दैनिक प्रार्थना

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Tuesday, September 16, 2008

इंसानियत के कातिलों दफा हो जाओ

मजहब के नाम पर इंसानों का खून बहाने वाले कातिलों दफा हो जाओ इस मुल्क से, और ले जाओ अपने साथ उन सबको जो परोक्ष या अपरोक्ष रूप से तुमसे हमदर्दी रखते हैं या खून बहाने में तुम्हारी मदद करते हैं. इन में हिंदू भी हैं और मुसलमान भी, पर अब वह सिर्फ़ कातिल हैं, और कातिलों का कोई मजहब नहीं होता. यह सिर्फ़ इंसानियत के दुश्मन हैं. इंसानी हमदर्दी नाम की कोई चीज इन के अन्दर नहीं है. दिल्ली में जिन का खून वहा वह इंसान थे. तुमने उन्हें मार कर अपनी शान में कसीदे पढ़े. तुम्हारे कुछ हिमायतियों ने कुरान का वास्ता दे कर यह समझाया कि कुरान इस की इजाजत नहीं देता. तुम्हारे कुछ और हिमायतियों ने कुछ हिंदू संगठनों का नाम ले कर तुम्हारे इस खून-खराबे को सही साबित करने की कोशिश की. वोटों का कारोबार करने वालों ने मजहब को बीच में लाकर मुसलमानों के वोट पक्के करने की कोशिश की. पर किसी ने भी अपनी जुबान या अपने कलम से सहानुभूति के दो शब्द नहीं कहे या लिखे उन निर्दोष इंसानों के बारे में जो मर गए और जिनके परिवार दुःख और तकलीफ के समंदर में डूब गए हैं.

मुझे इस देश के मुसलमानों और उन के हिमायतियों से यह पूछना है. यह बार-बार कुरान का वास्ता क्यों देते हो तुम लोग? क्या कभी किसी ने यह कहा है कि कुरान ग़लत है? क्या कभी किसी ने इस्लाम को ग़लत कहा है? सब मानते हैं और कहते हैं कि कोई धर्म हिंसा करने की इजाजत नहीं देता. हाँ यह जरूर कहा है कि इंसानियत के दुश्मन धर्म की शिक्षाओं का ग़लत मतलब करके भोले-भाले इंसानों को बहकाते हैं. यह कहना तो ग़लत नहीं है. और यह बात सब धर्मों के लोगों पर लागू होती है. अगर तुम यह मानते हो कि जो कुछ हो रहा है ग़लत है और इस्लाम की शिक्षा के खिलाफ है, तो तुम इन कातिलों की निंदा क्यों नहीं करते. सिर्फ़ कुरान की बात करके ही खामोश क्यों हो जाते हो? क्यों नहीं इन कातिलों को बेनकाब करते? क्यों नहीं इन को मुस्लिम बिरादरी से बाहर करते? जो गैर-मुस्लिम तुम्हारे हिमायती बनते हैं, उनसे क्यों नहीं कहते, 'अपनी बकवास बंद करो, बहुत इस्तेमाल कर लिया तुमने हमें अपने फायदे के लिए, अब हमें तुम्हारी इस नाजायज हमदर्दी की जरूरत नहीं है'?

अगर तुम्हे तकलीफ होती है इस बात से कि हर खून-खराबे के बाद मुसलमान कठघरे में क्यों खड़े कर दिए जाते हैं तो तुम खुले शब्दों में इन खून-खराबों की निंदा करके ख़ुद को इन कातिलों से अलग क्यों नहीं करते? क्यों इधर-उधर की बातें करके मामले को उलझाते हो? इस से दूसरों के मन में अविश्वास बढ़ता है. जो मरे हैं वह आम आदमी हैं, उन में हिंदू भी हैं, मुसलमान भी. उनके साथ खड़े हो जाओ, उन की तकलीफ महसूस करो. इधर-उधर की बातें कर के उनके जख्मों पर नमक मत छिड़को.

इस मुल्क में यह कहना कि 'इस्लाम खतरे में है', क्या परले दर्जे की वेबकूफी नहीं है? इस्लाम इस मुल्क में क्या आज की बात है? कितने साल तो मुस्लिम शासकों ने ही राज किया इस देश पर. अंग्रेजों की हुकूमत के ख़िलाफ़ हिंदू और मुसलमान दोनों मिल कर लड़े. पर कुछ लोगों ने अपने फायदे के लिए हिंदू-मुसलमानों को ही लड़वा दिया, और आज भी लड़वा रहे हैं. क्या तुम यह सब नहीं जानते? क्या अब भी तुम्हें यह बताने की जरूरत है? इस्लाम और मुसलमान हिन्दुस्तान से ज्यादा किसी और देश में सुरक्षित नहीं हो सकते. हिन्दुस्तान ही एक ऐसा मुल्क है जहाँ एक मुसलमान, राष्ट्रपति बन सकता है, चीफ जस्टिस बन सकता है, फौज का अफसर बन सकता है. यह बात तुम क्यों भूल जाते हो?

इंसानियत के इन दुश्मनों का साथ मत दो. निर्दोष इंसानों का खून बहाना अल्लाह के, भगवान् के ख़िलाफ़ अपराध है. इन की हिमायत करके तुम भी इस अपराध में शामिल हो रहे हो. जरा सोचो, क्या ऐसा करके तुम अपना ही नुक्सान नहीं कर रहे हो? क्या जवाब दोगे अल्लाह को, भगवान को? अभी भी समय है चेत जाओ, ख़ुद को इन कातिलों से अलग करो और धकेल दो इन्हें इस मुल्क के बाहर.