कभी पढ़ा था - सुख और दुःख एक सिक्के के दो पहलू हैं. कल साईं बाबा सीरिअल में बाबा ने कहा - सुख और दुःख इंसानों के दो रिश्तेदार हैं. सुखों से इंसान खुद रिश्तेदारी रखना चाहता है और उसके लिए हर उपाय करता है. दुःख स्वयं ही इंसान के रिश्तेदार बन जाते हैं और उसे रिश्तेदारी निभाने को वाध्य करते हैं. वह इंसान की परछाईं बन जाते हैं. इंसान बहुत प्रयत्न करता है दुखों से छुटकारा पाने को पर दुःख उस का पीछा नहीं छोड़ते. आखिर इन दुखों के लिए इंसान खुद ही तो जिम्मेदार है. उसके पूर्व जन्मों का फल हैं यह सुख और दुःख.
बाबा ने कहा इंसान को सुख और दुःख दोनों को समान रूप से देखना चाहिए. दोनों उसी के कर्मों का फल हैं, इसलिए एक से प्यार और दूसरे से नफरत उचित नहीं हैं. कर्मों का फल तो भोगना ही होगा, सुख या दुःख. इंसान को चाहिए की ऐसे कर्म न आकर जिस से उसके खाते में दुःख जमा हों. अब तक तो दुःख जमा हो चुके हैं वह तो भुगतने ही पड़ेंगे, पर आगे से इंसान को सावधानी वरतनी चाहिए.
इंसान को हर समय ईश्वर का ध्यान करना चाहिए, इस से वह गलत कर्म करने से बचा रहेगा. जब ईश्वर उसके ध्यान में होंगे तो गलत कर्म तो उस से हो ही नहीं सकते. गलत कर्म तो तब होते हैं जब इंसान ईश्वर को भूल जाता है और खुद को अंहकार के बस होकर बहुत बड़ा समझने लगता है.
बचपन में स्कूल की किताब में पढ़ा था -
दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय,
जो सुख में सुमिरन करें तो दुःख काहे को होय.
कितनी सीधी और सच्ची बात है, पर इंसान न जाने किस उलट-फेर में लगा रहता है, दुखों को अपना रिश्तेदार बना लेता है और जीवन भर रोता रहता है.