दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो.

Wednesday, August 27, 2008

भारत में इस्लाम खतरे में है???

बहुत पहले एनडीटीवी की एक चर्चा फोरम पर आतंकवाद पर हो रही चर्चा में भाग लेते हुए मैंने कहा था कि बिना स्थानीय मुसलमानों की मदद से यह बम विस्फोट नहीं किए जा सकते। उस समय बहुत से चर्चाकारों ने मुझे गालियाँ दी और आरएसएस का पिट्ठू बताया। आज अखबार में एक ख़बर छपी है, जिसमें मेरी यह बात सच साबित हो रही है. आप भी पढ़िये यह ख़बर:
जो लोग गिरफ्तार हुए हें वह कोई गरीब और पिछड़े हुए मुसलमान नहीं हें। सब शिक्षित हें और दूसरे हिंदुस्तानिओं की तरह सामान्य जिंदगी गुजार रहे हें। यह निर्दोष नागरिकों को मार देने से बिल्कुल नहीं हिचकिचाते। यह कहते हें कि भारत में इस्लाम खतरे में है। अब तो लग रहा है कि इस्लाम भारत के लिए खतरा बनता जा रहा है।

Monday, August 18, 2008

अब तो अवतरित हो जाओ कन्हैया

तुम्हारा जन्म दिन फ़िर आ रहा है,
इस बार तो अवतरित हो जाओ कन्हैया,
या इस बार भी दिखावों के आयोजनों में ही बीत जायेगा तुम्हारा जन्म दिन?
'जब भी धर्म की हानि होगी मैं आऊंगा', यही कहा था तुमने पिछली बार,
समय आ गया है अपना वादा निभाओ कन्हैया.
अधर्म राज कर रहा है धर्म पर,
धर्म के नाम पर हिंसा हो रही है,
आतंक फैलाने वाले दनदनाते घूम रहे हैं,
राज्य जनता की रक्षा नहीं कर पा रहा,
सत्ता के लालच ने सत्य को निगल लिया है,
कौवे मोती खा रहे हैं, हंस दाना-दुमका चुग रहे हैं,
पाप की काली छाया ने पूरी पृथ्वी को ढक लिया है,
रिश्वत के बिना कोई काम नहीं होता,
ईमानदारी हर कदम पर बेइज्जत हो रही है,
मानवीय संबंधों का बलात्कार हो रहा है,
बेटी बाप के साथ सुरक्षित नहीं है,
भ्रूण हत्या आम हो रही है,
क्या यह सब काफ़ी नहीं है अवतरित होने के लिए?
अब तो अवतरित हो जाओ कन्हैया.

एक बात का ध्यान रखना कन्हैया,
इस बार काम इतना आसन नहीं होगा,
हजारों कंस हैं इस बार तुम्हारे मुकाबले में,
सैकड़ों धृतराष्ट्र बैठे हैं न्याय की गद्दी पर,
लाखों दुर्योधन और शकुनी घात लगा रहे हैं,
इस बार किसी आम आदमी के घर पैदा होना,
यह आम आदमी ही बनेगा तुम्हारी सेना,
सत्ता के पाखंडियों से बच कर रहना,
वरना विदुर की रसोई ठंडी हो जायेगी,
घसीट ले जायेंगे यह तुम्हें दुर्योधन के महल में,
मीडिया नाम का एक नया हथियार है इन के पास,
जो झूट को सच बना देता है और सच को झूट,
न्याय वही देखता, सुनता और कहता है जो यह चाहते हैं,
कहीं ऐसा न हो कि यह तुम्हें ही आतंकवादी साबित कर दें,
यह कलयुग है कन्हैया और तुम्हारा पहला अवतार है कलयुग में,
जरा ध्यान से अवतरित होना कन्हैया.

Friday, August 15, 2008

भारत माता की जय

बोलो भारत माता की जय,
बोलो बार बार जय हिंद.

