मैं जिस पार्क में सुबह घूमने जाता हूँ वहां आरएसएस की एक शाखा चलती है. लोग घूमते रहते हैं, कुछ लोग प्राणायाम करते हैं, कुछ लोग सत्संग करते हैं, बच्चे खेलते रहते हैं. मतलब यह कि लोग जिस उद्देश्य से पार्क में जाते हैं उस के अनुसार पार्क में जाने का आनंद उठाते हैं.
आज जब मैं पार्क में पहुँचा तो मैंने देखा कि आरएसएस की शाखा चल रही है, और उसके पास एक मुसलमान सज्जन हरी घास पर चादर विछा कर प्राणायाम कर रहे हैं. किसी को किसी से कोई परेशानी नहीं है. मैंने चुपके से कुछ फोटों खींच लीं. आप भी देखिये.
अक्सर लोग आरएसएस के बारे मैं यह कहते हैं कि वह मुस्लिम विरोधी है. यहाँ तो मुझे ऐसा कुछ नजर नहीं आया. उन मुस्लिम सज्जन के हाव-भाव से भी ऐसा नहीं लग रहा था कि वह आरएसएस के झंडे के पास प्राणायाम करते हुए कुछ परेशान हैं. दोनोअपना काम करते रहे. पहले मुस्लिम सज्जन ने प्राणायाम पूरा किया, अपनी चादर समेटी और चले गए. उसके बाद आरएसएस की विधि-पूर्वक शाखा पूरी हुई और वह लोग भी चले गए.
10 comments:
If im in the situation of the owner of this blog. I dont know how to post this kind of topic. he has a nice idea.
To the owner of this blog, how far youve come?You were a great blogger.
Your blog is very creative, when people read this it widens our imaginations.
किसी को कोई तकलिफ नहीं, तकलिफ दुकाने खोले बैठे बुद्धिजिवियों को है जो पुछते है यह तैयारी किस लिए?
अच्छी पोस्ट.
टिप्पणी पर मोडरेशन चालू करें, स्पैम आ रही है.
सुरेश जी सीधी सी बात हे हमे लडाने वाले अपनी अपनी राजनीति की रोटियां सेकंते हे,वरना हर कोई मस्त हे अपने आप मे,
are vha ye to bhut achhi baat hai.
srimaan ji, hinduon ne kabhi kisi par hamla nahi kiya, itihaas gawaah hai is baat ka, aaj bhi 5000 hindu me 5 muslim surakshit rahte hain lekin 5000 muslim me 500 hindu nahi, dikkat yeh hai ki is desh ki har cheej ko muslim hit se jod kar dekhne lage hain politiciaion, tasleema rushdie denmark ka catoonist galat hai lekin m f hussain theek, kasmir ke log kahin bhi kuchh bhi kharid sakte hain lekin baaki desh wale kashmir me ek inch jagah nahi kharid sakte, haz par arbon rupaye ki subsidy di jaati hai, lekin 100 ekad jammen lease par nahi dee ja sakti. durbhagya hai ki is desh ke aam naagriko ki aankhen ab bhi nahi khuli hain
वो मुस्लिम भाई ज्ञानी है एकदम ओरिजनल मुल्ला नसरुद्दीन .और बांकी लोग अपने ज्ञान का ढोल पीटने वाले बुद्धिजीवी कहलाते हैं. जो कश्मीर हमारा है कहने वाले को देशद्रोह की संज्ञा देते है .छद्म धर्मनिरपेक्षता का चादर ओढे ये ख़ुद देशद्रोही हैं.
ख़ुद जिस धर्म को मानते है वो स्वतंत्र लेखन की इजाज़त नही देता .जो धर्म स्वतंत्र लेखन की इजाज़त दिए हुए है उसके तथाकथित बुद्धि से जीविकापार्जन करने अपने कलम को बेलगाम छोड हुए है .
आभार सांस्कृतिक फोटो और संस्कारिक बातों के लिए.
ये अच्छा किया आपने जो, सबको इसके दर्शन कराए।
मैं राज भाटिया जी और संजय बेंगाणी जी से पूरी तरह सहमत हूँ, क्यूंकि जहाँ तक मुझे मालूम है अंग्रेजो के आने से पहले शायद ही कभी हिन्दुस्तान में मज़हबी दंगे हुए हो, या फिर कोई मस्जिद या मंदिर तोडा गया हो....हमारे देश के नेता अंग्रेजो की नीति पर चलते हैं वर्ना उन लोगो की रोज़ी रोटी कैसे चलेगी?
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