साईं बाबा कहा करते थे कि सब का मालिक एक है. हम सब ईश्वर की संतान हैं. ईश्वर चाहता है कि हम सब एक दूसरे से प्रेम करें. आइये नफरत को अपने दिल से निकाल दें, सब से प्रेम करें और कहें, सब का मालिक एक है.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो.
Thursday, November 19, 2009
Saturday, November 07, 2009
सूर्य नमस्कार
सूर्यदेव आप जीवन रक्षक हैं,
मेरे जीवन की सर्वदा रक्षा करें.
सूर्यदेव आप आयु दाता हैं,
मुझे दीर्घायु प्रदान करें.
सूर्यदेव आप सौन्दर्य के प्रदाता हैं,
मुझे सौन्दर्य प्रदान करें.
मेरे जीवन में जो भी न्यूनता है,
उस न्यूनता को दूर करें.
मेरी जो भी आकांक्षा-इच्छा है,
उसे पूरा करें.
मैं आपके सामान आकर्षित, तेजस्वी, प्रज्वलित हो जाऊं.
सूर्यदेव की जय.
Thursday, October 15, 2009
आप सबको दीपावली की शुभकामनाएं
आई आई दीवाली आई,
साथ में कितनी खुशिया लायी,
धूम मचाओ,
मौज मनाओ,
आप सब को दीवाली की बधाई.
हैप्पी दीवाली
दीवाली पर्व है खुशियो का,
उजालो का,
लक्ष्मी का,
इस दीवाली आपकी aksजिंदगी खुशियो से भरी हो,
दुनिया उजालो से रोशन हो,
घर पर माँ लक्ष्मी का आगमन हो,
हैप्पी दीवाली
लक्ष्मी का हाथ हो,
सरस्वती का साथ हो,
गणेश का निवास हो,
आपके जीवन में प्रकाश ही प्रकाश हो
शुभ दिवाली
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Saturday, September 26, 2009
खुदा का मजहब क्या है?
खुदा हिन्दू है या मुसलमान?
ईसाई, सिख, बौध या जैन?
मेरा सोच कुछ अलग है,
खुदा का कोई मजहब नहीं होता,
खुदा किसी के लिए मजहब नहीं चुनता,
मजहब बनाये है इंसान ने,
और बंद कर दिया है खुदा को,
अपने मजहब की दीवारों में,
कोई फर्क नहीं पड़ता खुदा को,
कौन किस धर्म को मानता है,
और उसे किस नाम से पुकारता है,
खुदा मानता है प्रेम के सम्बन्ध को,
जो इंसान दूसरे इंसानों को प्रेम करता है,
खुदा उसे प्रेम करता है,
प्रेम करो सब से,
नफरत न करो किसी से,
सब का मालिक एक है.
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Tuesday, September 22, 2009
ईद मुबारक, पर इस से दूसरों को परेशानी क्यों हो?
कल मुझे दस बजे अपने एक क्लाइंट के यहाँ पहुंचना था. बहुत जरूरी मीटिंग थी. लेकिन रास्ता बंद कर दिया गया था. बहुत ज्यादा परेशानी उठा कर वारह बजे पहुँच पाया. क्लाइंट अलग नाराज. काम बिगड़ गया. मेरे जैसे हजारों लोग कल इसी तरह परेशान हुए होंगे और कितनों ने नुक्सान भी उठाया होगा. कितना पेट्रोल और डीजल बेकार खर्च हुआ होगा.
राष्ट्रीय राजमार्ग पर नमाज पढ़ना और इस के लिए उसे बंद कर देना, एक गलत फैसला था. सरकार और पुलिस इस गलती के लिए जिम्मेदार हैं. मुसलमान भाइयों को सोचना चाहिए था कि सड़क पर नमाज पढने से दूसरे नागरिकों को कितनी परेशानी होगी.
बहुत तकलीफ हुई मुझे.
Tuesday, September 15, 2009
दया एवं प्रेम पर आधारित सम्बन्ध हमें ईश्वर से जोड़ते हैं
अखवार में यह लेख पढ़ा, बहुत अच्छा लगा, सोचा आप सबसे बांटू.
आज भारतीय समाज में मानवीय संबंधों का जितना अनादर हो रहा है उतना कभी नहीं हुआ होगा. किसी भी मानवीय सम्बन्ध का कोई अर्थ नहीं रह गया है. लालच में मनुष्य इतना अँधा हो गया है कि कुछ रुपयों के लिए भी हिंसक हो उठता है. क्या होगा इस समाज का जहाँ पुत्री पिता के साथ, बहन भाई के साथ सुरक्षित नहीं है? छणिक शारीरक सुख के लिए मनुष्य किसी भी पवित्र सम्बन्ध की बलि चढ़ाने को तैयार हो जाता है. मानवीय संबंधों का आदर करना आज न घर में सिखाया जाता है और न विद्यालय में. अखवार ऐसी ख़बरों से भरे रहते हैं जिन्हें पढ़ कर मन अन्दर तक दहल जाता है. कहानी, उपन्यास, चल चित्र, टी वी सीरिअल सब मानवीय संबंधों की धज्जियाँ उडाने पर तुले हुए हैं. ऐसे में यह लेख पढ़ कर मन को कुछ शान्ति मिली.
