बहुत पहले एनडीटीवी की एक चर्चा फोरम पर आतंकवाद पर हो रही चर्चा में भाग लेते हुए मैंने कहा था कि बिना स्थानीय मुसलमानों की मदद से यह बम विस्फोट नहीं किए जा सकते। उस समय बहुत से चर्चाकारों ने मुझे गालियाँ दी और आरएसएस का पिट्ठू बताया। आज अखबार में एक ख़बर छपी है, जिसमें मेरी यह बात सच साबित हो रही है. आप भी पढ़िये यह ख़बर:
जो लोग गिरफ्तार हुए हें वह कोई गरीब और पिछड़े हुए मुसलमान नहीं हें। सब शिक्षित हें और दूसरे हिंदुस्तानिओं की तरह सामान्य जिंदगी गुजार रहे हें। यह निर्दोष नागरिकों को मार देने से बिल्कुल नहीं हिचकिचाते। यह कहते हें कि भारत में इस्लाम खतरे में है। अब तो लग रहा है कि इस्लाम भारत के लिए खतरा बनता जा रहा है।
साईं बाबा कहा करते थे कि सब का मालिक एक है. हम सब ईश्वर की संतान हैं. ईश्वर चाहता है कि हम सब एक दूसरे से प्रेम करें. आइये नफरत को अपने दिल से निकाल दें, सब से प्रेम करें और कहें, सब का मालिक एक है.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो.
Wednesday, August 27, 2008
Monday, August 18, 2008
अब तो अवतरित हो जाओ कन्हैया
तुम्हारा जन्म दिन फ़िर आ रहा है,
इस बार तो अवतरित हो जाओ कन्हैया,
या इस बार भी दिखावों के आयोजनों में ही बीत जायेगा तुम्हारा जन्म दिन?
'जब भी धर्म की हानि होगी मैं आऊंगा', यही कहा था तुमने पिछली बार,
समय आ गया है अपना वादा निभाओ कन्हैया.
अधर्म राज कर रहा है धर्म पर,
धर्म के नाम पर हिंसा हो रही है,
आतंक फैलाने वाले दनदनाते घूम रहे हैं,
राज्य जनता की रक्षा नहीं कर पा रहा,
सत्ता के लालच ने सत्य को निगल लिया है,
कौवे मोती खा रहे हैं, हंस दाना-दुमका चुग रहे हैं,
पाप की काली छाया ने पूरी पृथ्वी को ढक लिया है,
रिश्वत के बिना कोई काम नहीं होता,
ईमानदारी हर कदम पर बेइज्जत हो रही है,
मानवीय संबंधों का बलात्कार हो रहा है,
बेटी बाप के साथ सुरक्षित नहीं है,
भ्रूण हत्या आम हो रही है,
क्या यह सब काफ़ी नहीं है अवतरित होने के लिए?
अब तो अवतरित हो जाओ कन्हैया.
एक बात का ध्यान रखना कन्हैया,
इस बार काम इतना आसन नहीं होगा,
हजारों कंस हैं इस बार तुम्हारे मुकाबले में,
सैकड़ों धृतराष्ट्र बैठे हैं न्याय की गद्दी पर,
लाखों दुर्योधन और शकुनी घात लगा रहे हैं,
इस बार किसी आम आदमी के घर पैदा होना,
यह आम आदमी ही बनेगा तुम्हारी सेना,
सत्ता के पाखंडियों से बच कर रहना,
वरना विदुर की रसोई ठंडी हो जायेगी,
घसीट ले जायेंगे यह तुम्हें दुर्योधन के महल में,
मीडिया नाम का एक नया हथियार है इन के पास,
जो झूट को सच बना देता है और सच को झूट,
न्याय वही देखता, सुनता और कहता है जो यह चाहते हैं,
कहीं ऐसा न हो कि यह तुम्हें ही आतंकवादी साबित कर दें,
यह कलयुग है कन्हैया और तुम्हारा पहला अवतार है कलयुग में,
जरा ध्यान से अवतरित होना कन्हैया.
इस बार तो अवतरित हो जाओ कन्हैया,
या इस बार भी दिखावों के आयोजनों में ही बीत जायेगा तुम्हारा जन्म दिन?
'जब भी धर्म की हानि होगी मैं आऊंगा', यही कहा था तुमने पिछली बार,
समय आ गया है अपना वादा निभाओ कन्हैया.
