कितनी जल्दी भूल गए सब कि कुछ दिन पहले जयपुर में किया था आतंकवादियों ने हमला धर्म के नाम पर. अब अखबार भरे हैं दूसरे हमले की ख़बरों से जो गुर्जरों ने किया है जाति के नाम पर. दोनों में सरकारी और निजी संपत्ति नष्ट हुई है. दोनों में इंसान मरे हैं. इंसानियत मरी है. क्या फर्क है दोनों हमलों में?
पहले हमले में लाशों की सम्मान के साथ अन्तिम क्रिया हुई थी. इस हमले की लाशें सड़ रही हैं. यह कौन लोग थे जो मर गए? क्यों इन के मरने पर किसी की आँख से एक आंसू नहीं गिरा? क्यों मीडिया इन के परिवारवालों से इंटरव्यू करने नहीं गया? क्यों इन की विलखती माँ और बहन की तस्वीर मीडिया ने नहीं छापी? क्यों इन के शवों का अपमान किया जा रहा है? एक आंदोलनकारी ने कहा कि अगर एक लाख गुर्जर मर जायेंगे तो भी हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा. दूसरे ने कहा इन शवों का पोस्टमार्टम रेल की पटरी पर करो. यह कैसे इंसान हैं?
कुछ लोग धर्म पर लोगों को भड़काते हैं, कुछ लोग जाति पर. मतलब दोनों का एक ही है. दूसरों को मरबा कर अपना उल्लू सीधा करना. दिल्ली में वकील इस हिंसा के समर्थन में हड़ताल पर चले गए. आज सारी दिल्ली को घेरा हुआ है. दिल्ली वालों को फल, दब्जी, दूध नहीं पहुँचने देंगे. भिवाडी में सारे कारखाने बंद करा देंगे. रेल की पटरियाँ और उपकरण नष्ट कर देंगे. सड़क पर यातायात रोक कर देश को करोड़ों का नुकसान करबा देंगे. यह सब कहने वाले कौन हैं? कोई देशभक्त तो ऐसा नहीं कह और कर सकता. यह भी एक तरह का आतंकवाद है. एक धर्म का नाम लेकर है तो यह जाति का नाम ले कर.
1 comment:
आफ एकदम सही कह रहे हैं। विचारात्मक लेख के लिए बधाई।
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