Monday, August 04, 2008

जलूस में शामिल होना है तो दरवाजे से बाहर आइये

यह बात अक्सर कही जाती है कि भारत के मुसलमानों को हर बात पर कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है. उनकी देश भक्ति पर शक किया जाता है. उनसे कहा जाता है कि वह अपनी देश भक्ति साबित करें. और भी धर्मों के लोग इस देश में रहते हैं, उन से अपनी देश भक्ति साबित करने के लिए क्यों नहीं कहा जाता? यह बात कुछ हद तक सही है. ऐसा होता है. यह शिकायत भी जायज है. पर ऐसा क्यों होता है? क्यों लोग ऐसा सोचते हैं? क्या इस के बारे में मुसलमानों ने सोचा है, और जो कारण उनकी समझ में आए हैं, क्या उन्हें दूर करने की कोशिश की है?

मुसलमान अल्पसंख्यक हैं, इसके लिए वह विशेष सुविधाओं की मांग करते हैं. पर जहाँ वह बहुसंख्यक हैं, क्या वह वही सुविधाएं अल्पसंख्यकों को देने को राजी होते हैं? कश्मीर इसका एक उदाहरण है. वहां के मुसलमानों ने अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन देने का विरोध किया. क्यों? क्या कारण था इस के पीछे? क्यों हिंदू दर्शनार्थियों को सुविधा देने के लिए कुछ जमीन बोर्ड को नहीं दी जा सकती? इस के बाद मुसलमान कैसे यह शिकायत कर सकते हैं कि उन की देश भक्ति पर संदेह किया जाता है? ऐसे बहुत से उदाहरण दिए जा सकते हैं.

मेरे विचार में जब तक मुसलमान ख़ुद को राजनीति की विसात पर गोटी बनाकर पेश करते रहेंगे, नफरत के सौदागर यह गोटियाँ खेलते रहेंगे. इस बार परमाणु करार पर कटघरे में किसने खड़ा किया मुसलामानों को? जरा सोचिये यह वही लोग हैं जिन्हें मुसलमान अपना समझते है. जों मुसलमानों की नज़र में धर्म-निरपेक्ष हैं. आरएसएस को अपना दुश्मन मान कर मुसलमानों ने अपनी कमजोरी बता दी है इन लोगों को. मुसलमान आरएसएस से डरते रहेंगे और यह लोग आरएसएस का नाम लेकर उन्हें डराते रहेंगे. अरे यह डरना डराना बंद कीजिये. खुले दिल से आइये और राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल होइए. फ़िर देखिये कौन आप को दुतकारता है और कौन आपको गले लगाता है? दरवाजे के पीछे से आप जलूस को सिर्फ़ देख भर सकते हैं, उसमें शामिल नहीं हो सकते. शामिल होना है तो दरवाजे के बाहर आना होगा.

सब का देश पर बराबर का हक है, बराबर की जिम्मेदारी है. हक़ लेना है तो जिम्मेदारी निभानी होगी. ख़ुद को सब में शामिल करना होगा. अलग बस्तियां बना कर दूसरों से कैसे मिल पायेंगे. और जब अलग रहेंगे तो शक तो पैदा होगा ही.

Friday, August 01, 2008

मौलवियों के फतवे और आतंकवाद में वढ़ोतरी

जब आतंकवाद के ख़िलाफ़ मुस्लिम स्कालर्स ने फतवे जारी किए थे तब यह आशा बंधी थी कि आतंकवादी उनका सम्मान करेंगे और आतंकवादी हमलों में कमी आएगी. पर हुआ उस का उल्टा, आतंकवादी हमले और बढ़ गए.

मुस्लिम स्कॉलर्स के अनुसार आतंक फैलाना और निर्दोष लोगों की हत्या करना इस्लाम के ख़िलाफ़ है. तब इस्लाम के नाम पर यह खून खराबा क्यों हो रहा है? क्या यह आतंकवादी इस्लाम में यकीन नहीं रखते? अगर ऐसा है तो इन्हें मुस्लिम बिरादरी से निकाला जाना चाहिए. इन के साथ वही होना चाहिए जो इस्लाम का अपमान करने वालों के साथ किया जाता है, जो सलामन रशदी के साथ किया गया, जो तसलीमा नसरीन के साथ किया गया.

या यह फतवे सिर्फ़ दिखाने के लिए जारी किए थे और इन का मकसद आतंकवाद का खात्मा करना नहीं था. कहीं यहाँ पर यह कहावत तो लागू नहीं हो रही - फतवे दिखाने के और, बताने के और.