अधर्म राज कर रहा है धर्म पर,
धर्म के नाम पर हिंसा हो रही है,
आतंक फैलाने वाले दनदनाते घूम रहे हैं,
राज्य जनता की रक्षा नहीं कर पा रहा,
सत्ता के लालच ने सत्य को निगल लिया है,
कौवे मोती खा रहे हैं, हंस दाना-दुमका चुग रहे हैं,
पाप की काली छाया ने पूरी पृथ्वी को ढक लिया है,
रिश्वत के बिना कोई काम नहीं होता,
ईमानदारी हर कदम पर बेइज्जत हो रही है,
मानवीय संबंधों का बलात्कार हो रहा है,
बेटी बाप के साथ सुरक्षित नहीं है,
भ्रूण हत्या आम हो रही है,
क्या यह सब काफ़ी नहीं है अवतरित होने के लिए?
अब तो अवतरित हो जाओ कन्हैया.
एक बात का ध्यान रखना कन्हैया,
इस बार काम इतना आसन नहीं होगा,
हजारों कंस हैं इस बार तुम्हारे मुकाबले में,
सैकड़ों धृतराष्ट्र बैठे हैं न्याय की गद्दी पर,
लाखों दुर्योधन और शकुनी घात लगा रहे हैं,
इस बार किसी आम आदमी के घर पैदा होना,
यह आम आदमी ही बनेगा तुम्हारी सेना,
सत्ता के पाखंडियों से बच कर रहना,
वरना विदुर की रसोई ठंडी हो जायेगी,
घसीट ले जायेंगे यह तुम्हें दुर्योधन के महल में,
मीडिया नाम का एक नया हथियार है इन के पास,
जो झूट को सच बना देता है और सच को झूट,
न्याय वही देखता, सुनता और कहता है जो यह चाहते हैं,
कहीं ऐसा न हो कि यह तुम्हें ही आतंकवादी साबित कर दें,
यह कलयुग है कन्हैया और तुम्हारा पहला अवतार है कलयुग में,
जरा ध्यान से अवतरित होना कन्हैया.
Friday, August 15, 2008
Monday, August 04, 2008
जलूस में शामिल होना है तो दरवाजे से बाहर आइये
यह बात अक्सर कही जाती है कि भारत के मुसलमानों को हर बात पर कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है. उनकी देश भक्ति पर शक किया जाता है. उनसे कहा जाता है कि वह अपनी देश भक्ति साबित करें. और भी धर्मों के लोग इस देश में रहते हैं, उन से अपनी देश भक्ति साबित करने के लिए क्यों नहीं कहा जाता? यह बात कुछ हद तक सही है. ऐसा होता है. यह शिकायत भी जायज है. पर ऐसा क्यों होता है? क्यों लोग ऐसा सोचते हैं? क्या इस के बारे में मुसलमानों ने सोचा है, और जो कारण उनकी समझ में आए हैं, क्या उन्हें दूर करने की कोशिश की है?
मुसलमान अल्पसंख्यक हैं, इसके लिए वह विशेष सुविधाओं की मांग करते हैं. पर जहाँ वह बहुसंख्यक हैं, क्या वह वही सुविधाएं अल्पसंख्यकों को देने को राजी होते हैं? कश्मीर इसका एक उदाहरण है. वहां के मुसलमानों ने अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन देने का विरोध किया. क्यों? क्या कारण था इस के पीछे? क्यों हिंदू दर्शनार्थियों को सुविधा देने के लिए कुछ जमीन बोर्ड को नहीं दी जा सकती? इस के बाद मुसलमान कैसे यह शिकायत कर सकते हैं कि उन की देश भक्ति पर संदेह किया जाता है? ऐसे बहुत से उदाहरण दिए जा सकते हैं.
मेरे विचार में जब तक मुसलमान ख़ुद को राजनीति की विसात पर गोटी बनाकर पेश करते रहेंगे, नफरत के सौदागर यह गोटियाँ खेलते रहेंगे. इस बार परमाणु करार पर कटघरे में किसने खड़ा किया मुसलामानों को? जरा सोचिये यह वही लोग हैं जिन्हें मुसलमान अपना समझते है. जों मुसलमानों की नज़र में धर्म-निरपेक्ष हैं. आरएसएस को अपना दुश्मन मान कर मुसलमानों ने अपनी कमजोरी बता दी है इन लोगों को. मुसलमान आरएसएस से डरते रहेंगे और यह लोग आरएसएस का नाम लेकर उन्हें डराते रहेंगे. अरे यह डरना डराना बंद कीजिये. खुले दिल से आइये और राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल होइए. फ़िर देखिये कौन आप को दुतकारता है और कौन आपको गले लगाता है? दरवाजे के पीछे से आप जलूस को सिर्फ़ देख भर सकते हैं, उसमें शामिल नहीं हो सकते. शामिल होना है तो दरवाजे के बाहर आना होगा.
सब का देश पर बराबर का हक है, बराबर की जिम्मेदारी है. हक़ लेना है तो जिम्मेदारी निभानी होगी. ख़ुद को सब में शामिल करना होगा. अलग बस्तियां बना कर दूसरों से कैसे मिल पायेंगे. और जब अलग रहेंगे तो शक तो पैदा होगा ही.
