गीता वेदों और उपनिषदों का सार है. सारांश में गीता कहती है:
* खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। इसीलिए, जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल। "
* क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।
* जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।
* तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर अाए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
* खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
* परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
* न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो?
* तुम अपने आप को भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
* जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनंन्द अनुभव करेगा।
8 comments:
गीता के सार को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद | वास्तव में गीता एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमें व्यक्ति जीवन की सभी समस्याओं का हल पा सकता है | आध्यात्मिक ही नहीं भौतिक जगत में सफलता का राज भी गीता के पृष्ठों में छुपा है |
अपनी समझ के मुताबिक गीता सार के प्रस्तुतीकरण पर बधाई ,शुक्रिया,
गीता सार प्रस्तुत करने का आभार.
गीता का सार से जुड़े
हमारे सारे सरोकार!
बढ़िया प्रस्तुतीकरण
काश की सभी इस सार के अनुसार चलते तो भारत मै गरीबी नाम मात्र को भी ना हो, हम जाते तो सभी मंदिरो मै है घंटो पुजा पाठ करते है, लेकिन जीवन मै करते इस सार से बिलकुल उलटा है
धन्यवाद सुबह सुबह एक सुंदर बात पढबाने के लिये
गीता, महाभारत का एक अंश है. यदि आप कहते कि यह श्रेष्ठ सम्मानित ग्रन्थ महाभारत का सार है, तो बात समझ में आती. किंतु इसे पवित्र वेदों का सार कहना न्याय संगत नहीं है. दो परस्पर विरोधी नैतिक स्थितियों की पृष्ठभूमि में गीता को देखा जाना चाहिए. अर्जुन दो सेनाओं के मध्य होने वाले युद्ध के परिणामों को लेकर चिंतित हैं और कृष्ण कर्मरत रहते हुए परिणामों की चिंता किए बिना कर्तव्य पालन करते रहने के पक्ष में हैं. अर्जुन के मन में उठने वाले संदेहों का समाधान इस रूप में होता है कि कर्तव्य पालन से बढ़कर कुछ नहीं. श्रीकृष्ण की यह शिक्षा केवल भारत पर ही नहीं सम्पूर्ण विश्व पर अपना प्रभाव छोड़ती है.संसार की अनेक जीवित भाषाओं में गीता की व्याख्याएं की गयीं और उसके महत्त्व को दर्शाया गया.
आप इसी प्रकार गीता का सर देते रहें. पाठक निश्चित रूप से लाभान्वित होंगे.
अर्जुन शिष्य हैं, एक आम इंसान की तरह. कृष्ण शिक्षक हैं, ईश्वर हैं जो धर्म की रक्षा के लिए इस धारा पर अवतरित हुए हैं. अर्जुन के मन मैं जो संशय आए वह कृष्ण की शिक्षा से दूर हुए. यह शिक्षा समय से परे है. किसी भी समय, किसी भी इंसान के मन में ऐसे संशय उठ सकते हैं. उनका समाधान, गीता में दिए गए उपदेशों से होता है. जो मैंने लिखा वह एक सरल भाषा में गुनी जनों द्वारा कहा गया गीता का सार है. गीता कृष्ण के मुखारविंद से निकली वाणी है, हम जैसे आम इंसानों के लिए यह वाणी वेदों और उपनिषदों का सार है. कोई इसे पढ़ ले, समझ ले और अपने जीवन में उतार ले, उसके बाद उसे फ़िर कुछ और जानना शेष नहीं रह जाता.
"sach kha, geeta saar ko pdh kr ek adbhut sa spritual ehsaas hotta hai..ek jinda sach hai jindgee kaa jo hum andekha kr daiten hain"
Regards
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