दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो.

Monday, August 04, 2008

जलूस में शामिल होना है तो दरवाजे से बाहर आइये

यह बात अक्सर कही जाती है कि भारत के मुसलमानों को हर बात पर कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है. उनकी देश भक्ति पर शक किया जाता है. उनसे कहा जाता है कि वह अपनी देश भक्ति साबित करें. और भी धर्मों के लोग इस देश में रहते हैं, उन से अपनी देश भक्ति साबित करने के लिए क्यों नहीं कहा जाता? यह बात कुछ हद तक सही है. ऐसा होता है. यह शिकायत भी जायज है. पर ऐसा क्यों होता है? क्यों लोग ऐसा सोचते हैं? क्या इस के बारे में मुसलमानों ने सोचा है, और जो कारण उनकी समझ में आए हैं, क्या उन्हें दूर करने की कोशिश की है?

मुसलमान अल्पसंख्यक हैं, इसके लिए वह विशेष सुविधाओं की मांग करते हैं. पर जहाँ वह बहुसंख्यक हैं, क्या वह वही सुविधाएं अल्पसंख्यकों को देने को राजी होते हैं? कश्मीर इसका एक उदाहरण है. वहां के मुसलमानों ने अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन देने का विरोध किया. क्यों? क्या कारण था इस के पीछे? क्यों हिंदू दर्शनार्थियों को सुविधा देने के लिए कुछ जमीन बोर्ड को नहीं दी जा सकती? इस के बाद मुसलमान कैसे यह शिकायत कर सकते हैं कि उन की देश भक्ति पर संदेह किया जाता है? ऐसे बहुत से उदाहरण दिए जा सकते हैं.

मेरे विचार में जब तक मुसलमान ख़ुद को राजनीति की विसात पर गोटी बनाकर पेश करते रहेंगे, नफरत के सौदागर यह गोटियाँ खेलते रहेंगे. इस बार परमाणु करार पर कटघरे में किसने खड़ा किया मुसलामानों को? जरा सोचिये यह वही लोग हैं जिन्हें मुसलमान अपना समझते है. जों मुसलमानों की नज़र में धर्म-निरपेक्ष हैं. आरएसएस को अपना दुश्मन मान कर मुसलमानों ने अपनी कमजोरी बता दी है इन लोगों को. मुसलमान आरएसएस से डरते रहेंगे और यह लोग आरएसएस का नाम लेकर उन्हें डराते रहेंगे. अरे यह डरना डराना बंद कीजिये. खुले दिल से आइये और राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल होइए. फ़िर देखिये कौन आप को दुतकारता है और कौन आपको गले लगाता है? दरवाजे के पीछे से आप जलूस को सिर्फ़ देख भर सकते हैं, उसमें शामिल नहीं हो सकते. शामिल होना है तो दरवाजे के बाहर आना होगा.

सब का देश पर बराबर का हक है, बराबर की जिम्मेदारी है. हक़ लेना है तो जिम्मेदारी निभानी होगी. ख़ुद को सब में शामिल करना होगा. अलग बस्तियां बना कर दूसरों से कैसे मिल पायेंगे. और जब अलग रहेंगे तो शक तो पैदा होगा ही.

7 comments:

Arun Arora said...

सही कहा जी , लेकिन आज के माहौल मे या तो आप अल्पस्ख्यंक है या फ़िर साम्प्रदायिक . तीसरा कोई कोना नही .

राज भाटिय़ा said...

सुरेश जी आप ने बिलकुल सही बात कही हे,अब मुसल मानॊ को चाहिये पिचले ६० सालो से सबक ले ओर इन रोटिया सेकने वालो को दुत्कार कर खुले दिल से अन्य भारतीया लोगो के कदम से कदम मिला कर चले, तभी इन का ओर भारत का भला होगा,फ़िर देखते हे कोन इन पर शक करता हे,जब सब बराबर होगे तो, फ़िर कोन सा डर..
आप का लेख बहुत सही हे,धन्यवाद

परमजीत सिहँ बाली said...

आप की बात काफी हद तक ठीक है लेकिन इस के असली जिम्मेवार आम मुसलमान नहीं हैं बल्कि वे लोग है जो इन की अगुवाई कर रहे हैं।और बाकी कसर सत्ता के भूखों ने पूरी कर दी है।जो अपने फायदे के लिए सही गलत को ना पहचान कर सिर्फ अपना फायदा देखते हैं।आप का लेख बहुत विचारणीय है।

संजय बेंगाणी said...

भारत में और भी अल्पसंख्य रहते है, वे वास्तवीक अल्पस6ख्यक है जैसे जैन, पारसी...तो सीखों को, जैनो को, बौद्धो को, ईसाईयों को, शीकायत नहीं केवल मुसलमानों को ही क्यों?

Anonymous said...

प्रिय बन्धु ! हम सेक्युलर है ईस लिए सनातन है । मुस्लीम, ईसाइ आदि सेक्युलर नही है, ईस लिए मिट जाने वाले है । अगर आज मुसलमानो की बीच मुहम्मद जैसा कोई प्रबुद्ध पुरुष फिर से जन्म ले ले तो वो उसे मार डालेंगें । क्योकी प्रबुद्ध पुरुष होगा तो परम्परा से ह्ट कर बात करेगा, रुढियो से विद्रोह करेगा, जिसे मुस्लीम मानस सहन ही नही कर सकता । वे सहिष्णु नही है, वे सेक्युलर नही है, इस लिए भविष्य के महामानव से वंचित रहने वाले है । ईसाईयो के बीच भी आज कोई ईश्वर पुत्र आएगा तो वे उसे मार डालेगें । हिन्दु मानस ही एसा मानस है जो आने वाले नए मुहम्मद, नए ईसा और नए बुद्ध को स्थान देगा । ईस लिए आने वाले विश्व का आध्यत्मिक प्रणेता हिन्दुओ के बीच ही आने वाला है । जिस मुहम्मद और ईसा के वचनो को वे पढते है उनका अर्थ समय के प्रवाह मे गुम हो गया है । ईन्द्रियातित अनुभवो को शब्दो मे डाला ही नही जा सकता, वे शब्द उन प्रबुद्ध पुरुषो के गैर मौजुदगी मे मानव जाति के लिए कोई अर्थ नही रखते । हिन्दु मतलब खुला दिमाग, हिन्दु मतलब सेक्युलर – यही हमारी विशेसता है ।

ek aam aadmi said...

sir, hindoo to vaise hi apni pahchan kho chuka hai, dharm ko lekar uski soch bahut ghatiya hai, aapne kitne hinduon ko kisi badi baat par bhi ikatthe hote dekha hai jabki muslim chhoti se chhoti baat par ek ho jate hain, hindoo apna swabhiman bech chuka hai, apne swabhimaan ki baat karo to yah kaha jaata hai ki agde hone ke kaaran aap aisi baaten karte hain, wo sab chhodiye, jin guru sahibon ne panth ko bachane ke liye teg par gardane nyochhawar kar di, wahi log aaj kya bhasha bol rahe hain, satta ki prapti hi ekmatra uddeshya ban gaya hai

Unknown said...

आपकी बात बिल्कुल सही है, अधिकाँश लोगों के लिए धन और सत्ता की प्राप्ति ही एकमात्र उद्देश्य बन गया है. आज हिंदू धर्म को बुरा कहने वाले हिंदू ही ज्यादा हैं, और ऐसा कर के वह स्वयं को दूसरों की नजरों में ख़ुद को महान साबित करने की कोशिश करते हैं.