दैनिक प्रार्थना

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Tuesday, September 02, 2008

क्यों परेशां हो बदलने को धर्म दूसरों का?

पोप ने उड़ीसा में हुई हिंसा पर दुःख प्रकट किया और निंदा की. लेकिन यह दुःख और निंदा दोनों अपने ईसाई भाई-बहनों के लिए थी. हिंदू भाई-बहनों के लिए न उनके पास दिल है और न समय. जो ईसाई इस हिंसा में मरे उनके लिए पोप ने आंसू बहाए, पर स्वामीजी और उनके चार चेलों के लिए न उनके पास आंसू हैं और न कोई सहानुभूति का शब्द.

शुरुआत किसने की? स्वामीजी और उनके चार चेलों को क्यों मारा गया? क्या यह धर्म के नाम पर हिंसा नहीं है? इन लोगों को मार कर ईसाई क्या सोच रहे थे कि हिन्दुओं को दुःख नहीं होगा? क्या वह चुपचाप कभी मुस्लिम आतंकवादियों और कभी ईसाईयों द्वारा मारे जाते रहेंगे और कुछ नहीं कहेंगे? क्या हिन्दुओं को तकलीफ नहीं होती? क्या जब उनकी दुर्गा माता की नंगी तस्वीर बनाई जाती है तो उनका दिल नहीं दुखता? इन सवालों का जवाब क्या है और कौन यह जवाब देगा?

जब भी कभी किसी मुसलमान या ईसाई के साथ अन्याय होता है, सारे मुसलमान, सारे ईसाई और बहुत सारे हिंदू खूब चिल्लाते हैं. हिन्दुओं को गालियाँ देते हैं. उनके संगठनों पर पाबंदी लगाने की बात करते हैं. भारतीय प्रजातंत्र तक को गालियाँ दी जाने लगती हैं. पर जब हिन्दुओं के साथ अन्याय होता है तो यह सब चुप रहते हैं. कश्मीर से पंडित बाहर निकाल दिए गए, कौन बोला इन में से? जम्मू में आतंकवादियों ने कई हिन्दुओं को मार डाला, कौन बोला इन में से? मुझे लगता है कि मुसलमान और ईसाईयों से ऐसी उम्मीद करना सही नहीं है कि वह कभी किसी हिंदू पर अन्याय होने पर दुःख प्रकट करेंगे. शायद उनके धर्म में ही यह नहीं है. पर हिंदू तो हिन्दुओं को गाली देना बंद करें. जब हिंदू हिंदू को गाली देता है तो मुसलमान और ईसाईयों का हौसला बढ़ता है. मुझे यकीन है कि अगर हिंदू हिंदू को गाली देना बंद कर दे तो भारत में धरम के नाम पर दंगे कम हो जायेंगे. हिन्दुओं का एक होना जरूरी है, मुसलमानों और ईसाईयों के खिलाफ नहीं, बल्कि मुसलमानों और ईसाईयों को यह बताने के लिए कि भारत में हिन्दुओं के साथ मिल जुल कर रहो. इसी में सबकी भलाई है.

न हिंदू बुरा है,
न मुसलमान बुरा है,
करता है जो नफरत,
वो इंसान बुरा है.

और अब एक निवेदन पोप से:

क्यों परेशां हो?
बदलने को धर्म दूसरों का,
खुदा का कोई धर्म नहीं होता.

6 comments:

Pramendra Pratap Singh said...

आपने सत्य कहा है, भारत में हिन्‍दू होना सबसे बड़ा गुनाह है, हिन्‍दू को दर्द नही होता है, कुछ लोगो की ऐसी मानसिकता ही बन गई है। हिन्‍दू कभी कट्टर नही हो सकता है हिन्‍दू धर्म में सदा सभी को अत्‍मसात करने की मानसिकता रही है यही कारण है कि आज सभी धर्मो के लोग यहाँ रह रहे है।

संजय बेंगाणी said...

नहीं जी, मेरे वाले खुदा/गोड वाला धर्म ही असली धर्म है, इसे अपनाओ या मरो. ज्यादा चूँ चा की तो पॉप से कह दूँगा नहीं तो धर्मनिरपेक्षतावादी, मानाधिकारवादी, ये वादी वो वादी सभी है.

Arun Arora said...

सुरेश भाई बुरा मत मानना बिना इजाजत माल उठा ले जा रहा हू . आपकी पोस्ट यहा भी है http://pangebaj.com/?p=179 , फ़िर से माफ़ी के साथ आपका अरूण

Anonymous said...

आपस में लड मरने के लिये अपने अपने धर्मों और पूर्वजों की सोच द्वारा श्रापित हैं! कुरान में लिखा है की याहुदी तुम्हारे शत्रु हैं - हर गैर मुस्लिम नास्तिक है क्योंकी मात्र "अल्लाह" ही ईश्वर है - वे ईश्वर के लिये कुरान के बाहर के किसी संबोधन को स्वीकार ही नहीं कर सकते!

Anonymous said...

स्वामी विवेकानन्द

Nitish Raj said...

सच बात है कि जब हमें ये पढ़ाया जाता है कि सबका मालिक एक मतलब खुदा तो इन सिरफिरों को भी तो ये ही पढ़ाया जाता होगा और यदि नहीं तो भई ये देश हमारा है। हम तो बर्दाश नहीं करेंगे।