कुछ दिन पहले एक विज्ञापन आता था टीवी पर - मेरे पापा सबसे अच्छे हैं. बच्चे के मुंह से सुन कर यह अच्छा लगता था. पर जब बड़े यह कहते हैं कि मेरा अल्लाह या मेरा खुदा तुम्हारे ईश्वर से अच्छा है तब कुछ अजीब लगता है. उस बच्चे ने तो अपने पिता को देखा था, उन से बातें की थीं, उनके साथ रहा था. पर इन लोगों ने तो अल्लाह को देखा है और न खुदा को और न ही ईश्वर को. यह लोग ऐसा कैसे कह देते हैं? टीवी पर फ़िर से एक विज्ञापन आना चाहिए - सब के पापा अच्छे हैं. शायद उसे देख कर यह लोग कहने लगें कि अल्लाह, खुदा और ईश्वर सब अच्छे हैं, एक समान अच्छे हैं.
2 comments:
खफ़ा हुये हैं किसलिये, यह स्वाभाविक बात.
सबसे सुन्दर विश्व में, लगती अपनी माँ.
अच्छी अपनी माँ, चाहे काली ही होगी.
मेरी खातिर तो बस वो ही मंगल होगी.
कह साधक कवि, उदारता बेकार किसलिये?
यह स्वाभाविक बात, खफ़ा हो तुम किसलिये?
हम तो यु कहेगे सुरेश जी सब से अच्छॆ आप के लेख है.
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