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कल अचानक ही हो गई
भगवान् से मुलाकात,
पूछने लगे कैसे हो,
अच्छा हूँ मैंने कहा,
क्या सचमुच?
हाँ सचमुच, कहा मैंने
खूब तरक्की कर रहा है भारत, कहा मैंने
क्या सचमुच?
मुझे लगा कुछ गड़बड़ है,
ध्यान से देखा तो घबराया,
उनके चेहरे पर कुछ दर्द नजर आया,
आप कुछ परेशान हैं? मैंने पूछा,
मैंने तो प्रेम बनाया था,
नफरत कहाँ से ले आए तुम इंसान?
लड़ते हो आपस मैं,
मारते हो एक दूसरे को,
कौन पिता चाहेगा,
मारें उसके बच्चे एक दूसरे को?
पर क्या यह काफ़ी नहीं था?
तुम तो और आगे निकल गए,
घसीट लिया मुझे बीच मैं,
मेरे नाम पर करते हो हिंसा,
सोचते हो मैं खुश होऊंगा तुमसे?
काम करते हो शैतान का,
नाम लेते हो भगवान् का,
बंद करो यह हिंसा वरना पच्ताओगे,
जहन्नुम की आग् मैं फैंक दिए जाओगे.
डर से मैंने आँखें बंद कर ली,
खोली तो मैं अकेला था.
फ़िर एक आवाज आई,
प्रेम करो सब से,
नफरत न करो किसी से.
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