धर्म के आधार पर लोगों को विभाजित करने की कुत्सित राजनीति हमारे देश को घोर नुक्सान पहुंचा रही है. नागरिकों की कितनी ही ऊर्जा आपस के झगड़ों में नष्ट हो जाती है. अगर इस ऊर्जा का संचय किया जाय और उसे राष्ट्र निर्माण में लगाया जाय तब हमारे देश को विश्व का शिरमौर बनने में देर नहीं लगेगी.
राजनीतिक दल एक दूसरे से होड़ करने में लगे रहते हैं कि कैसे किस धर्म विशेष के अनुयायिओं को अपने वोट बेंक में बदल लिया जाय. इसके लिए यह दल उस धर्म के अनुयायिओं के मन में दूसरे धर्म के प्रति डर और नफरत पैदा करते हैं. उन्हें आपस में मिलने नहीं देते. इस के लिए उन धर्मों के तथाकथित स्वयम सिद्ध नेता इन दलों की मदद करते हैं. राजनितिक दल इन धार्मिक नेताओं की हर गलत-सही बात का समर्थन करते हैं.
पिछले दिनों दिल्ली में हाई कोर्ट के आदेश पर डीडीए ने अवैध रूप से सरकारी जमीन पर बनी एक मस्जिद गिरा दी. इस पर उस छेत्र के कुछ मुसलमान सड़क पर आ कर आन्दोलन करने लगे. मुस्लिम धार्मिक नेता, दिल्ली के शाही ईमाम ने उन्हें समझाया नहीं बल्कि और ज्यादा भड़काया. ईमाम के भड़काने से लोग हिंसक हो गए और सड़क पर तोड़-फोड़ करने लगे, कई प्राईवेट कारें और बसें तोड़ डालीं. ईमाम को एक जिम्मेदार नेता की भूमिका अदा करनी चाहिए थी, लोगों को समझाना चाहिए था कि सरकारी जमीन पर अवैध रूप से मस्जिद बनाना कानून का उल्लंघन है. वह जमीन एक सामुदायिक केंद्र के लिए सुरक्षित की गई थी. अगर वहां पर सामुदायिक केंद्र बनता तब वहां के सभी निवासियों का फायदा होता. पर ईमाम ने लोगो को और कानून तोड़ने के लिए भड़काया.
राजनीतिक दलों ने भी इस परिस्थिति का गलत फायदा उठाया. पहले तो दिल्ली की मुख्य मंत्री दौड़ी हुई ईमाम के पास गईं, मस्जिद को दुबारा बनबाने का वचन दिया, सरकारी जमीन पर नमाज पढने के लिए इजाजत दी. केंद्र सरकार के गृह मंत्री और नगर विकास मंत्री ने अपने दूत यही भरोसा दिलाने के लिए ईमाम के पास भेजे. दूसरे दिन ईमाम ने लोगों को सरकारी जमीन पर नमाज पढ़वाई. पुलिस मूक दर्शक बनी रही. नमाज पढने के दौरान कुछ लोगों ने दीवार बनानी शुरू करदी. शाम होते-होते सरकारी जमीन को फिर से दीवार और टीन की चादरों से घेर और ढक दिया गया. कितनी शर्म की बात है, मुस्लिम वोटों के लिए सरकार ने खुद लोगों को कानून तोड़ने की इजाजत दी. दूसरे राजनीतिक दल कहाँ पीछे रहने वाले थे. मुलायम सिंह तुरंत अपने साथियों के साथ ईमाम के दरबार में हाजिरी लगाने पहुँच गए. उसके बाद अमर सिंह और जयप्रदा भी द्रब्बर में हाजिर हुए. इन्होनें भी ईमाम को आश्वासन दिया की उनके अवैध संघर्ष में वह उनके साथ हैं.
यह घटिया नेता देश को क्या सही दिशा देंगे जब खुद ही दिशाहीन हैं. कुर्सी के लिए नागरिकों के बीच नफरत का जहर उगल रहे हैं. ईश्वर इन्हें सद्वुद्धि दो.
साईं बाबा कहा करते थे कि सब का मालिक एक है. हम सब ईश्वर की संतान हैं. ईश्वर चाहता है कि हम सब एक दूसरे से प्रेम करें. आइये नफरत को अपने दिल से निकाल दें, सब से प्रेम करें और कहें, सब का मालिक एक है.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो.
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Monday, January 17, 2011
Wednesday, January 07, 2009
मालिक का घर अब कितना मालिक का बचा है?
जब भी मैं किसी मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, चर्च के सामने से निकलता हूँ, मेरा मन श्रद्धा से गदगद हो जाता है - यह उसका घर है जो हम सबका मालिक है. हाथ अपने-अपने जुड़ जाते हैं इबादत में. मन में एक प्रार्थना जन्म लेती है - सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, सब के मन में एक दूसरे के प्रति प्रेमभाव हो, सहानुभूति हो, मित्रता पूर्वक साथ रहने का संकल्प हो. पर कुछ लोग मालिक के घर को अपवित्र कर देते हैं, उसकी छत के नीचे षड़यंत्र रचते हैं, मालिक के नाम पर अनेतिक धंधे करते हैं. यह नहीं सोचते कि जो भी वह कर रहे हैं उसका फल उन्हें जरूर मिलना है, वह उस से बच नहीं सकते. जब लोग ऐसा करते हैं तो मालिक को बहुत दुःख होता है. वह उन्हें तरह-तरह से आगाह करता है, पर यह लोग नहीं समझते.
प्रेम से आँखें गीली हो जाती हैं. नफरत से आँखें जलती हैं. पर लोग प्रेम कम और नफरत ज्यादा करते हैं. आँखें होते हुए भी अंधों जैसा व्यवहार करते हैं. मालिक के घर में झाड़ू-पौंछा लगाने का ढोंग करते हैं, और घर जाकर माता-पिता का अपमान करते हैं. कुछ लोग अपने घर में मालिक का घर बनाते हैं, पर कुछ लोग मालिक के घर में अपना घर बना लेते हैं. नाम मालिक का पर उस के घर पर अधिकार अपना जमाते हैं. इस अधिकार के लिए आपस में झगड़ते हैं, मुकदमेबाजी करते हैं. मालिक के नाम पर आए दान से अपना घर चलाते हैं. मालिक के दर्शन पर टिकट लगा देते हैं. जितना बड़ा घर उतना बड़ा टिकट.
समझ में नहीं आता कि मालिक का घर अब कितना मालिक का बचा है?
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