स्वामी रामसुखदास जी की यह पुस्तक गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित हुई है. आपके जीवन में प्रकाश हो उस लिए कुछ दीप प्रज्ज्वलित करता हूँ इस पुस्तक से.
"जो अपना नहीं है, उस को अपना मानने से विश्वासघात होगा, धोखा होगा"
"दूसरे के दुःख से दुखी होने पर हमारा दुःख मिट जाता है. दूसरे के सुख से सुखी होने पर हम सुखी हो जाते हैं. काम ख़ुद करो, आराम दूसरों को दो"
"उसका अनुभव करें या न करें, वह तो बैसा ही है; पर अनुभव करने से हम हलचल (आवागमन) से रहित हो जाते हैं. उस का अनुभव करने में ही मनुष्य-जीवन की सफलता है"
"स्त्री परपुरुष का और पुरूष परस्त्री का सपर्ष न करे तो उनके तेज, शक्ति की वृद्धि होगी"
"जैसे आप अपना दुःख दूर करने के लिए पैसे खर्च करते हैं, ऐसे ही दूसरे का दुःख दूर करने के लिए भी खर्च करें, तभी आपको पैसे रखने का हक़ है"
"अपने को ऊंचा बनाने का भाव राक्षसी, आसुरी भाव है. दूसरों को ऊंचा बनाने का भाव दैवी भाव हे"
"सच्ची बात को स्वीकार करना मनुष्य का धर्म है"
"पहले भलाई करने से भलाई होती थी, आज बुराई न करने पर भलाई हो जाती है"
"कोई बस्तु न मिले तो उस की इच्छा का त्याग कर दें, और मिल जाए तो उसे दूसरों की सेवा में लगा दें"
"आप छोटों पर दया नहीं करते तो आपको बड़ों से दया माँगने का कोई अधिकार नहीं है"
"जो सेवा करते नहीं प्रत्युत सेवा लेते हैं, उन के लिए ज़माना ख़राब आया है. सेवा करने वाले के लिए तो बहुत बढ़िया ज़माना आया है"
"यदि आप अपना कल्याण चाहते हैं तो सच्चे ह्रदय से भगवान् के शरण हो जाएं"
:भगवान् की कृपा मैं कभी कमी नहीं होती, कमी कृपा न मानने मैं होती है"
"यदि मनुष्य अपने कर्तव्य का पालन करे और पदार्थों की कामना न करे तो उस का कल्याण हो जायेगा"
"मेरे को सुख कैसे हो यह पतन की बात है, और दूसरे को सुख कैसे हो यह उत्थान की बात है. सब अपना ही सुख चाहेंगे तो एक को भी सुख नहीं मिलेगा, आपस में लड़ाई हो जायेगी"
"ज्यादा बस्तुएँ होने से ज्यादा सुख होगा, यह बहम की बात है. उल्टे दुःख ज्यादा होगा"
"देने वाले सभी सज्जन होते हैं, लेने वाले सभी सज्जन नहीं होते"