Friday, July 25, 2008

सड़क दुर्घटना, जन संपत्ति का नुक्सान और हिंसक हिंदू धर्म

मुराद अली बैग एक लेखक हैं. इन्होनें कई किताबें लिखी हैं धर्म पर. आज एक अखबार में उनका एक लेख छपा है जिसका शीर्षक है 'वायोलेंट रिलीजन' यानी 'हिंसक धर्म'. यह लेख श्रावण मास में कांवरियों द्बारा गंगाजल लाने के बारे में है. लेख में कुछ अच्छी बातें लिखी हैं, पर कुछ ऐसी बातें भी हैं जिन्हें अगर न लिखा जाता तो अच्छा होता.

पहली ग़लत बात तो है इस लेख का शीर्षक.
१) अगर कांवरियों के गंगाजल लेकर घर लौटने से हरिद्वार-दिल्ली मार्ग पर ट्रेफिक अवरुद्ध हो जाता है और प्रशासन इस मार्ग को अन्य यात्रिओं के लिए बंद कर देता है तो हिंदू धर्म को हिंसक धर्म कह देना क्या सही है? यह बात ध्यान रखने की है कि एक अन्य मार्ग से हरिद्वार-दिल्ली के बीच आवागमन चलता रहता है. रास्ते तो मुहर्रम का जलूस निकालने के लिए भी बंद किए जाते हैं. क्या इस से इस्लाम एक हिंसक धर्म हो जाता है?
२) सड़क पर दुर्घटनाएं होती हैं। इन कांवरियों के आने के दौरान भी दुर्घटनाएं हो जाती हैं। यह दुखद है। इन दुर्घटनाओं से क्रोधित होकर कांवरियों द्बारा जन-संपत्ति को नुकसान पहुंचाना ग़लत है, पर क्या इस के कारण हिंदू धर्म को हिंसक धर्म कह देना सही है? सड़क दुर्घटनाओं से क्रोधित होकर जनता द्बारा जन-संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की घटनाएं आए दिन होती रहती हैं. पर इस के लिए कभी किसी को किसी धर्म को हिंसक करार देते नहीं सुना. गाजियाबाद लोनी में एक विवादास्पद स्थल पर जब पुलिस ने एक मस्जिद के गैरकानूनी निर्माण को रोका तो भीड़ ने पुलिस पोस्ट को जला दिया और पुलिस स्टेशन को जलाने का प्रयास किया. क्या मुराद जी इस्लाम को हिंसक धर्म कहेंगे? क्या इस्लामिक जिहाद के नाम पर जब मुसलमान आतंकवादी हमले करके अनेक निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार देते हैं तब मुराद जी इस्लाम को हिंसक धर्म नहीं कहते.

मुराद जी ने कांवरियों द्बारा गंगाजल लाने को एक खोखली प्रथा, धर्मान्धता और अंधविश्वास की संज्ञा दी है. उन्होंने आगे यह कहा है कि इन्हीं ग़लत बातों के कारण कुछ महापुरुष नए धर्मों की नीव डालते हैं. इस सिलसिले में उन्होंने मुहम्मद द्बारा इस्लाम की नीव डालने का हवाला दिया है. अब इस्लाम के नाम पर हो रही मार काट को देखते हुए क्या एक और मुहम्मद की जरूरत मुराद जी को नहीं महसूस होती?

अच्छा होता कि मुराद जी अपने लेख में कुछ संय्म बरतते और कांवरियों से सम्बंधित समस्या को धर्म से न जोड़ते. ऐसे लेख दूसरों के मन को केवल दुःख पहुँचा सकते हैं.

Monday, July 21, 2008

दो तस्वीरें और

मैंने अपनी पिछली पोस्ट में कुछ तस्वीरे पोस्ट की थीं, आरएसएस की शाखा और एक मुसलमान सज्जन द्वारा किए जा रहे प्राणायाम पर। आज फ़िर दो तस्वीरें लाया हूँ आपके लिए। वही मुसलमान सज्जन प्राणायाम कर रहे हें औए पास ही में शाखा हो रही है।

Thursday, July 10, 2008

आरएसएस की शाखा, प्राणायाम और मुसलमान

मैं जिस पार्क में सुबह घूमने जाता हूँ वहां आरएसएस की एक शाखा चलती है. लोग घूमते रहते हैं, कुछ लोग प्राणायाम करते हैं, कुछ लोग सत्संग करते हैं, बच्चे खेलते रहते हैं. मतलब यह कि लोग जिस उद्देश्य से पार्क में जाते हैं उस के अनुसार पार्क में जाने का आनंद उठाते हैं.

