दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो.

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Saturday, November 22, 2008

सत्संग और अंतःकरण की शुद्धता

अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष - इन चारों के अंतर्गत मनुष्य की सब इच्छाएं आ जाती हैं. अर्थ और काम की प्राप्ति में 'प्रारब्ध' की आवश्यकता है. धर्म और मोक्ष की प्राप्ति में 'पुरुषार्थ' की आवश्यकता है. 

सत्संग से अंतःकरण शुद्ध होता है और स्वभाव ठीक बनता है. शास्त्र पढ़ने से मनुष्य बहुत बातें जान जाएगा, पर स्वभाव नहीं सुधरेगा. स्वभाव सुधरेगा परमात्मप्राप्ति का उद्देश्य होने से. रावण बहुत विद्द्वान था, कई विद्याओं का  जानकार था, पर उस का स्वभाव राक्षसी था. वेदों पर भाष्य लिखने पर भी उस का स्वभाव सुधरा नहीं. कारण कि उसका उद्देश्य भोग और संग्रह था, परमात्मप्राप्ति नहीं. जैसा स्वभाव होता है, बैसा ही काम करने की प्रेरणा होती है.

सत्संग, सच्छास्त्र और सद्विचार से बहुत लाभ होता है. इन में सत्संग मुख्य है. सत्संग से बड़ा लाभ होता है. शास्त्रों में, संतवाणी में सत्संग और नामजप की बड़ी महिमा आती है. दोनों में सत्संग से बहुत जल्दी लाभ होता है. पुस्तकें पढ़ने से उतना बोध नहीं होता, जितना सत्संग से होता है. 

('ज्ञान के दीप जले' से साभार)