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Thursday, September 10, 2009
ईश्वर की सच्ची पूजा
मानवीय संबंधों का आदर करो,
परिवार के प्रति कर्तव्यों का पालन करो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.
बड़ों का आदर करो,
उनके सुख दुःख का ध्यान रखो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.
बच्चों से प्रेम करो,
उन्हें सही शिक्षा दो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.
पड़ोसियों से प्रेम करो,
उनके लिए परेशानी का कारण मत बनो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.
समाज, राष्ट्र के प्रति बफादार रहो,
उन पर वोझ नहीं, सहायक बनो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.
किसी से नफरत नहीं, सबसे प्रेम करो,
हर जीव में ईश्वर का दर्शन करो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.
ईश्वर प्रेम है, प्रेम ईश्वर है,
प्रेम ईश्वर की सच्ची पूजा ह
Tuesday, August 25, 2009
धन के संग्रह नहीं त्याग में सुख है
दो मित्र बहुत समय बाद मिले. एक मित्र सफल व्यवसाई बन गए थे. खूब धन संग्रह किया. दूसरे मित्र ने जन सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था. धन के प्रति उदासीनता ही उनका धन थी. नदी पार जंगल में घूमने गए. बहुत बातें करनी थी. अपनी सुनानी थी. दूसरे की सुननी थी.
सुनते सुनाते रात हो गई. व्यवसाई मित्र अपने धन का प्रदर्शन करते रहे और अपने मित्र को जन सेवा छोड़कर व्यवसाय में आने के लिए आमंत्रित करते रहे. अचानक ही उन्हें ध्यान आया, नदी के इस पार जंगली जानवर बहुत हैं और छिपने का कोई स्थान नहीं है. दोनों भागते हुए नदी तट पार पहुंचे. नदी पार कराने वाला नाविक दूसरे किनारे पर था और आराम करने की तैयारी कर रहा था. व्यवसाई मित्र ने उसे आवाज़ दी और कहा कि वह आकर उन्हें उस पार ले जाए. नाविक ने मना करते हुए कहा कि वह बहुत थक गया है और अब केवल आराम करेगा. व्यवसाई मित्र ने उसे कई गुना शुल्क देने का लालच दिया पर नाविक ने मना कर दिया. मित्र ने सारे रुपये जेब से निकालते हुए कहा कि वह सब रुपये उसे दे देंगे और उसके अलाबा भी पर्याप्त धन उसे देंगे. नाविक मान गया, नाव लेकर आया और उन्हें नदी के उस पार ले गया.
घर पहुँच कर व्यवसाई मित्र ने कहा, 'देखा मित्र धन में कितनी शक्ति होती है. आज अगर हमारे पास धन नहीं होता तो हम किसी जंगली जानवर के पेट में होते'.
दूसरे मित्र ने सहमति प्रकट करते हुए कहा, 'तुमने सही कहा मित्र, धन में बहुत शक्ति होती है, पर तुम एक बात नजर अंदाज कर रहे हो, हमारी जान तब बची जब तुमने धन नाविक को दे दिया. धन के संग्रह ने नहीं, धन के त्याग ने हमारी जान बचाई'.
कहानी आगे कहती है कि व्यवसाई मित्र ने व्यवसाय छोड़कर अपने जन सेवक मित्र का रास्ता अपना लिया और उनके साथ मिल कर अपने संग्रहित धन से जन सेवा करने लगे.
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Thursday, June 04, 2009
Sunday, March 01, 2009
कार्यछेत्र में आध्यात्मिकता
यह प्रेसेंटेशन मुझे एक मित्र ने दिया. सोचा आप सबके साथ बांटू.
Spirituality in the Work Place
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Thursday, February 26, 2009
सुख और दुःख - दो रिश्तेदार इंसानों के
कभी पढ़ा था - सुख और दुःख एक सिक्के के दो पहलू हैं. कल साईं बाबा सीरिअल में बाबा ने कहा - सुख और दुःख इंसानों के दो रिश्तेदार हैं. सुखों से इंसान खुद रिश्तेदारी रखना चाहता है और उसके लिए हर उपाय करता है. दुःख स्वयं ही इंसान के रिश्तेदार बन जाते हैं और उसे रिश्तेदारी निभाने को वाध्य करते हैं. वह इंसान की परछाईं बन जाते हैं. इंसान बहुत प्रयत्न करता है दुखों से छुटकारा पाने को पर दुःख उस का पीछा नहीं छोड़ते. आखिर इन दुखों के लिए इंसान खुद ही तो जिम्मेदार है. उसके पूर्व जन्मों का फल हैं यह सुख और दुःख.
