एक ब्लाग (मोहल्ला) पर छपी एक टिपण्णी के अनुसार “न्यू लाईफ़ वॉइस” मिशनरी केन्द्र ने एक पुस्तक प्रकाशित की जिसका नाम रखा गया “सत्य दर्शिनी”, और इस बुकलेटनुमा पुस्तक को बड़े पैमाने पर गाँव-गाँव में वितरित किया गया। इस में छापा था:
"1) “…इन्द्रसभा की नृत्यांगना उर्वशी विष्णु की पुत्री थी, जो कि एक वेश्या थी…”।
2) “…गुरु वशिष्ठ एक वेश्या के पुत्र थे…”।
3) “…बाद में वशिष्ठ ने अपनी माँ से शादी की, इस प्रकार के नीच चरित्र का व्यक्ति भगवान राम का गुरु माना जाता है…” (पेज 48)।
4) “…जबकि कृष्ण खुद ही नर्क के अंधेरे में भटक रहा था, तब भला वह कैसे वह दूसरों को रोशनी दिखा सकता है। कृष्ण का चरित्र भी बहुत संदेहास्पद रहा था। हमें (यानी न्यूलाईफ़ संगठन को) इस झूठ का पर्दाफ़ाश करके लोगों को सच्चाई बताना ही होगी, जैसे कि खुद ब्रह्मा ने ही सीता का अपहरण किया था…” (पेज 50)।
5) “…ब्रह्मा, विष्णु और महेश खुद ही ईर्ष्या के मारे हुए थे, ऐसे में उन्हें भगवान मानना पाप के बराबर है। जब ये त्रिमूर्ति खुद ही गुस्सैल थी तब वह कैसे भक्तों का उद्धार कर सकती है, इन तीनों को भगवान कहना एक मजाक है…” (पेज 39)।
इस पुस्तक को पढ़ने के बाद लोग भड़क गये और यही इन दंगों का मुख्य कारण रहा. यह सही है कि इस तरह की किताब बांटी गई, तो सवाल यह उठता है कि क्या यह भड़काऊ नहीं है जिससे मारकाट मच जाए??? ऐसे में सरकार ने क्या किया? क्या ऐसे संगठनों और मिशनरियों पर प्रतिबंध नहीं लगना चाहिए????"
कारण को छुपाना और सिर्फ़ उस के परिणामों की निंदा करना ग़लत है. ग़लत परिणाम के कारण की भी निंदा की जानी चाहिए. पोप को तकलीफ होती है ईसाइयों के ख़िलाफ़ हिंसा से. पर इस किताब में की गई हिंसा से उन्हें तकलीफ नहीं होती. वह इस की निंदा नहीं करते. ऐसा ही हाल, वोट की राजनीति करने वाले नेताओं का है. ख़ुद को धर्मनिरपेक्ष और महान साबित करने को बेकरार कुछ वुद्धिजीवी भी केवल हिन्दुओं को ही गालियाँ दे रहे हैं. यह लोग यह क्यों नहीं समझते की जब तक ईसाई मिशनरी अपनी ग़लत हरकतें बंद नहीं करते तब तक उन के ख़िलाफ़ यह हिंसा बंद नहीं होगी. यह आज की बात नहीं है, न जाने कब से यह चल रहा है. लोग बर्दाश्त करते हैं, पर जब हिंदू धर्म को की जा रही गाली-गलौज हद से बाहर हो जाती तो लोग उस का उत्तर देने को मजबूर हो जाते हैं. किसी धर्म की निंदा करके, उस के अनुयायिओं का धर्म बदल कर, कोई चाहे कि वह मजे से रहेगा तो यह उस का भ्रम है. देर सबेर उसे अपनी इस हिंसा का परिणाम भुगतना ही होगा. क्या हिंदू इंसान नहीं हैं? क्या उन्हें तकलीफ नहीं होती.
हिंसा विचार, शब्द, कर्म तीनों से होती है. हिंसा हर रूप में निंदनीय है. एक तरफा निंदा आग में घी डालने का काम करती है. कोई नहीं जानता मरने के बाद क्या होगा. इस जिंदगी को तो प्रेम से जी लो. ख़ुद भी प्रेम से रहो और दूसरों को भी प्रेम से रहने दो.
प्रेम करो सबसे, नफरत न करो किसी से.
साईं बाबा कहा करते थे कि सब का मालिक एक है. हम सब ईश्वर की संतान हैं. ईश्वर चाहता है कि हम सब एक दूसरे से प्रेम करें. आइये नफरत को अपने दिल से निकाल दें, सब से प्रेम करें और कहें, सब का मालिक एक है.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो.
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Tuesday, October 14, 2008
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