दैनिक प्रार्थना

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Thursday, May 29, 2008

एक और आतंकवादी हमला, इस बार जति के नाम पर

कितनी जल्दी भूल गए सब कि कुछ दिन पहले जयपुर में किया था आतंकवादियों ने हमला धर्म के नाम पर. अब अखबार भरे हैं दूसरे हमले की ख़बरों से जो गुर्जरों ने किया है जाति के नाम पर. दोनों में सरकारी और निजी संपत्ति नष्ट हुई है. दोनों में इंसान मरे हैं. इंसानियत मरी है. क्या फर्क है दोनों हमलों में?

पहले हमले में लाशों की सम्मान के साथ अन्तिम क्रिया हुई थी. इस हमले की लाशें सड़ रही हैं. यह कौन लोग थे जो मर गए? क्यों इन के मरने पर किसी की आँख से एक आंसू नहीं गिरा? क्यों मीडिया इन के परिवारवालों से इंटरव्यू करने नहीं गया? क्यों इन की विलखती माँ और बहन की तस्वीर मीडिया ने नहीं छापी? क्यों इन के शवों का अपमान किया जा रहा है? एक आंदोलनकारी ने कहा कि अगर एक लाख गुर्जर मर जायेंगे तो भी हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा. दूसरे ने कहा इन शवों का पोस्टमार्टम रेल की पटरी पर करो. यह कैसे इंसान हैं?

कुछ लोग धर्म पर लोगों को भड़काते हैं, कुछ लोग जाति पर. मतलब दोनों का एक ही है. दूसरों को मरबा कर अपना उल्लू सीधा करना. दिल्ली में वकील इस हिंसा के समर्थन में हड़ताल पर चले गए. आज सारी दिल्ली को घेरा हुआ है. दिल्ली वालों को फल, दब्जी, दूध नहीं पहुँचने देंगे. भिवाडी में सारे कारखाने बंद करा देंगे. रेल की पटरियाँ और उपकरण नष्ट कर देंगे. सड़क पर यातायात रोक कर देश को करोड़ों का नुकसान करबा देंगे. यह सब कहने वाले कौन हैं? कोई देशभक्त तो ऐसा नहीं कह और कर सकता. यह भी एक तरह का आतंकवाद है. एक धर्म का नाम लेकर है तो यह जाति का नाम ले कर.

Monday, May 19, 2008

भारतीय धर्म-निरपेक्षता को नकारात्मक बना दिया है कुछ लोगों ने

कल के अखबार में एक लेख छपा था भारतीय धर्म-निरपेक्षता के ऊपर। लेखक हैं एम् जे अकबर। वह कहते हैं:
"...... there is not a single instance of any Hindu writer having vilified the Prophet of Islam. Similarly, there is, to my knowledge, not a single Muslim writer who was abusive towards Lord Ram or Hanuman. Indian secularism is quintessentially different from that of the west. It is not the separation of state and religion, but space for the other: coexistence on the basis of mutual respect. I do not have to believe in Hanuman to respect my Hindu brother's right to believe in Ramayana; the Hindu does not need to believe in Allah to respect my belief in the miracle of Holy Koran...."

कितना अच्छा होता अगर यह पूर्ण वास्तविकता होती। कुछ तथाकतित बौद्धिक लेखक और आर्टिस्ट हर हिंदू विचार को ग़लत साबित करने में लगे रहते हें। घटिया राजनीतिबाजों और मजहब के सौदागरों ने भारतीय धर्म-निरपेक्षता को नफरत और मार-काट में बदल दिया है। वोट की ओछी राजनीति लोगों को धर्म के नाम पर बाँट रही है. इस नफरत के साए में बाहर से आए कुछ आतंकवादी आसानी से यहाँ पनाह पा जाते हैं और स्थानीय मदद से आसानी से जयपुर जैसे नर-संहार को अंजाम दे देते हैं.