बाबा ने कहा इंसान को सुख और दुःख दोनों को समान रूप से देखना चाहिए. दोनों उसी के कर्मों का फल हैं, इसलिए एक से प्यार और दूसरे से नफरत उचित नहीं हैं. कर्मों का फल तो भोगना ही होगा, सुख या दुःख. इंसान को चाहिए की ऐसे कर्म न आकर जिस से उसके खाते में दुःख जमा हों. अब तक तो दुःख जमा हो चुके हैं वह तो भुगतने ही पड़ेंगे, पर आगे से इंसान को सावधानी वरतनी चाहिए.
इंसान को हर समय ईश्वर का ध्यान करना चाहिए, इस से वह गलत कर्म करने से बचा रहेगा. जब ईश्वर उसके ध्यान में होंगे तो गलत कर्म तो उस से हो ही नहीं सकते. गलत कर्म तो तब होते हैं जब इंसान ईश्वर को भूल जाता है और खुद को अंहकार के बस होकर बहुत बड़ा समझने लगता है.
बचपन में स्कूल की किताब में पढ़ा था -
दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय,
जो सुख में सुमिरन करें तो दुःख काहे को होय.
कितनी सीधी और सच्ची बात है, पर इंसान न जाने किस उलट-फेर में लगा रहता है, दुखों को अपना रिश्तेदार बना लेता है और जीवन भर रोता रहता है.
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Sunday, February 01, 2009
जानवर भी एहसान मानते हैं, पर इंसान !!!
मेरे एक सहयोगी ने इ-मेल में एक वीडियो भेजी जिस में एक शेर एक महिला को प्यार कर रहा है. हुआ यह कि इस महिला को यह शेर जंगल में धायल अवस्था में मिला. महिला ने उसे जानवरों के अस्पताल ले जाकर उस का ईलाज करवाया. कुछ दिन बाद शेर ठीक हो गया. महिला ने उसे चिड़ियाघर पहुँचा दिया. कुछ दिन बाद महिला उसे देखने चिड़ियाघर गई. चिड़ियाघर के प्रबंधक उसे शेर के दड्वे के पास ले गए. फ़िर जो हुआ आप इस वीडियो में देखिये.
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Thursday, January 15, 2009
Monday, January 12, 2009
गणपति आरती
लता जी की मधुर आवाज में गणपति की आरती सुनिए
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Friday, January 09, 2009
मानव शरीर किस लिए है?
शिष्य ने गुरु से पुछा, 'हमें यह मानव शरीर किस लिए मिला है?'
गुरु जी बोले, 'मानव ईशर की उत्कृष्ट रचना है. मानव शरीर पाकर हम ईश्वर को पा सकते हैं, पर उसके लिए हमें इस शरीर का सही उपयोग करना होगा.
हम इस शरीर से बहुत सारे काम लेते हैं. मस्तिष्क सोचता है, हम हमेशा अच्छा सोचें, हमारे मन में हर समय ईश्वर का ही ध्यान हो. हमारा सोच अहिंसक हो.
जिव्हा से हम बोलते हैं. हम हमेशा अच्छा बोलें, हमारी जिव्हा पर हर समय ईश्वर का ही नाम हो. हमारे वचन मधुर और अहिंसक हो.
आंखों से हम देखते हैं.हम हमेशा अच्छा देखें. हमारी आँखें हर प्राणी में ईश्वर का ही दर्शन करें.
कानों से हम सुनते हैं. हम हमेशा अच्छा सुनें. हमारे कान हर समय ईश्वर का गुणगान सुनें.
हाथों से हम काम करते हैं. हम हमेशा अच्छे काम करें. हमारे हाथ हमेशा ईश्वर को प्रणाम करने के लिए जुड़े रहें. हमारे हाथों से सब प्राणियों का भला हो.
पैरों से हम चलते हैं. हमारे पैर हमेशा अच्छे रास्तों पर चलें. हमारे पैर तीर्थ यात्रा पर चलें. दूसरों की सहायता के लिए हमारे पैर हमेशा चलने को तैयार रहें.
हमारा शरीर हमेशा जन कल्याण और ईश्वर प्राप्ति में लगा रहे.
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Wednesday, January 07, 2009
मालिक का घर अब कितना मालिक का बचा है?