आज जब मैं पार्क में पहुँचा तो मैंने देखा कि आरएसएस की शाखा चल रही है, और उसके पास एक मुसलमान सज्जन हरी घास पर चादर विछा कर प्राणायाम कर रहे हैं. किसी को किसी से कोई परेशानी नहीं है. मैंने चुपके से कुछ फोटों खींच लीं. आप भी देखिये.
अक्सर लोग आरएसएस के बारे मैं यह कहते हैं कि वह मुस्लिम विरोधी है. यहाँ तो मुझे ऐसा कुछ नजर नहीं आया. उन मुस्लिम सज्जन के हाव-भाव से भी ऐसा नहीं लग रहा था कि वह आरएसएस के झंडे के पास प्राणायाम करते हुए कुछ परेशान हैं. दोनोअपना काम करते रहे. पहले मुस्लिम सज्जन ने प्राणायाम पूरा किया, अपनी चादर समेटी और चले गए. उसके बाद आरएसएस की विधि-पूर्वक शाखा पूरी हुई और वह लोग भी चले गए.

Tuesday, July 08, 2008

Tuesday, June 10, 2008

अनंत की महिमा

वह अनंत है,
यह अनंत है,
अनंत अनंत से आता है,
अनंत से अनंत निकालो तब भी अनंत ही बचता है,
ॐ शांति, शांति, शांति.


That is perfect;
This is perfect;
Perfect comes from perfect;
Take perfect from perfect, the remainder is perfect.
Peace. Peace. Peace.

— Brihadaaranyaka Upanishad

Friday, June 06, 2008

ज्ञान के दीप जले

स्वामी रामसुखदास जी की यह पुस्तक गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित हुई है. आपके जीवन में प्रकाश हो उस लिए कुछ दीप प्रज्ज्वलित करता हूँ इस पुस्तक से.

"जो अपना नहीं है, उस को अपना मानने से विश्वासघात होगा, धोखा होगा"

"दूसरे के दुःख से दुखी होने पर हमारा दुःख मिट जाता है. दूसरे के सुख से सुखी होने पर हम सुखी हो जाते हैं. काम ख़ुद करो, आराम दूसरों को दो"

"उसका अनुभव करें या न करें, वह तो बैसा ही है; पर अनुभव करने से हम हलचल (आवागमन) से रहित हो जाते हैं. उस का अनुभव करने में ही मनुष्य-जीवन की सफलता है"

"स्त्री परपुरुष का और पुरूष परस्त्री का सपर्ष न करे तो उनके तेज, शक्ति की वृद्धि होगी"

"जैसे आप अपना दुःख दूर करने के लिए पैसे खर्च करते हैं, ऐसे ही दूसरे का दुःख दूर करने के लिए भी खर्च करें, तभी आपको पैसे रखने का हक़ है"

"अपने को ऊंचा बनाने का भाव राक्षसी, आसुरी भाव है. दूसरों को ऊंचा बनाने का भाव दैवी भाव हे"

"सच्ची बात को स्वीकार करना मनुष्य का धर्म है"

"पहले भलाई करने से भलाई होती थी, आज बुराई न करने पर भलाई हो जाती है"

"कोई बस्तु न मिले तो उस की इच्छा का त्याग कर दें, और मिल जाए तो उसे दूसरों की सेवा में लगा दें"

"आप छोटों पर दया नहीं करते तो आपको बड़ों से दया माँगने का कोई अधिकार नहीं है"

"जो सेवा करते नहीं प्रत्युत सेवा लेते हैं, उन के लिए ज़माना ख़राब आया है. सेवा करने वाले के लिए तो बहुत बढ़िया ज़माना आया है"

"यदि आप अपना कल्याण चाहते हैं तो सच्चे ह्रदय से भगवान् के शरण हो जाएं"

:भगवान् की कृपा मैं कभी कमी नहीं होती, कमी कृपा न मानने मैं होती है"

"यदि मनुष्य अपने कर्तव्य का पालन करे और पदार्थों की कामना न करे तो उस का कल्याण हो जायेगा"

