दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो.

Sunday, March 16, 2008

Shanti Paath - Peace Prayer

Aum Dyauh Shantir Antarikshagum Shanti
Prithivi Shanti -raapah Saantihr-oshadhaya Shaantir
Vanaspatayah Shantir Vishwe - devah Shantih Brahma
Shantih Sarvagum Shantih Shantih - Reva
Shantihi
Sama Shanti-Redhi, Om Shantih Shantih Shantih

May there be peace in Heaven
Peace in the Atmosphere or Universe
May there be peace on Earth
Peace across the waters
May peace flow from herbs, plants and trees
May all the celestial beings pervade peace
May peace pervade all quarters
May that peace come to me too

O Lord! (Bhagwan) MAY THERE BE PEACE PEACE PEACE


Friday, March 14, 2008

Understanding the Maha Mrityunjaya Mantra

It is very important to understand the meaning of the words as this makes the repetition meaningful and brings forth the results.

OM is not spelt out in the Rig-Veda, but has to be added to the beginning of all Mantras as given in an earlier Mantra of the Rig-Veda addressed to Ganapati.

मंत्र लाभ -
महामृतुन्ज्य मंत्र जीवन प्रदान करता है (अकाल मृत्यु, दुर्घटना इत्यादि). यह मंत्र सर्प एवम विच्छू के काटने पर भी अपना पूरा प्रभाव रखता है. इस मंत्र का महत्वपूर्ण लाभ है कठिन एवम असाध्य रोगों पर विजय प्राप्त करना. यह मन्त्र हर बीमारी को भगाने का बड़ा शस्त्र है.

भावार्थ -
हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वांस मैं जीवन शक्ति भर रहे है उनसे हमारी प्रार्थना है की वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए. जिस प्रकार एक ककड़ी बेल मैं पक जाने के बाद उस बेल रुपी संसार के बन्धन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार रुपी बेल मैं पक जाने के बाद जन्म-मृत्यु के बंधनों से सदैव के लिए मुक्त हो जायें और आपके चरणों की अमृत-धारा का पान करते हुए शरीर को त्याग कर आप मैं मीन हो जायें.

TRYAMBAKKAM refers to the Three eyes of Lord Shiva. 'Trya' means 'Three' and 'Ambakam' means eyes. These three eyes or sources of enlightenment are the Trimurti or three primary deities, namely Brahma, Vishnu and Shiva and the three 'AMBA' (also meaning Mother or Shakti' are Saraswati, Lakshmi and Gouri. Thus in this word, we are referring to God as Omniscient (Brahma), Omnipresent (Vishnu) and Omnipotent (Shiva). This is the wisdom of Brihaspati and is referred to as Sri Duttatreya having three heads of Brahma, Vishnu and Shiva.

YAJAMAHE means, "We sing Thy praise".

SUGANDHIM refers to His fragrance (of knowledge, presence and strength i.e. three aspects) as being the best and always spreading around. Fragrance refers to the joy that we get on knowing, seeing or feeling His virtuous deeds.

PUSTIVARDHANAM Pooshan refers to Him as the sustainer of this world and in this manner, He is the Father (Pater) of all. Pooshan is also the inner impeller of all knowledge and is thus Savitur or the Sun and also symbolizes Brahma the Omniscient Creator. In this manner He is also the Father (Genitor) of all.

URVAAROKAMEVA 'URVA' means "VISHAL" or big and powerful or deadly. 'AAROOKAM' means 'Disease'. Thus URVAROOKA means deadly and overpowering diseases. (The CUCUMBER interpretation given in various places is also correct for the word URVAROOKAM). The diseases are also of three kinds caused by the influence (in the negative) of the three Guna's and are ignorance (Avidya etc), falsehood (Asat etc as even though Vishnu is everywhere, we fail to perceive Him and are guided by our sight and other senses) and weaknesses (Shadripu etc. a constraint of this physical body and Shiva is all powerful).

BANDANAAN means bound down. Thus read with URVAROOKAMEVA, it means 'I am bound down by deadly and overpowering diseases'.

MRITYORMOOKSHEYA means to deliver us from death (both premature death in this Physical world and from the neverending cycle of deaths due to re-birth) for the sake of Mokshya (Nirvana or final emancipation from re-birth).

