दैनिक प्रार्थना

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Sunday, January 04, 2009

मन्दिर का धंधा

मैं सुबह जिस पार्क में घूमने जाता हूँ उसके पास एक मन्दिर है. मैं कभी मन्दिर के अन्दर नहीं गया, बाहर से ही भगवान को प्रणाम कर लेता हूँ. पार्क में आए कुछ सज्जन अक्सर मन्दिर के बारे में बात करते हैं. उनकी बातों से लगता है जैसे मन्दिर एक धंधा हो गया है. इस धंधे पर अधिकार पाने के लिए कुछ लोगों के बीच मुकदमा चल रहा है. लेकिन आज कल मन्दिर पर मोहल्ले के गुंडे का अधिकार है. सारे लोग उस से डरते हैं, या यह कहा जाय कि उस के घूंसे से डरते हैं. भूतकाल में उस ने कई लोगों को घूंसे लगा रखे हैं. हो सकता है भविष्य में यह मन्दिर 'घूंसे वाला मन्दिर' कहलाये. 

मन्दिर में धार्मिक कार्यक्रम चलते रहते हैं, भंडारे होते रहते हैं. इसमें काफ़ी कमाई होती है. दान पात्र में श्रद्धालु स्त्री-पुरूष काफ़ी धन डालते हैं. यह दान पात्र कब खोल लिया जाता है, इस में कितना पैसा मिला और कितना पैसा किस की जेब में जाता है, रहस्य का विषय है? चुपके से लोग यह कहते सुनाई पड़ते हैं कि मन्दिर की काफ़ी कमाई घूँसेबाज की जेब में जाती है. मन्दिर में दुकाने बनी हैं, इनका किराया भी शायद इसी जेब में जाता है. मन्दिर के बगल में एक दो मंजिला इमारत है, जिस में एक काफ़ी बड़ा हाल है, जिसे शादी या अन्य उत्सवों के लिए किराए पर दिया जाता है. इस से भी काफ़ी आमदनी होती है.

मतलब यह कि मन्दिर का धंधा काफी धूम से चल रहा है. वर्तमान मंदी का इस धंधे पर कोई असर नहीं हुआ है. लोग खुले ह्रदय से दान देते हैं. पता नहीं भगवान् को यह सब पता है या नहीं पर उनके नाम पर लोग अच्छा धंधा कर रहे हैं. जैसे डीडीऐ के ड्रा में उन लोगों के नाम से मकान निकल आए जिन्होनें एप्लाई ही नहीं किया था.