हिन्दू होकर हिन्दुओं और हिन्दू धर्म को गाली देना प्रगतिशीलता की निशानी बन गया है। सरकार से लेकर एक आम आदमी तक सब स्वयं को प्रगतिशील साबित करने में लगे हुए हें। मैंने एक ब्लाग में पढ़ा कि हिन्दू ही हिन्दू धर्म का दुश्मन है। और एक ब्लाग में एक हिन्दू की लिखी ग़ज़ल पढ़ी। इन सज्जन ने राम भक्तों की खुलकर भर्त्सना की है। इस ग़ज़ल के लिए इन्हे ईनाम भी दिया गया है। सच पूछिये तो किसी गैर हिन्दू को हिन्दू धर्म के बारे में कुछ ग़लत कहने की जरूरत ही नहीं है। यह सारा काम तो कुछ हिन्दू ही कर देते हें।

भारतीय धर्म-निरपेक्षता को नकारात्मक बना दिया है कुछ लोगों ने।

Wednesday, May 14, 2008

फ़िर मचाया कत्लेआम हत्यारों ने

कल हत्यारों ने फ़िर कत्लेआम मचाया. इस बार जयपुर के निरीह निवासी उनका निशाना बने. कौन हैं यह हत्यारे और इस तरह निर्दोष इंसानों का खून बहा कर क्या हासिल करना चाहते हैं? यह हत्यारे खुदा के बन्दे तो हो नहीं सकते. कोई खुदा इतना बेरहम नहीं हो सकता जो अपने बंदों की इस बात से खुश होता हो कि वह उसके दूसरे बंदों का खून कर देते हैं. कोई शैतान ही ऐसा हो सकता है और अपने अनुयाइयों से यह उम्मीद कर सकता है.

खुदा तो प्यार का भूखा है. वह सब का मालिक है. हम सब उस के बच्चे हैं. कोई भी पिता यह नहीं चाहेगा कि उस के बच्चे आपस में मार काट करें और वह भी उसके नाम पर. पिता तो यही चाहेगा कि उस के बच्चे आपस में मिल जुल कर प्रेम से रहें. यह लोग जो मजहब और खुदा के नाम पर खुदा के बंदों का खून बहते हैं, क़यामत के दिन खुदा को क्या जवाब देंगे? यह लोग सोचते हैं कि खुदा उनसे खुश होगा और उन्हें जन्नत अता फरमायेगा. कितना ग़लत सोचते हैं यह लोग? मुझे पूरा यकीन है कि इनका खुदा इन्हें बहुत भयंकर सजा देगा और यह लोग अनंत काल तक जहन्नुम की आग में जलेंगे.

अफ़सोस की बात यह है की केन्द्र और प्रदेशों की सरकारें नागरिकों की जान-माल की कोई रक्षा नहीं कर पा रही हैं. अक्सर आतंकवादियों के हमले होते है, जान-माल का नुकसान होता है, और सरकार केवल इन घटनाओं की निंदा करके और नागरिकों से शान्ति बनाये रखने की अपील करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है. सुरक्षा सेनाएं केवल निर्दोष नागरिकों पर ही अपना जोर चला पाती हैं. जब सुरक्षा कर्मी अपनी जान की बाजी लगा लगा कर इन कातिलों को पकड़ लेते हैं तो सरकार इन हत्यारों को कोई सजा नहीं दे पाती. पार्लियामेन्ट हमले में इन राजनीतिबाजों को बचाने में कितने सुरक्षा कर्मी मारे गए, पर इन एह्सानफरामोशों ने उनके कातिलों को सरकारी दामाद बना लिया. आज तक एक भी आतंकवादी को उस के अपराधों की सजा नहीं दे पाई यह सरकार.

क्या फायदा है ऐसी सरकार का? क्या फायदा है ऐसी सुरक्षा एजेंसिओं का? अगर नागरिक सरकार पर भरोसा न करें और अपनी सुरक्षा ख़ुद करें तो शायद इतना जान-माल का नुकसान न हो.