"मेरे को सुख कैसे हो यह पतन की बात है, और दूसरे को सुख कैसे हो यह उत्थान की बात है. सब अपना ही सुख चाहेंगे तो एक को भी सुख नहीं मिलेगा, आपस में लड़ाई हो जायेगी"

"ज्यादा बस्तुएँ होने से ज्यादा सुख होगा, यह बहम की बात है. उल्टे दुःख ज्यादा होगा"

"देने वाले सभी सज्जन होते हैं, लेने वाले सभी सज्जन नहीं होते"

Sunday, June 01, 2008

धर्म के पीछे डंडा लेकर पड़े रहते हैं कुछ लोग

कुछ लोगों के विचार में समाज में हर ग़लत बात के लिए धर्म जिम्मेदार है. कोई भी घटना घटे वह धर्म को बीच में घसीट लाते हैं और धर्म को और जो धर्म को मानते हैं, उन्हें गालियाँ देना शुरू कर देते हैं. मुझे लगता है कि ऐसे लोग जब तक एक दो बार धर्म को गाली न दे लें उनका दिन ठीक से नहीं गुजरता. ऐसे लोग दया के पात्र हैं. वह कुछ अच्छा करना चाहते हैं पर धर्म के चक्कर में कर नहीं पाते. वह कहते हैं हम धर्म को नहीं मानते, पर हर समय धर्म की रट लगाए रहते हैं - धर्म ने सारे समाज को दूषित कर दिया है, समाज में जितना अन्याय हो रहा है उसके लिए धर्म ही जिम्मेदार है, समाज में जितनी कुरीतियाँ हैं वह सब धर्म की देन हैं, इत्यादि. इतना बड़ा अपराधी है धर्म, पर उसे दंड कैसे दें? धर्म कोई व्यक्ति तो है नहीं जिसे अदालत में हाजिर करके सजा दिलाएं और फांसी पर लटका दें. धर्म तो एक सोच है. एक तरीका हो सकता है कि ऐसा कानून बनाया जाए कि धर्म का सोच रखने वाले व्यक्तिओं को फांसी पर लटका दिया जाए. पर यह कानून सिर्फ़ हिन्दुओं के लिए ही बन सकता है. किसी और धर्म के बारे में ऐसा सोचने वाले ख़ुद ही फांसी पर लटका दिए जायेंगे.

आपने बहुत कम देखा होगा किसी को चिल्लाते हुए कि मैं धर्म में विश्वास करता हूँ. लोग मन्दिर में जाते हैं. तीर्थ स्थानों की यात्रा करते हैं. प्रवचन सुनते हैं. कीर्तन करते हैं. पर कोई यह नहीं कहता फिरता की वह धर्म में विश्वास करता हैं. पर धर्म में विश्वास न करने वालों को जब तक चैन नहीं मिलता जब तक वह यह बात सब को बता न दें, और यह साबित करने की कोशिश न कर लें कि धर्म ग़लत है और समाज की सारी समस्याओं के लिए जिम्मेदार है. यह कैसी मानसिकता है? अरे भाई आप धर्म में विश्वास नहीं करते, ठीक है मत करिये. कौन आप से जबरदस्ती कर रहा है? आप की मर्जी है, धर्म को मानो या न मानो. आप मानते हैं तो किसी को फायदा नहीं. आप नहीं मानते तो किसी को नुकसान नहीं. धर्म को मानना या न मानना एक व्यक्तिगत बात है.

आज हिंदू धर्म की किसी मान्यता का हवाला दे कर कोई भी किसी दूसरे को मजबूर नहीं कर सकता (इस्लाम और दूसरे धर्मों की बात में नहीं करता). बल्कि हिंदू धर्म की किसी भी मान्यता का लोग खुलेआम मजाक उड़ा सकते हैं. किसी भी हिंदू देवी-देवता की नंगी तस्वीर बना सकते हैं. अगर कोई शिकायत करता है तो मीडिया और कानून गाली देने वालों का ही समर्थन करता है. इस के बाद भी लोगों का मन नहीं भरता. जब मौका लगता है हिंदू धर्म को गाली देने से बाज नहीं आते.