MAAMRITAAT means 'please give me some Amritam (life rejuvinating nectar). Read with the previous word, it means that we are praying for some 'Amrit' to get out of the death inflicting diseases as well as the cycle of re-birth.

Maha Mrityunjaya Mantra



Thursday, March 13, 2008

आओ कहें कहानी शबरी की

शबरी की कहानी रामायण के अरण्य काण्ड मैं आती है. वह भीलराज की अकेली पुत्री थी. जाति प्रथा के आधार पर वह एक निम्न जाति मैं पैदा हुई थी. विवाह मैं उनके होने वाले पति ने अनेक जानवरों को मारने के लिए मंगवाया. इससे दुखी होकर उन्होंने विवाह से इनकार कर दिया. फिर वह अपने पिता का घर त्यागकर जंगल मैं चली गई और वहाँ ऋषि मतंग के आश्रम मैं शरण ली. ऋषि मतंग ने उन्हें अपनी शिष्या स्वीकार कर लिया. इसका भारी विरोध हुआ. दूसरे ऋषि इस बात के लिए तैयार नहीं थे कि किसी निम्न जाति की स्त्री को कोई ऋषि अपनी शिष्या बनाये. ऋषि मतंग ने इस विरोध की परवाह नहीं की. ऋषि समाज ने उनका वहिष्कार कर दिया और ऋषि मतंग ने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया.

ऋषि मतंग जब परम धाम को जाने लगे तब उन्होंने शबरी को उपदेश किया कि वह परमात्मा मैं अपना ध्यान और विश्वास बनाये रखें. उन्होंने कहा कि परमात्मा सबसे प्रेम करते हैं. उनके लिए कोई इंसान उच्च या निम्न जाति का नहीं है. उनके लिए सब समान हैं. फिर उन्होंने शबरी को बताया कि एक दिन प्रभु राम उनके द्वार पर आयेंगे.

ऋषि मतंग के स्वर्गवास के बाद शबरी ईश्वर भजन मैं लगी रही और प्रभु राम के आने की प्रतीक्षा करती रहीं. लोग उन्हें भला बुरा कहते, उनकी हँसी उड़ाते पर वह परवाह नहीं करती. उनकी आंखें बस प्रभु राम का ही रास्ता देखती रहतीं. और एक दिन प्रभु राम उनके दरवाजे पर आ गए.

शबरी धन्य हो गयीं. उनका ध्यान और विश्वास उनके इष्टदेव को उनके द्वार तक खींच लाया. भगवान् भक्त के वश मैं हैं यह उन्होंने साबित कर दिखाया. उन्होंने प्रभु राम को अपने झूठे फल खिलाये और दयामय प्रभु ने उन्हें स्वाद लेकर खाया. फ़िर वह प्रभु के आदेशानुसार प्रभुधाम को चली गयीं.

शबरी की कहानी से क्या शिक्षा मिलती है? आइये इस पर विचार करें. कोई जन्म से ऊंचा या नीचा नहीं होता. व्यक्ति के कर्म उसे ऊंचा या नीचा बनाते हैं. ब्राहमण परिवार मैं जन्मे ऋषि ईश्वर का दर्शन तक न कर सके पर निम्न जाति मैं जन्मीं शबरी के घर ईश्वर ख़ुद चलकर आए और झूठे फल खाए. हम किस परिवार मैं जन्म लेंगे इस पर हमारा कोई अधिकार नहीं हैं पर हम क्या कर्म करें इस पर हमारा पूरा अधिकार है. जिस काम पर हमारा कोई अधिकार ही नहीं हैं वह हमारी जाति का कारण कैसे हो सकता है. व्यक्ति की जाति उसके कर्म से ही तय होती है, ऐसा भगवान् ख़ुद कहते हैं.

कहे रघुपति सुन भामिनी बाता,
मानहु एक भगति कर नाता.

प्रभु राम ने शबरी को भामिनी कह कर संबोधित किया. भामिनी शब्द एक अत्यन्त आदरणीय नारी के लिए प्रयोग किया जाता है. प्रभु राम ने कहा की हे भामिनी सुनो मैं केवल प्रेम के रिश्ते को मानता हूँ. तुम कौन हो, तुम किस परिवार मैं पैदा हुईं, तुम्हारी जाति क्या है, यह सब मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता. तुम्हारा मेरे प्रति प्रेम ही मुझे तम्हारे द्वार पर लेकर आया है.