मुसलमान अल्पसंख्यक हैं, इसके लिए वह विशेष सुविधाओं की मांग करते हैं. पर जहाँ वह बहुसंख्यक हैं, क्या वह वही सुविधाएं अल्पसंख्यकों को देने को राजी होते हैं? कश्मीर इसका एक उदाहरण है. वहां के मुसलमानों ने अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन देने का विरोध किया. क्यों? क्या कारण था इस के पीछे? क्यों हिंदू दर्शनार्थियों को सुविधा देने के लिए कुछ जमीन बोर्ड को नहीं दी जा सकती? इस के बाद मुसलमान कैसे यह शिकायत कर सकते हैं कि उन की देश भक्ति पर संदेह किया जाता है? ऐसे बहुत से उदाहरण दिए जा सकते हैं.
मेरे विचार में जब तक मुसलमान ख़ुद को राजनीति की विसात पर गोटी बनाकर पेश करते रहेंगे, नफरत के सौदागर यह गोटियाँ खेलते रहेंगे. इस बार परमाणु करार पर कटघरे में किसने खड़ा किया मुसलामानों को? जरा सोचिये यह वही लोग हैं जिन्हें मुसलमान अपना समझते है. जों मुसलमानों की नज़र में धर्म-निरपेक्ष हैं. आरएसएस को अपना दुश्मन मान कर मुसलमानों ने अपनी कमजोरी बता दी है इन लोगों को. मुसलमान आरएसएस से डरते रहेंगे और यह लोग आरएसएस का नाम लेकर उन्हें डराते रहेंगे. अरे यह डरना डराना बंद कीजिये. खुले दिल से आइये और राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल होइए. फ़िर देखिये कौन आप को दुतकारता है और कौन आपको गले लगाता है? दरवाजे के पीछे से आप जलूस को सिर्फ़ देख भर सकते हैं, उसमें शामिल नहीं हो सकते. शामिल होना है तो दरवाजे के बाहर आना होगा.
सब का देश पर बराबर का हक है, बराबर की जिम्मेदारी है. हक़ लेना है तो जिम्मेदारी निभानी होगी. ख़ुद को सब में शामिल करना होगा. अलग बस्तियां बना कर दूसरों से कैसे मिल पायेंगे. और जब अलग रहेंगे तो शक तो पैदा होगा ही.
Friday, August 01, 2008
मौलवियों के फतवे और आतंकवाद में वढ़ोतरी
जब आतंकवाद के ख़िलाफ़ मुस्लिम स्कालर्स ने फतवे जारी किए थे तब यह आशा बंधी थी कि आतंकवादी उनका सम्मान करेंगे और आतंकवादी हमलों में कमी आएगी. पर हुआ उस का उल्टा, आतंकवादी हमले और बढ़ गए.
मुस्लिम स्कॉलर्स के अनुसार आतंक फैलाना और निर्दोष लोगों की हत्या करना इस्लाम के ख़िलाफ़ है. तब इस्लाम के नाम पर यह खून खराबा क्यों हो रहा है? क्या यह आतंकवादी इस्लाम में यकीन नहीं रखते? अगर ऐसा है तो इन्हें मुस्लिम बिरादरी से निकाला जाना चाहिए. इन के साथ वही होना चाहिए जो इस्लाम का अपमान करने वालों के साथ किया जाता है, जो सलामन रशदी के साथ किया गया, जो तसलीमा नसरीन के साथ किया गया.
या यह फतवे सिर्फ़ दिखाने के लिए जारी किए थे और इन का मकसद आतंकवाद का खात्मा करना नहीं था. कहीं यहाँ पर यह कहावत तो लागू नहीं हो रही - फतवे दिखाने के और, बताने के और.
मुस्लिम स्कॉलर्स के अनुसार आतंक फैलाना और निर्दोष लोगों की हत्या करना इस्लाम के ख़िलाफ़ है. तब इस्लाम के नाम पर यह खून खराबा क्यों हो रहा है? क्या यह आतंकवादी इस्लाम में यकीन नहीं रखते? अगर ऐसा है तो इन्हें मुस्लिम बिरादरी से निकाला जाना चाहिए. इन के साथ वही होना चाहिए जो इस्लाम का अपमान करने वालों के साथ किया जाता है, जो सलामन रशदी के साथ किया गया, जो तसलीमा नसरीन के साथ किया गया.
या यह फतवे सिर्फ़ दिखाने के लिए जारी किए थे और इन का मकसद आतंकवाद का खात्मा करना नहीं था. कहीं यहाँ पर यह कहावत तो लागू नहीं हो रही - फतवे दिखाने के और, बताने के और.
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