दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो.

Monday, November 03, 2008

कैसे बनाये जाते हैं आतंकवादी?

आतंकवादी पैदा नहीं होते, बनाये जाते हैं. पर कैसे बनाये जाते हैं यह आतंकवादी, और कौन बनाता है इन्हे आतंकवादी? कुछ दिन पहले मैंने अपने ब्लाग 'काव्य कुञ्ज' पर एक पोस्ट डाली थी - "क्या आमिर अली आतंकवादी है?" इस पोस्ट का लिंक है - http://kavya-kunj.blogspot.com/2008/10/blog-post_27.html

मैंने इस पोस्ट में आमिर के बारे में बताया था कि कैसे उसे आतंकवादी बनाने का षड़यंत्र किया गया, वह बेचारा इस षड़यंत्र का शिकार भी हो गया था, पर आख़िर वक्त पर वह जाग गया और शहीद हो गया. आप को अजीब लगेगा यह पढ़ कर कि एक आतंकवादी और शहीद हो गया. पर हकीकत यही है. मीडिया ने उसे आतंकवादी कहा, उसे मानव बम का नाम दिया, पर वह आतंकवादी नहीं था. वह तो एक इंसान था जो दूसरे इंसानों की जिंदगी बचाने के लिए शहीद हो गया. आमिर मेरा हीरो है. आप उसके बारे में जानेंगे तो आप भी उसे अपना हीरो मानेंगे. 

एक बन्दर है, मदारी जिस में चाबी भर देता है बन्दर ताली बजा-बजा कर नाचता है. थक जाता है तो उसके सर पर चपत मारा जाता है और वह बन्दर फ़िर नाचने लगता  है. जब तमाशा ख़त्म हो जाता है तो बन्दर को धक्का मार कर गिरा दिया जाता है. तमाशा ख़त्म, बन्दर ख़त्म. बस ऐसे बनते हैं आतंकवादी. 

एक उदाहरण लें. एक बस्ती में एक बिल्डिंग है, टूटी, खस्ता हाल, न जाने कितने लोग रहते हैं उस में. संडास इतना गन्दा कि कुछ देर रहना पड़े तो उलटी हो जाए. इस प्रष्टभूमि पर आतंकवादी पैदा किए जायेंगे. सीधे-सादे इंसानों को यह सब दिखाया जायेगा, उन्हें कौम के नाम पर भड़काया जायेगा, कौम के लिए उन्हें उनका कर्तव्य याद दिलाया जायेगा. कौन करता है यह सब, वह लोग जिन्होनें ख़ुद कौम के लिए कभी कुछ नहीं किया. उन्होंने संडास को कभी साफ़ नहीं कराया. बल्कि उसे और गन्दा रखा गया. दुनिया भर से कौम के नाम पर पैसा इकठ्ठा किया गया. इस पैसे से न जाने कितने संडास साफ़ किए जा सकते थे, पर इस पैसे से बारूद ख़रीदा गया और बस में विस्फोट करा कर सैकड़ों निर्दोष इंसानों की जान ले ली गई. एक सीधे-सादे इंसान को कौम के नाम पर आतंकवादी बना दिया गया, उस के हाथ में बम थमा दिया गया. मरने वालों में उन की कौम के लोग भी थे. संडास और गन्दा हो गया. न जाने और कितने आतंकवादी पैदा करेगा यह संडास. 

कौम के बहुत से लोग गन्दी, अँधेरी बस्तियों में रहते हैं. पर इन बस्तियों को सुधारने में किसी को कोई दिलचस्पी नहीं है. क्या कौम में सब गरीब है? नहीं, कौम में पैसे वाले भी खूब हैं. और फ़िर मजहब भी यह कहता है कि अपनी आमदनी का कुछ हिस्सा ग़रीबों की मदद के लिए दो. क्या यह पैसे वाले इन ग़रीबों की गन्दी बस्तियों को रहने लायक नहीं बना सकते. नहीं, वह यह नहीं करेंगे. वह तो बस इन की हर बेचारगी और परेशानी के लिए दूसरों को दोष देंगे. मजहब के नाम पर उन के दिलों में दूसरों के लिए नफरत पैदा करेंगे. उन्हें डरायेंगे, उन्हें कहेंगे कि दरवाजों के पीछे छिपे रहो वरना दूसरे मजहब वाले तुम्हें मार डालेंगे. फ़िर दूसरों को दोष देंगे कि हमें राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल नहीं होने दिया जाता. जब कोई समझदार कौम वाला एक अच्छी जिंदगी जीने लगेगा तो यह उसे मजबूर करेंगे की वह कौम के दुश्मनों से बदला ले. उस पर दवाब डालने के लिए उस के घर वालों को अगवा तक कर लेंगे. 

एक सफल डाक्टर, १.५ लाख हर महीने कमाने वाला इंजीनियर आतंकवादी बना दिया जायेगा. यह कौम की कैसी सेवा है? 

कौन हैं इन के आका? किस से लेते हैं यह आदेश? जो मजहब इंसानी मोहब्बत की सीख देता है उस के नाम पर नफरत और मौत बांटने को कौन कहता है इन से? इन के आका सरहद के इधर हैं या उधर? क्यों नहीं समझते यह लोग कि यह इन का मुल्क है, इन्हें यहीं रहना है, क्या सारी जिंदगी इसी तरह ख़ुद खौफ में रहना है और दूसरों के लिए खौफ पैदा करते रहना है? यह बात क्यों नहीं समझते यह लोग कि सरहद पार वाले अपना उल्लू सिद्ध कर रहे हैं. उन्हें इन से कोई हमदर्दी नहीं है. वह तो बस इन का इस्तेमाल कर रहे हैं. 

मेरे देशवासियों, प्रेम से रहो, शान्ति से रहो. एक दूसरे का दुःख-दर्द समझो. प्रेम ईश्वर-अल्लाह का वरदान है, इसे नफरत में बदल कर शाप मत बनाओ.

5 comments:

युग-विमर्श said...

आपका उद्देश्य तो 'आमिर' फ़िल्म देखने का सुझाव देने से भी हल हो सकता था.

Sanjeev said...

आपका मत सत्य का एक पक्ष है। दूसरा पक्ष यह है कि भारत के लोग पिछले 1000 साल से मज़हबी आतंकवाद के शिकार हैं। सनातन धर्म, जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म इस आतंक की मार से अफगानिस्तान, पश्चिमी पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, पेशावर और काश्मीर के साथ-साथ पूर्व में आधे बंगाल से मिटा दिये गये हैं। क्या तस्वीर का यह पहलू आपके पक्ष से मेल खाता है?

राज भाटिय़ा said...

आप ने बहुत सुन्दर बात कही.

Unknown said...

डाक्टर शैलेश जैदी, 'आपका उद्देश्य' से आपका क्या तात्पर्य है? क्या आप मेरा उद्देश्य जानते हैं? कृपया खुलासा करिए.

Mansoor ali Hashmi said...

achchha vishleshan kiya hai aapne, aatm-manthan hum sabko jari rakhana hai, samasya hamari hi paida ki hui hai.hal bhi hum dhund lenge. aapke chintan se aashao ka sanchar hota hai.allah aapko lambi umr ata kare...amin. aapka sandesh jan-jan tak pahunche. dhanyavad.
mansoorali hashmi.