मुझे ऐसे लोगों पर दया आती है. अरे भाई अपनी जुबान गन्दी कर के आप हिंदू धर्म का क्या नुकसान कर लेंगे. यह तो ऐसा धर्म हे कि एक हिंदू अगर हिंदू धर्म को गाली भी देगा तब भी हिंदू ही रहेगा. इस धर्म में तो आस्तिक भी हिंदू है और नास्तिक भी. आप क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं, कैसे रहते हैं, आपकी मर्जी है. आप को हिंदू होने का सर्टिफिकेट नहीं लेना किसी से. कोई आप को हिंदू धर्म से निकाल नहीं सकता. हिंदू धर्म को गाली देने से बेहतर होगा उसे समझना. धर्म के पीछे डंडा लेकर मत दौड़िये. उस से धर्म का कुछ नहीं बिगड़ना. दौड़ते-दौड़ते गिर पड़े तो ख़ुद ही चोट खा जाओगे.

Thursday, May 29, 2008

एक और आतंकवादी हमला, इस बार जति के नाम पर

कितनी जल्दी भूल गए सब कि कुछ दिन पहले जयपुर में किया था आतंकवादियों ने हमला धर्म के नाम पर. अब अखबार भरे हैं दूसरे हमले की ख़बरों से जो गुर्जरों ने किया है जाति के नाम पर. दोनों में सरकारी और निजी संपत्ति नष्ट हुई है. दोनों में इंसान मरे हैं. इंसानियत मरी है. क्या फर्क है दोनों हमलों में?

पहले हमले में लाशों की सम्मान के साथ अन्तिम क्रिया हुई थी. इस हमले की लाशें सड़ रही हैं. यह कौन लोग थे जो मर गए? क्यों इन के मरने पर किसी की आँख से एक आंसू नहीं गिरा? क्यों मीडिया इन के परिवारवालों से इंटरव्यू करने नहीं गया? क्यों इन की विलखती माँ और बहन की तस्वीर मीडिया ने नहीं छापी? क्यों इन के शवों का अपमान किया जा रहा है? एक आंदोलनकारी ने कहा कि अगर एक लाख गुर्जर मर जायेंगे तो भी हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा. दूसरे ने कहा इन शवों का पोस्टमार्टम रेल की पटरी पर करो. यह कैसे इंसान हैं?

कुछ लोग धर्म पर लोगों को भड़काते हैं, कुछ लोग जाति पर. मतलब दोनों का एक ही है. दूसरों को मरबा कर अपना उल्लू सीधा करना. दिल्ली में वकील इस हिंसा के समर्थन में हड़ताल पर चले गए. आज सारी दिल्ली को घेरा हुआ है. दिल्ली वालों को फल, दब्जी, दूध नहीं पहुँचने देंगे. भिवाडी में सारे कारखाने बंद करा देंगे. रेल की पटरियाँ और उपकरण नष्ट कर देंगे. सड़क पर यातायात रोक कर देश को करोड़ों का नुकसान करबा देंगे. यह सब कहने वाले कौन हैं? कोई देशभक्त तो ऐसा नहीं कह और कर सकता. यह भी एक तरह का आतंकवाद है. एक धर्म का नाम लेकर है तो यह जाति का नाम ले कर.

Monday, May 19, 2008

भारतीय धर्म-निरपेक्षता को नकारात्मक बना दिया है कुछ लोगों ने

कल के अखबार में एक लेख छपा था भारतीय धर्म-निरपेक्षता के ऊपर। लेखक हैं एम् जे अकबर। वह कहते हैं:
"...... there is not a single instance of any Hindu writer having vilified the Prophet of Islam. Similarly, there is, to my knowledge, not a single Muslim writer who was abusive towards Lord Ram or Hanuman. Indian secularism is quintessentially different from that of the west. It is not the separation of state and religion, but space for the other: coexistence on the basis of mutual respect. I do not have to believe in Hanuman to respect my Hindu brother's right to believe in Ramayana; the Hindu does not need to believe in Allah to respect my belief in the miracle of Holy Koran...."

कितना अच्छा होता अगर यह पूर्ण वास्तविकता होती। कुछ तथाकतित बौद्धिक लेखक और आर्टिस्ट हर हिंदू विचार को ग़लत साबित करने में लगे रहते हें। घटिया राजनीतिबाजों और मजहब के सौदागरों ने भारतीय धर्म-निरपेक्षता को नफरत और मार-काट में बदल दिया है। वोट की ओछी राजनीति लोगों को धर्म के नाम पर बाँट रही है. इस नफरत के साए में बाहर से आए कुछ आतंकवादी आसानी से यहाँ पनाह पा जाते हैं और स्थानीय मदद से आसानी से जयपुर जैसे नर-संहार को अंजाम दे देते हैं.


