एक ब्लाग है 'मेरी डायरी'. सूत्रधार हैं फिरदौस. वह अपना परिचय यह कह कर देती हैं - 'मेरे अल्फाज़ मेरे जज़्बात और मेरे ख्यालात की तर्जुमानी करते हैं...और मेरे लफ्ज़ ही मेरी पहचान हैं...'
उनके ब्लाग की कुछ पोस्ट्स के शीर्षक देखिये:
रावण के साथ बजरंग दल का स्वाहा?
महाराष्ट्र : फ़सादियों को हुकूमत की खुली छूट
बेगुनाहों की गिरफ्तारियां और 'एनकाउन्टर' गहरी साज़िश का नतीजा
आईबी के अफ़सरान ने दी हिन्दू दहशतगर्दों को ट्रेनिंग
हिन्दू आतंकवाद : एक और साध्वी गिरफ्तार
हिन्दू आतंकवाद : भगवा चोले में छुपे आदमखोर
मालेगांव-मोडासा धमाकों में हिन्दू दहशतगर्दों का हाथ
समझ सको तो समझ कर देखो, इस्लाम सरापा रहमत है
निहत्थे मुसलमानों पर देसी केमिकल हथियारों से हमला किया गया
मुसलामानों का वक़ार और इस्लाम की अज़मत दाव पर
मुस्लिम क़ौम को अनपढ़ रखने की साज़िश
हम पुलिस हिरासत में बहुत ख़ुश हैं और हमने ही बम रखे थे
मुस्लिमों को बदनाम करने की साजिश हैं धमाके
इंडियन मुजाहिदीन का असली मास्टर माइंड कौन...?
मुसलमानों पर पुलिस का क़हर
''बुराई को भलाई से दूर करो'' : क़ुरान
इस तरह फिरदौस बुराई को जीत रही हैं भलाई से. किसी उर्दू पत्रिका की बात भी करती हैं फिरदौस. ऐसी लेखनी से क्या हासिल होगा? क्या इस से नफरत कम होगी, क्या प्यार और विश्वास बढ़ेगा समाज के अलग वर्गों में? फिरदौस एक शिक्षित और समझदार महिला हैं पर न जाने वह ऐसी भाषा क्यों प्रयोग कर रही हैं? कोई भी अपनी बात अगर सही तरह से कहे तो उसका असर सही होता है. ऐसी भाषा से मसले सुलझते नहीं, और उलझते हैं. मैंने कई बार उन से निवेदन किया है पर हर बार उन की भाषा और तीव्र हो जाती है.
10 comments:
उनके ब्लॉग को बेन करना चाहिए ,वैसे भी वो ओर मौसम एक ही इंसान है जो अलग अलग आई डी बना कर लिख रहे है
ban karne ki jagah unke liye kalam se aur tarkon ke saath jawab dena chahiye.
जितनी गंदगी उन्होंने फैलाई है शायद ब्लोग जगत मैं किसी ने नहीं कि ..उन्होने तो अविनाश भाई को भी पीछे छोङ दिया हैं...वैसे ये सही है कि वे और मौसम एक ही आदमी है ...औरत नहीं हो सकती हैं क्यों कि कोी महिला इतना गंदा नहीं लिख सकती
आपके पूरे परिवार और मित्रगण सहित आपको भी परम मंगलमय त्यौहार दीपावलि की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
गुप्ता जी, पर इस तरह का काम तो कई लोग कर रहे हैं, अलग अलग नामों में आप उन सबके बारे में भी लिखें।
और हाँ, जो लोग कुछ अच्छा काम करने का प्रयास कर रहे हैं, उनके बारे में भी लिखें।
sahi baat hai. there are many people who use tough languages.
I may not like her language but There are many issues on which her comments are perfect ant right. Though some tiimes i differ with issues , i feel her voice is imp. nad must be heard and cared.
दीप मल्लिका दीपावली - आपके परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
जाकिर अली जी, एक और ब्लाग है 'मोहल्ला' जो आज कल गाली-गलौज का प्लेटफार्म बना हुआ है. मैंने अपने ब्लाग 'काव्य कुञ्ज' पर उस पर भी एक पोस्ट लिखी है. ब्लाग के सूत्रधार से लगातार निवेदन कर रहा हूँ पर शायद उन का कोई उद्देश्य है इस सब के पीछे.
निशा जी, मैं उन के ब्लाग का फालोअर हूँ. उन की हर पोस्ट को पढ़ता हूँ. अच्छी पोस्ट की तारीफ़ करता हूँ. उन के विचारों का सम्मान करता हूँ. पर ब्लाग की भाषा शुद्ध होनी चाहिए वरना उस का प्रभाव नकारात्मक होता है.
फिरदौस ने एक और पोस्ट लिखी है - "फ़ौजी अफ़सरान के स्याह कारनामे".
जो कुछ उन्होंने इस पोस्ट में लिखा है, वह कोई और शीर्षक लिख कर भी कहा जा सकता था. पर उन्होंने फौज को भी नहीं बख्शा. और यह सब के लिए कोई ठोस तथ्य सामने नहीं आया है अभी तक, एटीएस की जांच में. मीडिया ने कुछ कहा या फिरदौस ने कहीं से कुछ सुना, और तुरंत ही एक पोस्ट लिख डाली. अपराध हुआ है तो किसी ने किया होगा. जांच चल रही है. जो लीड्स मिली हैं उन के आधार पर कुछ लोगों की गिरफ्तारी हुई है. जांच पूरी होगी, केस अदालत में जायेगा, अदालत फ़ैसला करेगी. क्या फिरदौस अपने ब्लाग पर इस केस का मुकदमा तय करेंगी?.
दिल्ली ब्लास्ट के मामले जो गिरफ्तारियां हुईं उस के खिलाफ तो फिरदौस ने न आने कितनी पोस्ट लिख डाली. पुलिस की जांच पर जांच बिठाने की मांग करती रही हैं वह. यहाँ पुलिस द्वारा दी जा रही जानकारी पर उन्हें पूरा विश्वास है. तुंरत एक नई पोस्ट लिख डालती हैं और हिंदू आतंकवाद की कहानियाँ सुनाने लगती हैं. इस का मकसद मेरी समझ में नहीं आ रहा.
हिंसा मन, बचन और कर्म तीनों से होती है. क्या फिरदौस की पोस्ट्स में जो हो रहा है वह एक प्रकार की मानसिक हिंसा नहीं है? वैचारिक हिंसा के रूप में यह हिंसा ब्लाग पर लिखित रूप में प्रकट होती है. इस से उत्साहित होकर कुछ लोग कर्म की हंसा में लिप्त हो जाते हैं. यह सोच कर मन घबराता है. क्या भारतीय समाज विघटन की और अग्रसर हो रहा है. अगर पढ़े-लिखे समझदार लोग भी इस तरह के काम करंगे तब इस समाज का क्या होगा?
आपसे पूरी सहमति है हमारी । अच्छी पोस्ट...।
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दीपावली की शुभकामनाएं।
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