दैनिक प्रार्थना

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Monday, July 21, 2008

दो तस्वीरें और

मैंने अपनी पिछली पोस्ट में कुछ तस्वीरे पोस्ट की थीं, आरएसएस की शाखा और एक मुसलमान सज्जन द्वारा किए जा रहे प्राणायाम पर। आज फ़िर दो तस्वीरें लाया हूँ आपके लिए। वही मुसलमान सज्जन प्राणायाम कर रहे हें औए पास ही में शाखा हो रही है।

6 comments:

E-Guru Maya said...

वैसे आप साबित क्या करना चाह रहे हैं.
अब मुस्लिम जगत भी अपने आप को बदल तो रहा ही है.

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

एक तो तस्वीर यह कहीं ज़ाहिर नहीं करती कि जो सज्जन प्राणायाम कर रहे हैं वे मुस्लिम हैं, और अगर आपकी ही बात मान लें (क्यों न मानें) तो किसी मुस्लिम भाई के प्राणायम करने मं खास क्या है? कल आप एक तस्वीर लगाएंगे कि देखो मुस्लिम भाई सांस ले रहा है?
दूसरी बात पास ही में शाखा लग रही है - इस चित्र के माध्यम से आप क्या बताना चाह रहे हैं? यह कि शाखा पहले (मुस्लिमों के लिए)डरावनी हुआ करती थी, अब नहीं.

admin said...

हरियाली कहीं भी कैसी भी हो, दिल को सुकून देती है।

Anonymous said...

mene aapka isse related lekh padha tha. aapne sahi likha hai. mujhe lagta hai ki aap kuch achha dikhana chaha rhe hai. par maya ji v durga prsad ji samjh nahi paye. or aap ko jhoth bolne se milega bhi kya. koi baat nahi ye jaruri nahi hota ki jis najariye se hum baat ko kahe log use vesa hi samjhe. aap sirf achha likhe bekar tipaniyon par dyan na de.

Suresh Gupta said...

रश्मि जी, आपकी बात सही है, पर इ-गुरु माया और दुर्गाप्रसाद जी मेरे ब्लाग पर आए, उन्होंने मेरी पोस्ट पढ़ी, अपनी राय दी और इस तरह वह मेरे मेहमान हुए. उन्होंने जो प्रश्न उठाये हैं, उनका जवाब देना चाहिए.

आरएसएस को आधार बना कर, कुछ लोग हिंदू और मुसलमानों के बीच नफरत फैलाते रहे हैं और आज भी फैला रहे हैं. कुछ मुसलमान भी आरएसएस और प्राणायाम को इस्लाम विरोधी कह कर अपनी स्वार्थसिद्धि करते रहे हैं और कर रहे हैं. इन तस्वीरों को पोस्ट करने का मेरा मतलब यह था कि लोगों को यह बताया जाय कि शायद ऐसी बात नहीं है. मैं कुछ साबित नहीं करना चाहता.

दुर्गाप्रसाद जी को कुछ बातों पर शक है. यह शक तो तभी दूर हो सकता है जब वह इस पार्क में तशरीफ लायें और उन सज्जन से ख़ुद ही बात करें. उन्हें पता लग जायेगा कि वह सज्जन मुसलमान हैं या नहीं. मुझे किसी हिंदू को मुसलमान बना कर पेश करने कि क्या जरूरत है. वास्तव में यही शक इन नफरत फैलाने वालों को उत्साहित करता है.

Anonymous said...

सुरेश जी,
सही बात यही शक इन नफरत फैलाने वालों को उत्साहित करता है। आप इनकी टिपनियों से बिल्कुल भी विचलित न हो। क्योकि किसी ने कहा है कि जब आप कि आलोचना होने लगे तब आप समझिये कि आप उनसे बेहतर काम कर रहे है। आदमी उन्ही से चिढ़ता है जिससे वह अपने आप को कम समझाता है।