हिन्दू होकर हिन्दुओं और हिन्दू धर्म को गाली देना प्रगतिशीलता की निशानी बन गया है। सरकार से लेकर एक आम आदमी तक सब स्वयं को प्रगतिशील साबित करने में लगे हुए हें। मैंने एक ब्लाग में पढ़ा कि हिन्दू ही हिन्दू धर्म का दुश्मन है। और एक ब्लाग में एक हिन्दू की लिखी ग़ज़ल पढ़ी। इन सज्जन ने राम भक्तों की खुलकर भर्त्सना की है। इस ग़ज़ल के लिए इन्हे ईनाम भी दिया गया है। सच पूछिये तो किसी गैर हिन्दू को हिन्दू धर्म के बारे में कुछ ग़लत कहने की जरूरत ही नहीं है। यह सारा काम तो कुछ हिन्दू ही कर देते हें।

भारतीय धर्म-निरपेक्षता को नकारात्मक बना दिया है कुछ लोगों ने।

Wednesday, May 14, 2008

फ़िर मचाया कत्लेआम हत्यारों ने

कल हत्यारों ने फ़िर कत्लेआम मचाया. इस बार जयपुर के निरीह निवासी उनका निशाना बने. कौन हैं यह हत्यारे और इस तरह निर्दोष इंसानों का खून बहा कर क्या हासिल करना चाहते हैं? यह हत्यारे खुदा के बन्दे तो हो नहीं सकते. कोई खुदा इतना बेरहम नहीं हो सकता जो अपने बंदों की इस बात से खुश होता हो कि वह उसके दूसरे बंदों का खून कर देते हैं. कोई शैतान ही ऐसा हो सकता है और अपने अनुयाइयों से यह उम्मीद कर सकता है.

खुदा तो प्यार का भूखा है. वह सब का मालिक है. हम सब उस के बच्चे हैं. कोई भी पिता यह नहीं चाहेगा कि उस के बच्चे आपस में मार काट करें और वह भी उसके नाम पर. पिता तो यही चाहेगा कि उस के बच्चे आपस में मिल जुल कर प्रेम से रहें. यह लोग जो मजहब और खुदा के नाम पर खुदा के बंदों का खून बहते हैं, क़यामत के दिन खुदा को क्या जवाब देंगे? यह लोग सोचते हैं कि खुदा उनसे खुश होगा और उन्हें जन्नत अता फरमायेगा. कितना ग़लत सोचते हैं यह लोग? मुझे पूरा यकीन है कि इनका खुदा इन्हें बहुत भयंकर सजा देगा और यह लोग अनंत काल तक जहन्नुम की आग में जलेंगे.

अफ़सोस की बात यह है की केन्द्र और प्रदेशों की सरकारें नागरिकों की जान-माल की कोई रक्षा नहीं कर पा रही हैं. अक्सर आतंकवादियों के हमले होते है, जान-माल का नुकसान होता है, और सरकार केवल इन घटनाओं की निंदा करके और नागरिकों से शान्ति बनाये रखने की अपील करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है. सुरक्षा सेनाएं केवल निर्दोष नागरिकों पर ही अपना जोर चला पाती हैं. जब सुरक्षा कर्मी अपनी जान की बाजी लगा लगा कर इन कातिलों को पकड़ लेते हैं तो सरकार इन हत्यारों को कोई सजा नहीं दे पाती. पार्लियामेन्ट हमले में इन राजनीतिबाजों को बचाने में कितने सुरक्षा कर्मी मारे गए, पर इन एह्सानफरामोशों ने उनके कातिलों को सरकारी दामाद बना लिया. आज तक एक भी आतंकवादी को उस के अपराधों की सजा नहीं दे पाई यह सरकार.

क्या फायदा है ऐसी सरकार का? क्या फायदा है ऐसी सुरक्षा एजेंसिओं का? अगर नागरिक सरकार पर भरोसा न करें और अपनी सुरक्षा ख़ुद करें तो शायद इतना जान-माल का नुकसान न हो.