शिष्य ने गुरु से पुछा, 'हमें यह मानव शरीर किस लिए मिला है?'
गुरु जी बोले, 'मानव ईशर की उत्कृष्ट रचना है. मानव शरीर पाकर हम ईश्वर को पा सकते हैं, पर उसके लिए हमें इस शरीर का सही उपयोग करना होगा.
हम इस शरीर से बहुत सारे काम लेते हैं. मस्तिष्क सोचता है, हम हमेशा अच्छा सोचें, हमारे मन में हर समय ईश्वर का ही ध्यान हो. हमारा सोच अहिंसक हो.
जिव्हा से हम बोलते हैं. हम हमेशा अच्छा बोलें, हमारी जिव्हा पर हर समय ईश्वर का ही नाम हो. हमारे वचन मधुर और अहिंसक हो.
आंखों से हम देखते हैं.हम हमेशा अच्छा देखें. हमारी आँखें हर प्राणी में ईश्वर का ही दर्शन करें.
कानों से हम सुनते हैं. हम हमेशा अच्छा सुनें. हमारे कान हर समय ईश्वर का गुणगान सुनें.
हाथों से हम काम करते हैं. हम हमेशा अच्छे काम करें. हमारे हाथ हमेशा ईश्वर को प्रणाम करने के लिए जुड़े रहें. हमारे हाथों से सब प्राणियों का भला हो.
पैरों से हम चलते हैं. हमारे पैर हमेशा अच्छे रास्तों पर चलें. हमारे पैर तीर्थ यात्रा पर चलें. दूसरों की सहायता के लिए हमारे पैर हमेशा चलने को तैयार रहें.
हमारा शरीर हमेशा जन कल्याण और ईश्वर प्राप्ति में लगा रहे.
1 comment:
यह सब बाते क्या इन नेताओ की समझ मै नही आती, या जो लोग रिशवत लेते है, दुसरो का हक मारते है, चोरिया करते है, पडोसी के दुख मै खुश होते है, शायद इन्हे डर नही उस भगवान का उस खुदा का.
धन्यवाद
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