जब भी मैं किसी मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, चर्च के सामने से निकलता हूँ, मेरा मन श्रद्धा से गदगद हो जाता है - यह उसका घर है जो हम सबका मालिक है. हाथ अपने-अपने जुड़ जाते हैं इबादत में. मन में एक प्रार्थना जन्म लेती है - सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, सब के मन में एक दूसरे के प्रति प्रेमभाव हो, सहानुभूति हो, मित्रता पूर्वक साथ रहने का संकल्प हो. पर कुछ लोग मालिक के घर को अपवित्र कर देते हैं, उसकी छत के नीचे षड़यंत्र रचते हैं, मालिक के नाम पर अनेतिक धंधे करते हैं. यह नहीं सोचते कि जो भी वह कर रहे हैं उसका फल उन्हें जरूर मिलना है, वह उस से बच नहीं सकते. जब लोग ऐसा करते हैं तो मालिक को बहुत दुःख होता है. वह उन्हें तरह-तरह से आगाह करता है, पर यह लोग नहीं समझते.
प्रेम से आँखें गीली हो जाती हैं. नफरत से आँखें जलती हैं. पर लोग प्रेम कम और नफरत ज्यादा करते हैं. आँखें होते हुए भी अंधों जैसा व्यवहार करते हैं. मालिक के घर में झाड़ू-पौंछा लगाने का ढोंग करते हैं, और घर जाकर माता-पिता का अपमान करते हैं. कुछ लोग अपने घर में मालिक का घर बनाते हैं, पर कुछ लोग मालिक के घर में अपना घर बना लेते हैं. नाम मालिक का पर उस के घर पर अधिकार अपना जमाते हैं. इस अधिकार के लिए आपस में झगड़ते हैं, मुकदमेबाजी करते हैं. मालिक के नाम पर आए दान से अपना घर चलाते हैं. मालिक के दर्शन पर टिकट लगा देते हैं. जितना बड़ा घर उतना बड़ा टिकट.
समझ में नहीं आता कि मालिक का घर अब कितना मालिक का बचा है?
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Sunday, January 04, 2009
मन्दिर का धंधा
मैं सुबह जिस पार्क में घूमने जाता हूँ उसके पास एक मन्दिर है. मैं कभी मन्दिर के अन्दर नहीं गया, बाहर से ही भगवान को प्रणाम कर लेता हूँ. पार्क में आए कुछ सज्जन अक्सर मन्दिर के बारे में बात करते हैं. उनकी बातों से लगता है जैसे मन्दिर एक धंधा हो गया है. इस धंधे पर अधिकार पाने के लिए कुछ लोगों के बीच मुकदमा चल रहा है. लेकिन आज कल मन्दिर पर मोहल्ले के गुंडे का अधिकार है. सारे लोग उस से डरते हैं, या यह कहा जाय कि उस के घूंसे से डरते हैं. भूतकाल में उस ने कई लोगों को घूंसे लगा रखे हैं. हो सकता है भविष्य में यह मन्दिर 'घूंसे वाला मन्दिर' कहलाये.
मन्दिर में धार्मिक कार्यक्रम चलते रहते हैं, भंडारे होते रहते हैं. इसमें काफ़ी कमाई होती है. दान पात्र में श्रद्धालु स्त्री-पुरूष काफ़ी धन डालते हैं. यह दान पात्र कब खोल लिया जाता है, इस में कितना पैसा मिला और कितना पैसा किस की जेब में जाता है, रहस्य का विषय है? चुपके से लोग यह कहते सुनाई पड़ते हैं कि मन्दिर की काफ़ी कमाई घूँसेबाज की जेब में जाती है. मन्दिर में दुकाने बनी हैं, इनका किराया भी शायद इसी जेब में जाता है. मन्दिर के बगल में एक दो मंजिला इमारत है, जिस में एक काफ़ी बड़ा हाल है, जिसे शादी या अन्य उत्सवों के लिए किराए पर दिया जाता है. इस से भी काफ़ी आमदनी होती है.
मतलब यह कि मन्दिर का धंधा काफी धूम से चल रहा है. वर्तमान मंदी का इस धंधे पर कोई असर नहीं हुआ है. लोग खुले ह्रदय से दान देते हैं. पता नहीं भगवान् को यह सब पता है या नहीं पर उनके नाम पर लोग अच्छा धंधा कर रहे हैं. जैसे डीडीऐ के ड्रा में उन लोगों के नाम से मकान निकल आए जिन्होनें एप्लाई ही नहीं किया था.
Friday, January 02, 2009
वाँछित और अवांछित
मर्यादा का अतिक्रमण -
- अधिकार का अतिक्रमण
- व्यवहार का अतिक्रमण
- व्यवस्था का अतिक्रमण
तन, मन, धन -
- तन मध्यम
- मन विशाल
- धन कम
मस्तक, ह्रदय, चरण -
- मस्तक वौद्धिकता
- ह्रदय हार्दिकता
- चरण धार्मिकता
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