vichar man me karana hai
kis hetu se is sarira ka
rakshan poshan karana hai


he paramesvara ek prarthana
nitya tumhare charano me
lag jaye tan man dhan mera
visva dharma ki seva me ||


Brahmaarpanam Brahmahavir Brahmaagnau Brahmanaa Hutam |
Brahmaiva Tena Gantavyam Brahma Karma Samaadhinaa ||


Aum Saha Naavavatu
Saha Nau Bhunaktu
Saha Veeryam Karavaavahai
Tejasvinaa Vadheetamastu
Maa Vidvishaa Vahai||

AUM SHANTIH SHANTIH SHANTIH ||


The items we use to feed ourselves are Brahman. The food itself is Brahman. The fire of hunger we feel is Brahman. We are Brahman and the process of eating and digesting the food is the action of Brahman. Finally, the result we obtain is Brahman. – Bhagavad Gita

Let us protect each other. Let us eat together. Let us work together. Let us study together to be bright and successful. Let us not hate each other.

Aum Peace, Peace, Peace

Monday, July 05, 2010

क्या बरसात में श्रद्धा कम हो जाती है?

मैं सुबह जिस पार्क में घूमने जाता हूँ वहां कुछ प्रेमी स्त्री पुरुष सत्संग करने आते हैं. नियमित रूप से यह सत्संग होता है. भजन गाये जाते हैं. एक स्वामी जी आते हैं, उनका प्रवचन होता है. अच्छा लगता है. लगभग ५० व्यक्ति होते हैं सत्संग में. आज सुबह कुछ अच्छा नहीं लगा. आज केवल १० लोग थे, ६ पुरुष, ४ स्त्रियाँ. दो दिन से कुछ बूंदा-बांदी हो रही है. क्या इस कारण से कम लोग आये? क्या बरसात में श्रद्धा कम हो जाती है?

Thursday, November 19, 2009

Saturday, November 07, 2009

सूर्य नमस्कार

सूर्यदेव आप जीवन रक्षक हैं,
मेरे जीवन की सर्वदा रक्षा करें.

सूर्यदेव आप आयु दाता हैं,
मुझे दीर्घायु प्रदान करें.

सूर्यदेव आप सौन्दर्य के प्रदाता हैं,
मुझे सौन्दर्य प्रदान करें.

मेरे जीवन में जो भी न्यूनता है,
उस न्यूनता को दूर करें.

मेरी जो भी आकांक्षा-इच्छा है,
उसे पूरा करें.

मैं आपके सामान आकर्षित, तेजस्वी, प्रज्वलित हो जाऊं.

सूर्यदेव की जय.

Thursday, October 15, 2009

आप सबको दीपावली की शुभकामनाएं




आई आई दीवाली आई,
साथ में कितनी खुशिया लायी,
धूम मचाओ,
मौज मनाओ,
आप सब को दीवाली की बधाई.
हैप्पी दीवाली

दीवाली पर्व है खुशियो का,
उजालो का,
लक्ष्मी का,
इस दीवाली आपकी aksजिंदगी खुशियो से भरी हो,
दुनिया उजालो से रोशन हो,
घर पर माँ लक्ष्मी का आगमन हो,
हैप्पी दीवाली

लक्ष्मी का हाथ हो,
सरस्वती का साथ हो,
गणेश का निवास हो,
आपके जीवन में प्रकाश ही प्रकाश हो
शुभ दिवाली

Saturday, September 26, 2009

खुदा का मजहब क्या है?

खुदा हिन्दू है या मुसलमान?
ईसाई, सिख, बौध या जैन?
मेरा सोच कुछ अलग है,
खुदा का कोई मजहब नहीं होता,
खुदा किसी के लिए मजहब नहीं चुनता,
मजहब बनाये है इंसान ने,
और बंद कर दिया है खुदा को,
अपने मजहब की दीवारों में,
कोई फर्क नहीं पड़ता खुदा को,
कौन किस धर्म को मानता है,
और उसे किस नाम से पुकारता है,
खुदा मानता है प्रेम के सम्बन्ध को,
जो इंसान दूसरे इंसानों को प्रेम करता है,
खुदा उसे प्रेम करता है,
प्रेम करो सब से,
नफरत न करो किसी से,
सब का मालिक एक है.

Tuesday, September 22, 2009

ईद मुबारक, पर इस से दूसरों को परेशानी क्यों हो?

कल मुझे दस बजे अपने एक क्लाइंट के यहाँ पहुंचना था. बहुत जरूरी मीटिंग थी. लेकिन रास्ता बंद कर दिया गया था. बहुत ज्यादा परेशानी उठा कर वारह बजे पहुँच पाया. क्लाइंट अलग नाराज. काम बिगड़ गया. मेरे जैसे हजारों लोग कल इसी तरह परेशान हुए होंगे और कितनों ने नुक्सान भी उठाया होगा. कितना पेट्रोल और डीजल बेकार खर्च हुआ होगा.

राष्ट्रीय राजमार्ग पर नमाज पढ़ना और इस के लिए उसे बंद कर देना, एक गलत फैसला था. सरकार और पुलिस इस गलती के लिए जिम्मेदार हैं. मुसलमान भाइयों को सोचना चाहिए था कि सड़क पर नमाज पढने से दूसरे नागरिकों को कितनी परेशानी होगी.

