साईं बाबा अपने भक्तों के घर जाकर आवाज लगाते थे - भिक्षाम देही. भक्त बाहर आते और जो कुछ घर में होता बाबा के अर्पण करते. बाबा अपनी झोली का मुंह खोल देते, भिक्षा झोली में आ जाती, और साथ ही झोली में आ जाते भक्तों के दुःख और कष्ट.
एक बार कुछ लोगों के चढाने पर आयकर अधिकारी बाबा कि संपत्ति का लखा-जोखा करने आए. शिकायत थी कि बाबा के पास अगाध धन है पर वह एक पैसा भी आयकर नहीं देते. बाबा आयकर अधिकारी के रहने की जगह पहुँच गए भिक्षा मांगने, पर उस ने कुछ नहीं दिया. कुछ समय पश्चात् आयकर अधिकारी को सत्य का ज्ञान हुआ. बाबा फ़िर आ गए भिक्षा मांगने. इस बार आयकर अधिकारी ने उन्हें भिक्षा दी और भिक्षा के साथ आयकर अधिकारी का पेट का दर्द भी झोली में आ गया.
ऐसे थे साईं बाबा. सब का मालिक एक है.
3 comments:
सुरेश जी हम ने तो कही पढा था कि साई बाबा तो फ़कीर थे, ओर उस समय क्या यह आयकर अधिकारी थे, अगर थे तो उन्होने नही देखा की एक फ़टे पुराने कपडो मै लिपटा फ़कीर आज के साई बाबा की तरह से नही है, जो सोने ओर चांदी के सिहासंन पर बेठता हो, साई बाबा की तो कोई झोपडी भी नही थी, तो उस फ़कीर को बेठने के लिये तो जमीन ही मिलती थी.
धन्यवाद
ताज जी, यही सब देख कर आयकर अधिकारी के मन में सत्य का उदय हुआ. आज कल एक टीवी चेनल पर यह कार्यक्रम आ रहा है.
नव वर्ष 2009 की हार्दिक शुभकामनाएं।
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