आज कल आतंकवाद और मजहबी दंगों पर जम कर बहस चल रही है. ज्यादातर लोग एक तरफा बहस कर रहे हैं. इस से मुद्दे सुलझने की बजाय और उलझ रहे हैं. कुछ लोगों की नजर में सारे मुसलमान आतंकवादी हैं. दूसरे कुछ लोगों की नजर में सारी गलती हिन्दुओं की है. यह लोग समाज के हर वर्ग से हैं, पुलिस से हैं, सरकार से हैं, मीडिया से हैं, धर्म गुरु हैं, शिक्षा संस्थानों से हैं. कुछ लोग इन बुराइयों के लिए धर्म को जिम्मेदार करार देते हैं. कुछ लोग पुलिस को गालियाँ देते हैं. सब एक-पक्षीय बात करते हैं. बस अपना पक्ष कहना. दूसरे पक्ष की बात ही सुनना नहीं चाहते यह लोग. क्या इस से यह समस्यायें सुलझेंगी? मेरे विचार में तो नहीं. अगर लोग ऐसे ही चिल्लाते रहे तो समस्यायें और उल्झेंगी.
हिंदू हों, या मुसलमान हों, या ईसाई हों, इसी देश में रहते हैं, और आने वाले समय में भी इसी देश में रहेंगे. क्या इसी तरह लड़ते रहना है या मिल जुल कर रहना है? अगर मिल जुल कर रहना है तो दूसरे की बात भी सुनो, उसे क्या तकलीफ है यह जानने की कोशिश करो. एक तरफा बातें करना बंद करो. नहीं तो लड़ते रहो, आज तुमने उन्हें पटक दिया कल वह तुम्हें पटक देंगे, फ़िर तुम उन्हें पटक देना, बस ऐसे ही करते रहो.
कल राष्ट्रीय एकता परिषद् की मीटिंग है जिसमें तुम्हारे और दूसरों के वोट के इच्छुक पहलवान कुश्ती लड़ेंगे. नफरत के दांव लगायेंगे. एक दूसरे को गालियाँ देंगे. फ़िर तुम्हारी तरफ़ देखेंगे कि तुम उन की कुश्ती से खुश हुए या नहीं. यह तुम्हें तय करना है कि तुम नफरत करते रहोगे या प्रेम से मिल जुल कर रहोगे.