बहुत तकलीफ हुई मुझे.

Tuesday, September 15, 2009

दया एवं प्रेम पर आधारित सम्बन्ध हमें ईश्वर से जोड़ते हैं

अखवार में यह लेख पढ़ा, बहुत अच्छा लगा, सोचा आप सबसे बांटू.

आज भारतीय समाज में मानवीय संबंधों का जितना अनादर हो रहा है उतना कभी नहीं हुआ होगा. किसी भी मानवीय सम्बन्ध का कोई अर्थ नहीं रह गया है. लालच में मनुष्य इतना अँधा हो गया है कि कुछ रुपयों के लिए भी हिंसक हो उठता है. क्या होगा इस समाज का जहाँ पुत्री पिता के साथ, बहन भाई के साथ सुरक्षित नहीं है? छणिक शारीरक सुख के लिए मनुष्य किसी भी पवित्र सम्बन्ध की बलि चढ़ाने को तैयार हो जाता है. मानवीय संबंधों का आदर करना आज न घर में सिखाया जाता है और न विद्यालय में. अखवार ऐसी ख़बरों से भरे रहते हैं जिन्हें पढ़ कर मन अन्दर तक दहल जाता है. कहानी, उपन्यास, चल चित्र, टी वी सीरिअल सब मानवीय संबंधों की धज्जियाँ उडाने पर तुले हुए हैं. ऐसे में यह लेख पढ़ कर मन को कुछ शान्ति मिली.

Thursday, September 10, 2009

ईश्वर की सच्ची पूजा

मानवीय संबंधों का आदर करो,

परिवार के प्रति कर्तव्यों का पालन करो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

बड़ों का आदर करो,
उनके सुख दुःख का ध्यान रखो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

बच्चों से प्रेम करो,
उन्हें सही शिक्षा दो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

पड़ोसियों से प्रेम करो,
उनके लिए परेशानी का कारण मत बनो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

समाज, राष्ट्र के प्रति बफादार रहो,
उन पर वोझ नहीं, सहायक बनो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

किसी से नफरत नहीं, सबसे प्रेम करो,
हर जीव में ईश्वर का दर्शन करो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

ईश्वर प्रेम है, प्रेम ईश्वर है,
प्रेम ईश्वर की सच्ची पूजा ह

Tuesday, August 25, 2009

धन के संग्रह नहीं त्याग में सुख है

दो मित्र बहुत समय बाद मिले. एक मित्र सफल व्यवसाई बन गए थे. खूब धन संग्रह किया. दूसरे मित्र ने जन सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था. धन के प्रति उदासीनता ही उनका धन थी. नदी पार जंगल में घूमने गए. बहुत बातें करनी थी. अपनी सुनानी थी. दूसरे की सुननी थी.


सुनते सुनाते रात हो गई. व्यवसाई मित्र अपने धन का प्रदर्शन करते रहे और अपने मित्र को जन सेवा छोड़कर व्यवसाय में आने के लिए आमंत्रित करते रहे. अचानक ही उन्हें ध्यान आया, नदी के इस पार जंगली जानवर बहुत हैं और छिपने का कोई स्थान नहीं है. दोनों भागते हुए नदी तट पार पहुंचे. नदी पार कराने वाला नाविक दूसरे किनारे पर था और आराम करने की तैयारी कर रहा था. व्यवसाई मित्र ने उसे आवाज़ दी और कहा कि वह आकर उन्हें उस पार ले जाए. नाविक ने मना करते हुए कहा कि वह बहुत थक गया है और अब केवल आराम करेगा. व्यवसाई मित्र ने उसे कई गुना शुल्क देने का लालच दिया पर नाविक ने मना कर दिया. मित्र ने सारे रुपये जेब से निकालते हुए कहा कि वह सब रुपये उसे दे देंगे और उसके अलाबा भी पर्याप्त धन उसे देंगे. नाविक मान गया, नाव लेकर आया और उन्हें नदी के उस पार ले गया.

घर पहुँच कर व्यवसाई मित्र ने कहा, 'देखा मित्र धन में कितनी शक्ति होती है. आज अगर हमारे पास धन नहीं होता तो हम किसी जंगली जानवर के पेट में होते'.

दूसरे मित्र ने सहमति प्रकट करते हुए कहा, 'तुमने सही कहा मित्र, धन में बहुत शक्ति होती है, पर तुम एक बात नजर अंदाज कर रहे हो, हमारी जान तब बची जब तुमने धन नाविक को दे दिया. धन के संग्रह ने नहीं, धन के त्याग ने हमारी जान बचाई'.

कहानी आगे कहती है कि व्यवसाई मित्र ने व्यवसाय छोड़कर अपने जन सेवक मित्र का रास्ता अपना लिया और उनके साथ मिल कर अपने संग्रहित धन से जन सेवा करने लगे.

Sunday, March 01, 2009

कार्यछेत्र में आध्यात्मिकता

यह प्रेसेंटेशन मुझे एक मित्र ने दिया. सोचा आप सबके साथ बांटू.
Spirituality in the Work Place