जो लोग स्त्रियों को अपशब्द कहते हैं, जाति को आधार बनाकर दूसरों के साथ ग़लत व्यवहार करते हैं, उन पर अत्याचार करते हैं, वह प्रभु राम के अपराधी हैं. यदि हम यह चाहते हैं कि प्रभु राम हमसे प्रसन्न हों तब हमें सब मनुष्यों के साथ प्रेम का रिश्ता बनाना होगा. हर इंसान मैं हमें प्रभु राम का रूप दिखाई देना चाहिए.

हिन्दू, मुसलमान, क्या नही रहे इंसान?


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

एक
गाँव मैं एक आदमी आया
गाँव के बाहर पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठ गया.
हिन्दुओं
ने समझा कोई संत हैं,
मुसलमानो
ने समझा कोई फकीर हैं,
पंडितजी
आए, मौलाना आए,

'आप गाँव के मेहमान हैं',
'क्या सेवा करे आपकी',
'प्यासा हूं पानी पिला दो, भूखा हूं खाना खिला दो',
पंडितजी बोले अभी लाये,
मौलाना बोले अभी लाये,

मेहमान ने कहा 'एक बात का ध्यान रखना,
जो पानी और खाना हिंदू लाये उसमे न लगा हो हाथ गैर हिन्दू का,
ऐसे ही ध्यान रखे मुसलमान,
जो पानी और खाना वह लाये उसमे न लगा हो हाथ गैर मुसलमान का,
लोग चकरा गए,
ऐसे कैसे हो सकता है,
यह गारंटी कैसे दी जा सकती है,
पानी एक है, धूप एक है, हवा एक है,
खेतो मैं हाथ लगा है सब का,
किसने बनाये बर्तन भांडे,
किसने आटा पीसा,
हाथ जोढ़ कर बोले दोनों,
शर्त कठिन है इसे हटाओ.

मेहमान ने कहा या तो मेरी शर्त मानो,
या मैं तुम्हारे गाँव से भूखा जाऊंगा,
पंडितजी ने कहा हमे छमा करो,
मौलाना ने कहा हमे माफ़ करो,
मेहमान ने कहा,
जब सब कुछ एक है तो तुम कैसे अलग हो,
तुम हिन्दू, यह मुसलमान,
क्या नहीं रहे तुम इंसान?
धरम पर करो बंद हिंसा,
दोनों मिलकर पानी लाओ,
दोनों मिलकर खाना लाओ,
यही हुआ,
मेहमान ने खुशी से खाना खाया और पानी पिया,
सबके लिए दुआ की और अगले गाँव चला गया.

कहानी कहती है,
उस गाँव मैं फिर धरम के ऊपर फसाद नहीं हुआ.

भगवान् से मुलाकात


कल अचानक ही हो गई
भगवान् से मुलाकात,
पूछने लगे कैसे हो,
अच्छा हूँ मैंने कहा,
क्या सचमुच?
हाँ सचमुच, कहा मैंने
खूब तरक्की कर रहा है भारत, कहा मैंने
क्या सचमुच?
मुझे लगा कुछ गड़बड़ है,
ध्यान से देखा तो घबराया,
उनके चेहरे पर कुछ दर्द नजर आया,
आप कुछ परेशान हैं? मैंने पूछा,
मैंने तो प्रेम बनाया था,
नफरत कहाँ से ले आए तुम इंसान?
लड़ते हो आपस मैं,
मारते हो एक दूसरे को,
कौन पिता चाहेगा,
मारें उसके बच्चे एक दूसरे को?
पर क्या यह काफ़ी नहीं था?
तुम तो और आगे निकल गए,
घसीट लिया मुझे बीच मैं,
मेरे नाम पर करते हो हिंसा,
सोचते हो मैं खुश होऊंगा तुमसे?
काम करते हो शैतान का,
नाम लेते हो भगवान् का,
बंद करो यह हिंसा वरना पच्ताओगे,
जहन्नुम की आग् मैं फैंक दिए जाओगे.
डर से मैंने आँखें बंद कर ली,
खोली तो मैं अकेला था.
फ़िर एक आवाज आई,
प्रेम करो सब से,
नफरत न करो किसी से.